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Sikar Lok Sabha Seat: सीकर लोकसभा सीट पर कांटे की टक्कर, कौन मारेगा बाजी?

2024 India Elections : लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व में हार-जीत का फैसला चार जून को होना है। हर कोई जानना चाहता है कि उनके क्षेत्र में सांसद और देश में सरकार किसकी बनने जा रही है।

सीकरJun 03, 2024 / 01:26 pm

Supriya Rani

Sikar Lok Sabha Election 2024 : लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व में हार-जीत का फैसला चार जून को होना है। हर कोई जानना चाहता है कि उनके क्षेत्र में सांसद और देश में सरकार किसकी बनने जा रही है। इस बीच सीकर लोकसभा सीट की बात करें तो यह वो राजस्थान की वो सीट है जो कांटे की टक्कर वाली सीटों में से एक मानी जा रही है।

सीकर लोकसभा सीट से भाजपा से दो बार सांसद रह चुके सुमेधानंद सरस्वती (Sikar Lok Sabha Seat BJP Candidate 2024) मैदान में है। उनके सामने सामने इंडिया गठबंधन ने यहां माकपा के दिग्गज नेता अमराराम (Sikar Lok Sabha Seat MAKPA Candidate 2024) को मैदान में उतारा है। शुरू में ये चुनाव भाजपा के पक्ष में लगा, लेकिन समय के साथ माकपा ने अपनी पकड़ मजबूत की और मुकाबला कांटे का माना जा रहा है।

स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि बड़े-बड़े राजनीतिक विशेषज्ञ अब यह नहीं कह पा रहे हैं कि यहां आखिरकार जीत किसकी होगी, वे चुनाव को खड़ा सिक्का कह रहे हैं जो 4 जून को किसी भी दिशा में पलट सकता है। सीकर में 32 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। 2019 के चुनाव के मुकाबले इस बार करीब चार प्रतिशत की गिरावट के साथ सीकर लोकसभा क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत 57.53 प्रतिशत रहा। इस बार दोनों ही दल (भाजपा व माकपा) खुद को जीतता हुआ बता रहे हैं।

4 जून को भाजपा का कमजोर पक्ष पलट सकता है चनावी परिणाम


यदि दोनों पार्टियों के कमजोर पक्ष की बात करें तो भाजपा का कमजोर पक्ष एंटी इनकमबेंसी है। भाजपा प्रत्याशी सुमेधानंद सरस्वती लगातार तीसरी बार चुनावी मैदान में है। भाजपा के प्रबंधन में कमी भी उनका एक कमजोर पक्ष है। इसके अलावा चुनाव के समय जाट बोर्डिंग को लेकर सुमेधानंद सरस्वती ने जो बयान दिया उससे भी जाट समाज का एक वर्ग खासा नाराज है। भाजपा के मजबूत पक्ष को देखें, तो पीएम मोदी के नाम और उनकी योजनाएं फिर अयोध्या में राममंदिर और प्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी का फायदा सीकर संसदीय क्षेत्र में भाजपा को मिल सकता है।

इंडिया गठबंधन का कुछ ऐसा हाल

यदि हम इंडिया गठबंधन के माकपा प्रत्याशी अमराराम की बात करें तो सबसे कमजोर पक्ष माकपा को टिकट मिलने पर कांग्रेस कार्यकर्ता का जुड़ाव और उनकी सक्रियता में कमी रही है। पूरे चुनाव में देखा गया कि ज्यादातर कार्यकर्ता चुनावी मैदान से दूर रहे। वहीं कांग्रेस से सीधे मुकाबले में उतारने पर मतदान वाले दिन मुस्लिम मतदाता भी गफलत में रहे। मैनेजमेंट की कमी को भी माकपा की एक बड़ी कमजोरी माना जा सकता है।

1996 से लगातार चुनाव हारना भी अमराराम की छवि को कहीं न कहीं प्रभाविवत करने वाला रहा। माकपा के मजबूत पक्ष की बात करें तो अमराराम की किसानों के हक में आवाज उठाने वाले नेता की एक छवि रही है और कांग्रेस के हाथ मिलाने पर कांग्रेस की जो परंपरा है खासतौर पर जो एससी, मुस्लिम वोटर्स है उनके मिलने की संभावना के साथ कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की सक्रियता ने अच्छा चुनावी माहौल बनाया। अग्निवीर योजना, कृषि कानूनों पर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में माकपा प्रत्याशी अमराराम सफल दिखे। फिलहाल भाजपा और माकपा दोनों पार्टियों के जीत के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन हकीकत क्या है इसके लिए हमें 4 जून मंगलवार की दोपहर तक का इंतजार करना पड़ेगा।

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