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Narayan Das Maharaj : बचपन में इसलिए छूटा इनका घर, फिर देशभर में यूं बन गए लाखों भक्त

संत नारायण दास जी महाराज का जन्म 1927 में शाहपुरा तहसील के चिमनपुरा गांव के गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

सीकरNov 18, 2018 / 12:43 pm

vishwanath saini

Narayan Das maharaj

सीकर. मुख पर तेज! हर जुबां पर राम का नाम! सौम्य सी मूरत! महाराज नारायणदासजी भक्तों के बीच नारायण का रूप माने जाते थे। शनिवार को उनका देहावसान हो गया। रविवार को तडक़े तीन बजे से ही उनके अंतिम दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की कतारें लग गई।

पद्मश्री संत नारायण दास जी महाराज त्रिवेणीधाम के साथ साथ गुजरात के डाकोर धाम के ब्रह्मपीठाधीश्वर गद्दी के भी महंत थे। 1927 में शाहपुरा तहसील के चिमनपुरा गांव के गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामदयाल शर्मा और माता का नाम भूरी बाई था।
बताया जाता है की नारायण दास महाराज बचपन में बीमार रहते थे। ऐसे में इनके पिता ने इन्हें भगवान दास महाराज के पास छोड़ दिया था। बाद में बाल्यावस्था में ही संन्यास ले लिया और गुरुजी की सेवा कर शिक्षा दीक्षा ग्रहण की।
वर्ष 1972 में भगवानदास महाराज के देवलोकगमन के बाद नारायणदास महाराज की त्रिवेणी धाम आश्रम के महंत के रूप में ताजपोशी की गई थी। इनके मुख पर हमेशा सीता-राम का जाप रहता है। जिन नारायणदास जी को बचपन में बीमारी की वजह से गुरु शरण में छोड़ा गया था।
उन्होंने वैराग्य धारण कर ऐसे-ऐसे कार्य किए कि आज ये लाखों लोगों के पथ प्रदर्शक हैं। इनके आश्रम में रोजाना हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपने मार्गदर्शन तथा आशीर्वाद के लिए आते थे।

राम नाम का बैंक

महाराज सदैव सीताराम नाम का जप करते रहते थे। यही संगत उन्होंने अपने शिष्यों को दी। हजारों घरों में उन्होंने राम नाम लिखने वाली एक पुस्तिका वितरित करवाई। सैकड़ों लोग ऐसी हजारों पुस्तकों में राम का नाम लिखकर रखते हैं। बाद में इन्हें राम नाम बैंक में जमा करवा दिया जाता।

शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में रहा था योगदान

-त्रिवेणी के संत ने जगह जगह विद्यालय, कॉलेज और अस्पतालों का निर्माण कराया।
-साथ ही कई पुराने मंदिरों का जीर्णोंद्धार भी करवाया। इसके अलावा इन्होनें कई जगह सामाजिक हित के कार्यों में अपना योगदान दिया।
-महाराज के शिष्यों के अनेक सत्संग मण्डल सुचारु रूप से चल रहे हंै जहां हर सप्ताह राम नाम सत्संग होता है।
-इसके साथ ही उनके साथ किसी तरह का कोई विवाद नहीं जुड़ा है। वे गांव-गांव, ढाणी-ढाणी में सत्संग कीर्तन करते थे।
-भैंरोसिंह शेखावत, अशोक गहलोत वसुंधरा राजे सहित अनेक नेता उनसे आशीर्वाद लेने आते रहते थे।
-त्रिवेणी धाम में ही महाराज ने 108 कुंडीय यज्ञशाला बनवाई थी। इस तरह की यज्ञशाला दुर्लभ ही है।

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