लेकिन सरकार ने सीकर के रैवासा वेद विद्यालय को मॉडल मानते हुए इसी की तर्ज पर वेद विद्यालयों का संचालन करने के प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया है। अगले महीने तक सभी संभाग मुख्यालयों पर वेद विद्यालयों के लिए तीन-तीन स्कूलों के प्रस्ताव मांगे जाएंगे। इसके बाद सरकार की ओर से संसाधन व अन्य मापदंडों को देखते हुए एक-एक विद्यालय का चयन किया जाएगा। प्रदेश में नए वेद विद्यालयों का संचालन होने से सेना में हमारी धाक और मजबूत हो सकेगी क्योंकि हमारे संस्कृत वेदपठियों में सेना में जाने का जुननू काफी है।
संस्कार
सुबह 5 बजे शुरू होती है दिनचर्या वेद विद्यालय शिक्षा के साथ संस्कार भी दे रहा है। यहां पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने बताया कि यहां सुबह पांच बजे दिनचर्या शुरू हो जाती है। सुबह पहले सत्संग और फिर श्रीमद् भागवत गीता सहित अन्य पाठ होते है। इसके बाद विद्यार्थी वेद विद्यालय में पढ़ाई करने में जुट जाते है।
सुबह 5 बजे शुरू होती है दिनचर्या वेद विद्यालय शिक्षा के साथ संस्कार भी दे रहा है। यहां पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों ने बताया कि यहां सुबह पांच बजे दिनचर्या शुरू हो जाती है। सुबह पहले सत्संग और फिर श्रीमद् भागवत गीता सहित अन्य पाठ होते है। इसके बाद विद्यार्थी वेद विद्यालय में पढ़ाई करने में जुट जाते है।
खास
तुलसीदासजी ने रैवासा में ही लिखे राम के पद भगवान श्रीराम के परम भक्त व महाकाव्य रामचरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदासजी से भी सीकर के रैवासा से संबंध है। जानकीनाथ सहाय करें तब कौन बिगार करे नर तेरोंज् जैसे पदों की रचना तुलसीदासजी ने रैवासाधाम आने पर की थी। सीकर से अयोध्या तक पहुंची मधुरोपासना जिले के रैवासा धाम का भी भगवान राम से गहरा नाता है। यहां संवत 1517 में बना जानकीनाथ का सबसे पुराना मंदिर है। काशी व अयोध्या तक प्रयात सीताराम की मधुरोपासना भी इसी पीठ की देन है। मां सीता की सहेली के रूप में ग्रंथों की रचना करने वाले रैवासापीठ के संस्थापक अग्रदेवाचार्य को यहां सीताजी के साक्षात दर्शन का भी जिक्र किया गया है।
तुलसीदासजी ने रैवासा में ही लिखे राम के पद भगवान श्रीराम के परम भक्त व महाकाव्य रामचरित मानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदासजी से भी सीकर के रैवासा से संबंध है। जानकीनाथ सहाय करें तब कौन बिगार करे नर तेरोंज् जैसे पदों की रचना तुलसीदासजी ने रैवासाधाम आने पर की थी। सीकर से अयोध्या तक पहुंची मधुरोपासना जिले के रैवासा धाम का भी भगवान राम से गहरा नाता है। यहां संवत 1517 में बना जानकीनाथ का सबसे पुराना मंदिर है। काशी व अयोध्या तक प्रयात सीताराम की मधुरोपासना भी इसी पीठ की देन है। मां सीता की सहेली के रूप में ग्रंथों की रचना करने वाले रैवासापीठ के संस्थापक अग्रदेवाचार्य को यहां सीताजी के साक्षात दर्शन का भी जिक्र किया गया है।
यह भी पढ़ें
स्कूल फीस इतनी बढ़ाई कि खरीद लीं करोड़ों की बीएमडब्ल्यू कारें, दुबई ट्रिप पर गए
एक्सपर्ट व्यूसरकार की घोषणा सराहनीय सनातन को बचाने के लिए संस्कृति की राह पर चलना होगा। सरकार ने रैवासा वेद विद्यालय की तर्ज पर सभी संभाग मुयालयों पर वेद विद्यालयों की घोषणा की है यह सराहनीय है। इससे हमारे युवाओं को वेदों का ज्ञान लाने के लिए दूसरे शहरों में नहीं जाना पड़ेगा। राघवाचार्य वेदांती, अग्र पीठाधीश्वर, रैवासा पीठ
इसलिए माना रैवासा स्कूल को मॉडल
सरकार ने बजट में घोषणा की है कि रैवासा वेद विद्यालय की तर्ज पर अन्य संभाग मुयालयों पर वेद विद्यालयों का संचालन किया जाएगा। रैवासा वेद विद्यालय को मॉडल मानने के पीछे कई वजह है। 1988 से संचालित संस्कृत वेद विद्यालय में यहां विद्यार्थियों को कप्यूटर के साथ अंग्रेजी की भी पढ़ाई कराई जाती है। यहां के वेद विद्यालय में सात वर्षीय पाठ्यक्रम भी है। यहां 10वीं व 12वीं की पढ़ाई के साथ वेदों की भी पढ़ाई कराई जा रही है।
सरकार ने बजट में घोषणा की है कि रैवासा वेद विद्यालय की तर्ज पर अन्य संभाग मुयालयों पर वेद विद्यालयों का संचालन किया जाएगा। रैवासा वेद विद्यालय को मॉडल मानने के पीछे कई वजह है। 1988 से संचालित संस्कृत वेद विद्यालय में यहां विद्यार्थियों को कप्यूटर के साथ अंग्रेजी की भी पढ़ाई कराई जाती है। यहां के वेद विद्यालय में सात वर्षीय पाठ्यक्रम भी है। यहां 10वीं व 12वीं की पढ़ाई के साथ वेदों की भी पढ़ाई कराई जा रही है।