11 फरवरी 1938 को कल्याण सिंह को सूचना मिली कि जयपुर के सवाई मानसिंह हरदयाल सिंह को मई में अपने साथ इंग्लैण्ड ले जाएंगे और इस दौरे से पहले वे हरदयाल सिंह के विवाह के पक्ष में भी नहीं हैं। रावराजा द्वारा इसकी अनुमति न देने के बावजूद कैप्टन वेब हरदयाल को परीक्षा समाप्ति से पहले ही अजमेर के मेयो कॉलेज से निकालकर जयपुर ले गए। इसी बात को लेकर सवाई मानसिंह और रावराजा में दूरियां बढ़ गई।
सीकर को घेरा जयपुर की पलटन ने
इतिहासकारों के अनुसार सवाई मानसिंह बार-बार सीकर के कल्याण सिंह को जयपुर बुलाते रहे, लेकिन वे हर बार इसे किसी ने किसी कारण से टालते रहे। आखिरकार जयपुर के इंस्पेक्टर जनरल पुलिस यंग ने सीकर पहुंच कर वार्ता के समय देवीपुरा कोठी से उनको गिरफ्तार करने की कोशिश की। लेकिन कल्याण सिंह सुरक्षित वापस गढ़ तक पहुंचने में सफल रहे।
उनकी रक्षा के लिए प्रमुख जागीरदारों सहित लगभग 30 हजार राजपूत भी सीकर पहुंचे। इस दौरान सीकर शहर के दरवाजे बंद कर दिए गए और हड़ताल की घोषणा कर दी गई। फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ और रामगढ़ में भी इस हड़ताल का अनुसरण किया गया। जयपुर प्रशासन किसी भी कीमत पर कल्याण सिंह को जयपुर बुलाना चाहता था किन्तु रावराजा वहां जाना नहीं चाहते थे।
और लोगों ने भी दिया साथ, हड़ताल की घोषणा
कल्याण सिंह पर अत्याचार के विरोध में सीकर के लोगों ने एक कमेटी बनाते हुए सीकर में हड़ताल की घोषणा कर दी। दस मई को महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी भी रानी साहिबा से मिलने के लिए सीकर आई।
पांच जुलाई को श्रीमाधोपुर तहसील के ग्राम महरोली, मऊ, मुण्डरू, बागरियावास, दिवराला व लिसाडिय़ा के सशस्त्र राजपूत मदद के लिए सीकर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे। इन लोगों को हथियार रख देने तथा लौटने के लिए कहा गया। इंकार करने पर जयपुर पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी। इसमें 17 से अधिक लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। 19 जुलाई 1938 के कई समाचार पत्रों में छपा कि ‘सीकर स्टेशन पर जो हत्याकाण्ड हुआ था, उसके बारे में अब पब्लिक कमेटी को ज्यादा सही हालात मालूम हुए हैं।
बजाज और मदनसिंह के प्रयास से समझौता
जमनानलाल बजाज और नवलगढ़ के मदनसिंह की मध्यस्थता के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। राजपरिवार के लोगों ने सीकर की चारदीवारी के प्रवेश द्वार खोल दिए और 23 जुलाई को सवाई मानसिंह जयपुर से हरदयाल सिंह को लेकर सीकर पहुंचे।