Sk Hospital Sikar के मुख्य भवन के बांई तरफ स्थित दवा वितरण केन्द्र के सामने सड़क किनारे मरीज सुरेन्द्र पूनिया सीने पर हाथ रखकर इलाज के लिए गुहार करता रहा। कभी वह दर्द के कारण धूप में ही लेट जाता तो कभी सीने को दबाते हुए जोर-जोर से चीखकर मदद मांगता रहा। पास ही दवा केन्द्र पर मरीजों की कतार लगी हुई है।
नर्सिंग विद्यार्थियों के दो समूह मरीज के निकट से गुजर गए। कई मोटरसाइकिल सवार उधर से गुजर गए। मरीज की तरफ देख सभी रहे हैं, लेकिन ना तो उसका कोई हाल जान रहा, ना ही उपचार के लिए चिकित्सक के पास ले जा रहा। हमारी आखों के सामने मरीज 12 बजकर 10 मिनट तक तड़पता रहा, लेकिन किसी ने संवेदना नहीं दिखाई।
ट्रोमा का मुख्य द्वार
समय दोपहर बारह बजकर 15 मिनट। अपने किसी रिश्तेदार से मिलने के लिए मरीज सुरेन्द्र पूनिया अस्पताल में आ रहा है। ट्रोमा के पास पहुंचते ही मुख्य द्वार के सामने वह अचानक बेहोश हो जाता है। उसके पास किसी प्रकार का मोबाइल भी नहीं है। एक अंतराल के बाद उसके मुंह से चीख निकलती है, फिर बेहोश हो जाता है। मुख्य द्वार से मरीज व परिजन आ जा रहे हैं, लेकिन किसी को तड़पते हुए मरीज की चिंता नहीं है।
इतनी देर में वर्दी पहने दो गार्ड आते हैं, उन गाडों के पैंरों से एक फीट दूर ही मरीज लेटा हुआ है, लेकिन उनको भी मरीज की सुध लेने की चिंता नहीं है। इसके बाद नर्सिंंग का प्रशिक्षण ले रहे करीब आठ-दस विद्यार्थी उसी मरीज के पास आकर खड़े हो जाते हैं, मरीज तड़पता रहता है, लेकिन नर्सिंंग के विद्यार्थी मोबाइल पर चेटिंग में व्यस्त हैं। एक मरीज का परिजन वहीं चाय पी रहा है, लेकिन उसे भी तड़पते मरीज की चिंता नहीं है। बारह बजकर 25 मिनट तक मरीज तड़पता रहा, लेकिन यहां भी किसी की संवेदना नहीं जागी।
मेडिकल ओपीडी
अस्पताल के सबसे व्यस्ततम स्थानों में से एक है मेडिकल ओपीडी के सामने वाला स्थान। यहां हम मरीज को लेकर बारह बजकर 30 मिनट पर पहुंचे। डमी मरीज सुरेन्द्र एक डॉक्टर के पास जाना चाहता है, लेकिन यह क्या हुआ अचानक। उसे सीने में तेज दर्द होता है, वह वहीं सीने को दबाता हुआ धड़ाम से गिर जाता है। कुछ लोगों का ध्यान वहां जाता है, उसे देखते हैं लेकिन वापस अपने काम में लग जाते हैं।
करीब तीन मिनट बाद सफेद कुर्ता पायजामा पहने एक व्यक्ति आता है, मरीज से लेटने का कारण पूछता है, मरीज ने सीने में दर्द होने की शिकायत की, उसने जरूर सहयोग का आश्वासन दिया। इसके बाद वहां से गुजर रहे एक जना मरीज को देखता है, वह उसे डॉक्टर तक लेकर जाता हैं। इससे पहले वहां से अनेक कर्मचारी, आमजन व नर्सिंंग स्टाफ वहां से गुजरता रहा, लेकिन किसी ने मरीज की सुध नहीं ली।
इसके बाद हमारी टीम अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी (पीएमओ) डॉ एसके शर्मा के पास पहुंची और पूरे मॉक ड्रिल की वास्तविकता व उद्देश्य बताए। दर असल राजस्थान पत्रिका की टीम ने गुरुवार को शेखावाटी के सबसे बड़े राजकीय श्रीकल्याण अस्पताल में मॉक ड्रिल करवाई। वहां मौजूद लोगों की संवेदना को जगाने के लिए एक डमी मरीज को तड़पता हुआ दिखाया।
अस्पताल के तीन महत्वपूर्ण स्थानों ट्रोमा, मेडिकल ओपीडी व दवा वितरण केन्द्र के सामने एक मरीज उपचार के लिए तड़पता रहा, लेकिन किसी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं, किसी ने देखा तो सलाह देकर चला गया, बहुत कम ऐसे मिले, जिन्होंने उसे डॉक्टर तक ले जाने की हिम्मत दिखाई।
मैं बीमार नहीं, लेकिन संवेदना जरूरी-सुरेन्द्र
हम जिस डमी मरीज सुरेन्द्र पूनिया को अपनी टीम के साथ लेकर गए वह फतेहपुर के पास मांडेलाबड़ा गांव का रहने वाला है। सीकर में एक निजी फार्मा कंपनी में एमआर है। उसने बताया कि मैं तो एकदम स्वस्थ हूं। मुझे कोई बीमारी नहीं है, ना तो मेरे सीने में दर्द हुआ ना ही पेट में। लेकिन ऐसा किसी के साथ हो सकता है।
मैं मरीज होने का अभिनय करता रहा, अधिकांश लोग मेरे पास आते, लेकिन हाल जाने बिना या डॉक्टर तक पहुंचाए बिना ही लौट गए। व्यक्ति को संवेदनशील होना चाहिए। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। हमें ऐसे मरीजों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। पत्रिका की टीम ने जागरुकता की जो पहल की, वह वाकई सराहनीय है। हमें संवेदनशील बनना ही पड़ेगा। आज नहीं तो कल।
सभी की जिम्मेदारी-पीएमओ
अस्पताल में कोई मरीज अकेला आया है, वह मदद की गुहार कर रहा है, तड़प रहा है तो यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि वे संवेदनशील बनें। उसे संबंधित डॉक्टर तक पहुंचाएं। उसकी हर संभव मदद करें। एक बार फिर सभी कर्मचारियों को पाबंद करेंगे कि उनके पास ऐसी कोई घटना/ मरीज को देखें तो तुरंत उसे सही जगह पर लेकर उपचार करवाएं। साथ ही यह जिम्मेदारी व दायित्व हर आम व खास का भी होना चाहिए।
डॉ एसके शर्मा, पीएमओ, एसके अस्पताल सीकर