बीदासर से आई थी 15 किलो की चांदी की मूर्ति, 250 साल चली परंपरा
इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं कि सीकर के दूसरे राजा शिवसिंह का विवाह करीब संवत 1778 यानी सन 1721 के आसपास हुआ था। उनकी रानी बीदासर निवासी बिदावतजीका को पिता भाव सिंह ने 16 सेर यानी करीब 15 किलो चांदी की मूर्ति उपहार में दी थी। जिसकी पूजा करने के बाद ही रानी भोजन करती थी। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने आगे भी राजरानियों से इस परंपरा को निभाने की मंशा रखी। जिसके बाद राजा समर्थ सिंह, नाहर सिंह, चांद सिंह, देवी सिंह, लक्ष्मणसिंह, रामप्रताप सिह, भैरुं सिंह, माधव सिंह व रावराजा कल्याण सिंह तक की 9 पीढिय़ों की रानियों ने गणेश मूर्ति की पूजा के बाद ही भोजन की उस परंपरा को 250 से भी ज्यादा वर्षों तक निभाया। लेकिन 1976 में कल्याणसिंहजी की रावरानी स्वरूप कंवर (जोधीजी) के निधन के दिन ही वह मूर्ति गायब हो गई।
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अंतिम संस्कार से पहले अंतिम दर्शन
गणेशजी की मूर्ति के अंतिम दर्शन रावरानी स्वरूप कंवर के अंतिम संस्कार से पहले ही हुए। रावरानी की अंत्येष्टि के बाद से ही वह मूर्ति राजमहल में नहीं दिखी। मूर्ति गायब होने पर युवराज हरदयाल सिंह की रानी त्रेलोक्य को नजदीकी लोगों ने मूर्ति चोरी का मुकदमा दर्ज कराने की सलाह भी दी। लेकिन, उन्होंने किसी को बेवजह आरोपी बनाने की बात कहते हुए उसे टाल दिया।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बयां की थी घटना
इतिहासकार पुरोहित के अनुसार सरवड़ी के अर्जुन सिंह रावजीका, खोरी के किशोर सिंह परसरामजीका व बड़ीपुरा निवासी लादूसिंह परसरामजीका गणेश मूर्ति के प्रत्यक्षदर्शी थे। एडीसी पद पर होने की वजह से उनका रनिवास में आना- जाना था। ऐसे में वे भी गणेश मूर्ति के दर्शन करते थे। बकौल पुरोहित मूर्ति चोरी की घटना की जानकारी उन्हें भी उन्हीं से प्राप्त हुई थी।