ऐसे समझें विद्यार्थियों का दर्द
केस 1 : एनओसी की वजह से दो महीने भागदौड़सीकर निवासी सिद्धार्थ कुमार के पिता बैंक में कार्यरत हैं। पिछले दिनों गुजरात से उनका तबादला जयपुर हो गया। गुजरात से टीसी लेकर आने पर दाखिले के लिए एनओसी मांगी गई। पहले तो गुजरात के स्कूल ने एनओसी देने से मना कर दिया। कई महीनों की मशक्कत के बाद कागजी खानापूर्ति हुई। नतीजा दो महीने तक सिद्वार्थ की पढ़ाई प्रभावित रही।
सीकर निवासी रामचरण पिछले चार साल से दिल्ली की एक निजी कंपनी में कार्यरत था। इस साल पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से सीकर में मजदूरी शुरू कर दी। बच्चों की अंकतालिका और आधार कार्ड में जन्मतिथि अलग-अलग होने की वजह से दाखिला अटक गया। जब आधार में सुधार के लिए प्रार्थना पत्र दिया तो आवास का पता बदलने की वजह से कई महीने भटकना पड़ा।
जयपुर जिले के निवासी सुरेन्द्र सिंह सेना में कार्यरत हैं। पिछले दिनों जम्मू से उनका तबादला आगरा हो गया। इस दौरान उन्होंने पढ़ाई के लिए बच्चों का दाखिला सीकर के निजी स्कूल में करवा दिया। इस दौरान बोर्ड एनओसी को लेकर कई बार चक्कर लगाने पड़े। उन्होंने बताया हर एक-दो साल में इस तरह की समस्या बच्चों को कई राज्यों में झेलनी पड़ी है।
यह हो सकता है समाधान
हर साल राजस्थान में दूसरे राज्यों के औसतन 40 हजार विद्याथी दाखिला लेते हैं। दिल्ली व महाराष्ट्र, गुजरात सहित कई राज्यों में यह आंकड़ा डेढ़ लाख तक है। एक्सपर्ट का कहना है कि शिक्षा मंत्रालय को स्कूली शिक्षा के लिए एक पोर्टल बनाना चाहिए इसमें यदि छात्र किसी भी राज्य में टीसी कटाकर जाता है तो उसका रिकॉर्ड भी ऑनलाइन स्वतः ही चला जाता है। सीबीएसई सहित कई बोर्ड इस तरह का नवाचार कर चुके हैं, लेकिन छोटी कक्षाओं के लिए मंत्रालय को केन्द्रीकृत व्यवस्था के तहत इस तरह का नवाचार करना चाहिए।- सुदीप गोयल, सामाजिक कार्यकर्ता, सीकर