सीकर. धोरों की धरती में अब मोती की खेती भी होने लगी है। यह कमाल कर दिखाया है राजस्थान के सीकर जिले के दांतारामगढ़ उपखण्ड के किसानों ने
•Jan 15, 2018 / 06:49 pm•
vishwanath saini
सीकर. धोरों की धरती में अब मोती की खेती भी होने लगी है। यह कमाल कर दिखाया है राजस्थान के सीकर जिले के दांतारामगढ़ उपखण्ड के गांव कल्याणपुरा व रेनवाल के पास बगडिय़ों की ढाणी के किसानों ने। (सभी फोटो-राजेश वैष्णव)
यहां के किसान भगवान सहाय बगडिय़ा व हनुमान बगडिय़ा सीप पालन से मोती तैयार कर रहे हैं। किसान मोती की खेती से सालाना एक करोड़ रुपए कमा रहे हैं।
ये किसान पांच हजार सीप का पालन कर रहे हैं। इनसे करीब दस हजार मोती तैयार होंगे। प्रति मोती बाजार कीमत तीन सौ रुपए है।
किसानों द्वारा करीब एक बीघा में की जा रही मोती की खेती से सालाना आय एक करोड़ रुपए से अधिक होने की उम्मीद है।
जयपुर व अन्य स्थानों के जौहरी मोती खरीदनें को तैयार ही नहीं बल्कि मोती तैयार होने से पहले ही खरीददारों के फोन आने शुरू हो गए हंै।
पानी में रहने वाले सीप से मोती तैयार किए जाते हैं। सीप केरल,नागपुर आदि स्थानों से मंगवाई जाती है। एक सीप में दो मोती तैयार होते है।
मोती के बीज सीप में डालकर उन्हे चौबीस घंटे बिना खुराक के साफ पानी में तथा चार पांच दिनों तक दवायुक्त व खुराक वाले पानी में सीप को छोड़ा जाता है।
बाद में उन्हें जालीनुमा स्टेण्ड में टांगकर सीप को पानी के होद में लटकाया जाता है। सीप अपनी लार छोड़ती है वह बीज पर परत के रूप मे जमती रहती है और करीब दस बारह माह बाद सीप में रखी प्रतिमा या मोती (बीज) पर चमक आ जाती है।
सीप की खुराक का खर्च बहुत ही मामूली है। यूरिया आदि मिलाकर एक होद में डाला जाता है। पानी हरे रंग का सिवाल वाला हो जाता है उसके बाद सीप रखे होद में इस हरे पानी को मिलाया जाता है।
सीप मरने के बाद उसके अंदर का मांस पकाने के लिए होटल में बेच दिया जाता है तथा ऊपर का कठोर कवर खिलौने व सजावट के काम आता है।
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