सीकर

17 मौतों के बाद भी सीकर ने नहीं टेके जयपुर के सामने घुटने, जानिए क्यों?

Rao Raja Kalyan Singh Sikar : कभी बीरभान का बास नाम से मशहूर राव राजा कल्याण सिंह की रियासत अब शिक्षानगरी का रूप ले चुकी है। अब इसे सीकर के नाम जाना है।

सीकरJun 20, 2018 / 12:30 am

vishwanath saini

Rao Raja Kalyan Singh Sikar

रावराजा कल्याण सिंह जयंती विशेष
सीकर. कभी बीरभान का बास नाम से मशहूर राव राजा कल्याण सिंह की रियासत अब शिक्षानगरी का रूप ले चुकी है। अब इसे सीकर के नाम जाना है। सीकर को आधुनिक रूप देने वाले तत्कालीन राव राजा की बुधवार को 132वीं जयंती है। इतिहास के पन्नों को पलटने पर कल्याण सिंह के बारे में जानने को बहुत कुछ मिलता है, जो शायद ही युवा पीढ़ी जानती हो। पत्रिका ने सीकर संग्रहालय, इतिहासकरों से उनके बारे में कुछ ऐसी ही जानकारी एकत्रित की है। वे अपने वचन के इतने पक्के थे कि बेटे की शादी के लिए दिया वचन निभाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा तो भी हार नहीं मानी।

विवाद हुआ तो भी नहीं हटे पीछे
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रसदीपुरा के प्रधानाचार्य व इतिहासकार अरविन्द भास्कर बताते हंै कि कल्याण सिंह बेटे राजकुमार हरदयाल सिंह की सगाई वर्ष 1933 में ध्रांगध्रा (काठियावाड़) की राजकुमारी के साथ इस शर्त पर हुई थी कि राजकुमार अपने विवाह से पहले विदेश नहीं जाएंगे।


11 फरवरी 1938 को कल्याण सिंह को सूचना मिली कि जयपुर के सवाई मानसिंह हरदयाल सिंह को मई में अपने साथ इंग्लैण्ड ले जाएंगे और इस दौरे से पहले वे हरदयाल सिंह के विवाह के पक्ष में भी नहीं हैं। रावराजा द्वारा इसकी अनुमति न देने के बावजूद कैप्टन वेब हरदयाल को परीक्षा समाप्ति से पहले ही अजमेर के मेयो कॉलेज से निकालकर जयपुर ले गए। इसी बात को लेकर सवाई मानसिंह और रावराजा में दूरियां बढ़ गई।

सीकर को घेरा जयपुर की पलटन ने
इतिहासकारों के अनुसार सवाई मानसिंह बार-बार सीकर के कल्याण सिंह को जयपुर बुलाते रहे, लेकिन वे हर बार इसे किसी ने किसी कारण से टालते रहे। आखिरकार जयपुर के इंस्पेक्टर जनरल पुलिस यंग ने सीकर पहुंच कर वार्ता के समय देवीपुरा कोठी से उनको गिरफ्तार करने की कोशिश की। लेकिन कल्याण सिंह सुरक्षित वापस गढ़ तक पहुंचने में सफल रहे।

उनकी रक्षा के लिए प्रमुख जागीरदारों सहित लगभग 30 हजार राजपूत भी सीकर पहुंचे। इस दौरान सीकर शहर के दरवाजे बंद कर दिए गए और हड़ताल की घोषणा कर दी गई। फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ और रामगढ़ में भी इस हड़ताल का अनुसरण किया गया। जयपुर प्रशासन किसी भी कीमत पर कल्याण सिंह को जयपुर बुलाना चाहता था किन्तु रावराजा वहां जाना नहीं चाहते थे।

और लोगों ने भी दिया साथ, हड़ताल की घोषणा
कल्याण सिंह पर अत्याचार के विरोध में सीकर के लोगों ने एक कमेटी बनाते हुए सीकर में हड़ताल की घोषणा कर दी। दस मई को महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी भी रानी साहिबा से मिलने के लिए सीकर आई।


पांच जुलाई को श्रीमाधोपुर तहसील के ग्राम महरोली, मऊ, मुण्डरू, बागरियावास, दिवराला व लिसाडिय़ा के सशस्त्र राजपूत मदद के लिए सीकर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। इन लोगों को हथियार रख देने तथा लौटने के लिए कहा गया। इंकार करने पर जयपुर पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी। इसमें 17 से अधिक लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। 19 जुलाई 1938 के कई समाचार पत्रों में छपा कि ‘सीकर स्टेशन पर जो हत्याकाण्ड हुआ था, उसके बारे में अब पब्लिक कमेटी को ज्यादा सही हालात मालूम हुए हैं।

बजाज और मदनसिंह के प्रयास से समझौता
जमनानलाल बजाज और नवलगढ़ के मदनसिंह की मध्यस्थता के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। राजपरिवार के लोगों ने सीकर की चारदीवारी के प्रवेश द्वार खोल दिए और 23 जुलाई को सवाई मानसिंह जयपुर से हरदयाल सिंह को लेकर सीकर पहुंचे।

Hindi News / Sikar / 17 मौतों के बाद भी सीकर ने नहीं टेके जयपुर के सामने घुटने, जानिए क्यों?

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.