हालांकि कई किसानों का कहना है कि फसलों में बूंटा-बूंटा दम तोड़ चुका है। इसलिए बारिश से अब पहले की तुलना में ज्यादा फायदा नहीं होगा। यही बारिश अगर बीस दिन पहले हो जाती है। अच्छे जमाने की उम्मीद की जा सकती थी। अब तो बस खेतों में अच्छी पैदावार की बजाय पशुओं के लिए चारा उपलब्ध हो जाएगा।
उधर, शेखावाटी में मंगलवार को दिनभर उमस के बाद शाम को कई इलाकों में बरसात होने से लोगों को राहत मिली है। शेखावाटी के सीकर जिले में कई स्थानों पर बरसात हुई। बारिश से किसानों के चेहरे खिल गए तथा खेतों में खड़ी फसलों के लिए वरदान बताया। हालांकि, जिले के नीमकाथाना, पलसाना, रानोली आदि क्षेत्रों में तेज बरसात हुई।
सीकर में 02 अरब की फसल दांव पर दलहन:
दलहन फसलों में चंवळा, मूंग, मोठ खरीफ प्रमुख है। इन फसलों का क्षेत्र 60 हजार हैक्टेयर है। प्रति हेक्टेयर पांच क्विंटल के औसत के अनुसार अनुमानित उत्पादन 30 हजार मीट्रिक टन है। 3500 रुपए प्रति क्विंटल के लिहाज से नुकसान 26 करोड़ 62 लाख रुपए तक पहुंच गया है।
दलहन फसलों में चंवळा, मूंग, मोठ खरीफ प्रमुख है। इन फसलों का क्षेत्र 60 हजार हैक्टेयर है। प्रति हेक्टेयर पांच क्विंटल के औसत के अनुसार अनुमानित उत्पादन 30 हजार मीट्रिक टन है। 3500 रुपए प्रति क्विंटल के लिहाज से नुकसान 26 करोड़ 62 लाख रुपए तक पहुंच गया है।
ग्वार:
जिले में इस बार एक लाख हेक्टेयर में ग्वार का औसत उत्पादन 80 हजार मीट्रिक टन आंका जा रहा है। तीन हजार रुपए क्विंटल के औसत भाव के अनुसार नुकसान की राशि दो अरब 40 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। जो बहुत अधिक है।
मूंगफली:
खरीफ 2017 में मूंगफली की बुवाई 20 हजार हेक्टेयर में हुई है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 19 क्विंटल तक हो जाता है। मूंगफली में औसत नुकसान 25 से 27 फीसदी तक हो चुका है। 3500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से नुकसान की राशि 37 करोड़ 24 लाख रुपए तक मानी जा रही है।
बाजरा:
सीकर में सबसे अधिक तीन लाख हेक्टेयर में बाजरा बोया गया है। जिले में बाजरे के बुवाई क्षेत्र के अनुसार 39 लाख मीट्रिक टन का उत्पादन आंका जा रहा है। बाजरे में बरसात की कमी के कारण करीब 25 फीसदी तक नुकसान हो गया है।
ऐसे समझें नुकसान
जिले में इस बार खरीफ की बुवाई एक जून से 15 जुलाई तक हो गई थी। इस अवधि में छितराई बरसात हुई। अंकुरण के समय प्राकृतिक पानी मिलने से फसलों की अच्छी बढ़वार हुई। इसके बाद 20 जुलाई से 30 जुलाई तक बरसात नहीं होने से दलहनी फसलों में नमी की कमी हो गई। इससे यलो मोजेक रोग की चपेट में आने से चंवळा की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। इस समय खरीफ की फसलों में फल व फूल बनने की अवस्था चल रही है। इस समय पौधों को सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है लेकिन अब बरसात नहीं होने से नुकसान का यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
जिले में इस बार खरीफ की बुवाई एक जून से 15 जुलाई तक हो गई थी। इस अवधि में छितराई बरसात हुई। अंकुरण के समय प्राकृतिक पानी मिलने से फसलों की अच्छी बढ़वार हुई। इसके बाद 20 जुलाई से 30 जुलाई तक बरसात नहीं होने से दलहनी फसलों में नमी की कमी हो गई। इससे यलो मोजेक रोग की चपेट में आने से चंवळा की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। इस समय खरीफ की फसलों में फल व फूल बनने की अवस्था चल रही है। इस समय पौधों को सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है लेकिन अब बरसात नहीं होने से नुकसान का यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है।
इस समय सख्त जरूरत…
यह सही है कि खरीफ की फसलों को इस समय बरसात की सख्त जरूरत है। बरसात में देरी होने पर खरीफ फसलों में नुकसान तय है। – प्रमोद कुमार, उपनिदेशक कृषि
यह सही है कि खरीफ की फसलों को इस समय बरसात की सख्त जरूरत है। बरसात में देरी होने पर खरीफ फसलों में नुकसान तय है। – प्रमोद कुमार, उपनिदेशक कृषि
चंवळा, मोठ, बाजरा व मूंगफली की फसलें प्रभावित हो गई है। सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो किसानों के सामने परेशानी बढ़ जाएगी।– मुकन सिंह, किसान