पिछले दिनों में जयपुर में एक संविदा कर्मचारी के आत्महत्या करने के बाद इसे लेकर आक्रोश बढ़ गया है। सरकार संविदा कर्मचारियों के लिए बने कायदों का रिव्यू करने का दावा कर रही है। लेकिन हकीकत यह है कि पिछली सरकार के समय संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए बनी गाइडलाइन भी राहत नहीं दे पा रही है। हालात यह है कि कई सालों तक विभागों में सेवाएं देने के बाद भी उन्हें न्यूनतम मजदूरी तक मिल पा रही है।
ऐसे समझें संविदा कर्मचारियों का दर्द
केस एक : प्रदेश में निरक्षरता का कलंक दूर करने वाले प्रेरकों को अब भी स्थायी नौकरी का इंतजार है। साक्षरता विभाग ने प्रदेशभर में 28 हजार से अधिक प्रेरकों की 20 साल तक सेवाएं ली। केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से प्रेरकों को दूसरे योजनाओं में लगाने के दावे हुए। इसके बाद भी प्रेरकों को अभी तक पक्की नौकरी नहीं मिल सकी है। केस दो : प्रदेश के सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील बनाने वाली कुक कम हेल्परों को अभी भी न्यूतनम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। पिछले दस साल में कई बार मानदेय बढ़ोतरी से लेकर स्थायी नौकरी देने की घोषणा हुई। लेकिन कई सालों से बच्चों को मिड-डे-मील खिलाने वाली महिलाओं को राहत नहीं मिल सकी है।
राहत : चिकित्सा व पंचायती राज में भर्ती
चिकित्सा विभाग व पंचायतीराज विभाग संविदा कर्मचारियों को नियमित करने के लिए दस साल में दो बार मौके दिए गए। इस दौरान संविदा कर्मचारियों को बोनस अंक देकर नियमित किया गया। इन विभागों में काम करने वाले कई कर्मचारियों को पांच वर्ष से कम की सेवा होने की वजह से नियमित होने का फायदा नहीं मिल सकता है।आफत : विद्यालय सहायकों को इंतजार, पैराटीचर्स में खुशी
शिक्षा विभाग में पैराटीचर्स को नियमित होने का तोहफा मिल सका है। जबकि विद्यालय सहायकों का हर साल एक साल के लिए कार्यकाल बढ़ाया जाता है। विद्यालय सहायकों की ओर से नियमित करने की मांग की जा रही है। यह भी पढ़ें
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पड़ताल : सभी विभागों में संविदा कर्मचारियों की फौज
सरकार की ओर से संविदा कर्मचारियों की संख्या कभी एक लाख तो एक डेढ़ लाख बताई जाती है। जबकि कर्मचारी संगठनों के हिसाब से संविदा व मानदेय कर्मचारियों की संख्या चार लाख से अधिक है। सरकारी महकमों में नियमित भर्ती नहीं होने की वजह से हर विभाग में संविदा कर्मचारियों की लंबी फौज जमा हो गई है। चपरासी से लेकर कप्यूटर ऑपरेटर, शिक्षक, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर सहित 40 से अधिक श्रेणी के पदों पर संविदा कर्मचारियों की ओर से मोर्चा संभाला हुआ है। यह भी पढ़ें
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एक्सपर्ट व्यू….
हर विभाग की भर्ती में संविदा कर्मचारियों को बोनस के आधार पर प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान होना चाहिए। पिछली सरकार के समय बनी गाइडलाइन में यह सपना दिखाया गया था, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पा रहा है। वहीं संविदा कर्मचारियों के न्यूनतम अनुभव की सीमा को घटाकर तीन साल करना चाहिए।–महेन्द्र बाजिया, भर्ती मामलों के विशेषज्ञ