केस एक: भाई की जिदंगी की बात आई तो बहन ने दे दिया लीवर
किसान कॉलोनी निवासी अंजू चौधरी के भाई धर्मेन्द्र का लगभग दस साल पहले लीवर फेल हो गया था। इस दौरान परिवार के सभी लोग डिप्रेशन में आ गए। दिल्ली के एक चिकित्सक से इस मामले में परिवार के लोगों ने बातचीत की। इस पर चिकित्सकों ने कहा कि लीवर ट्रांसफर के जरिए ही नई जिदंगी मिल सकती है। अंजू चौधरी ने परिवार के सभी सदस्यों को कहा कि अपने भाई के लिए वह लीवर दान करेगी। अंजू के इस फैसले ने सभी को चौका दिया। उन्होंने अपने पति रघुवीर सिंह के सामने भी यह प्रस्ताव रखा। वह भी संहर्ष तैयार हो गए।
अपनी कमाई भी ऑपरेशन में लगाई
चिकित्सकों ने बताया कि आप लीवर दान तो दे रहे हो लेकिन आपको कई तरह की दिक्कत आ सकती है। इसके बाद भी वह ऑपरेशन के लिए तैयार हो गई। लगभग बारह घंटे के ऑपरेशन के बाद वह भाई के जीवन को बचाने में सफल हुई। अंजू चौधरी फिलहाल राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चैनपुरा दादली में प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत है। इनके भाई धर्मेन्द्र कुल्हरी केन्द्रीय कारागार सीकर में एंबुलेंस चालक के पद सेवाए रहे हैं। ऑपरेशन में काफी खर्चा आने की वजह से ज्यादातर खर्चा भी बहन ने उठाया था। इनके पति रघुवीर सिंह नारायण देवी मोदी बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय छावनी नीमकाथाना में राजनीति विज्ञान विषय के पद पर कार्यरत है।
केस दो: पति बॉर्डर पर शहीद, फिर भाई बना सहारा
बागरियावास निवासी शहीद सुल्तान सिंह की वीरांगना से रक्षाबंधन की बात करतें ही भावुक हो जाती है। वह बताती है कि जब 22 वर्ष की उम्र थी उस समय पति सुल्तान सिंह बॉर्डर पर दुश्मनों से खदेड़ते हुए शहीद हो गए। उस समय ससुराल वालों के साथ अन्य रिश्तेदारों ने भी बहुत मानसिक सहारा दिया। लेकिन भाई ने संघर्ष के दौर में जो सहारा दिया उसे ताउम्र नहीं भूल सकूंगी। शहीद स्मारक के लिए प्रशासन ने जमीन देने से इंकार कर दिया। इसके बाद भाई ने हार नहीं मानी और दिन-रात एक कर दी। आखिरकार शहीद स्मारक को जमीन भी मिली और स्मारक भी बना। इसके बाद मेरी नौकरी के लिए मुझे प्रोत्साहित किया। अब सार्वजनिक निर्माण विभाग में यूडीसी के पद पर कार्यरत हूं। इनके भाई सुभाष सीकर में अभिभाषक है।
केस तीन: मेरी बहन ने मेरी जिदंगी संवार दी, बरना कही धक्के खा रहा होता
जिदंगी संवारने में माता-पिता के साथ बड़ा रोल भाई-बहनों का भी होता है। वर्ष 2013 में मेरी बहन अनु शर्मा का आरएएस भर्ती में चयन हो गया। इस समय तक मैं बेरोजगार था कई निजी कंपनियों में काम किया लेकिन मन को संतुष्टी नहीं मिली। यह कहना है कि पलथाना गांव निवासी विकास शर्मा का। उन्होंने बताया कि इसके बाद बहन मुझे जयपुर लेकर चली गई। वह नियमित रुप से मेरी तैयारी को जांचती। जहां गलती वहां बताती है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसे तैयारी करेंगे तो सफलता नहीं मिलेगी। उनके मागदर्शन की वजह से मेरा प्रयोशाला सहायक में चयन हो गया। उन्होंने समझाया कि लगातार जुटे रहना। इसके बाद पिछले साल रसायन विज्ञान व्याख्याता भर्र्ती में 27 वीं रैंक के साथ चयन हो गया। उन्होंने मेरी पत्नी पूनम शर्मा को भी मदद की। इसकी वजह से उनका भी 100 वीं रैंक के साथ व्याख्याता भर्ती में नंबर आ गया। उन्होंने बताया कि सफलता में बहन रेणु शर्मा का भी अहम रोल रहा है। वह भी व्याख्याता के पद पर कार्यरत है। इनके पिता सुरेश कुमार शर्मा सीकर केन्द्रीय सहकारी बैंक में बैकिंग असिस्टेंट के पद पर कार्यरत है। जबकि बहन अनु शर्मा फिलहाल पर्यटन विभाग में अतिरिक्त निदेशक के पद पर कार्यरत है। बकौल, विकास का कहना है कि यदि बहन ने मुझे उस दौर में यदि नहीं समझाया होता तो बेरोजगारी की भीड़ में धक्के खा रहा होता।