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सीकर में 700 क्विंटल से ज्यादा की खपत, डूंगरगढ़ से आ रहा है नकली मावा, मिलावटी दही बिगाड़ रहा सेहत

जिले में मिलावट का कारोबार जोरों पर है। रोजाना बाजार में आ रहा कई क्विंटल नकली मावा लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है

सीकरMay 01, 2018 / 03:04 pm

vishwanath saini

सीकर. जिले में मिलावट का कारोबार जोरों पर है। रोजाना बाजार में आ रहा कई क्विंटल नकली मावा लोगों की सेहत बिगाड़ रहा है और स्वास्थ्य विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है। सीकर में डूंगरगढ़, बीकानेर व अलवर के मिल्क केक की खपत बढ़ती जा रही है। जिले में रोजाना बीकानेर व डूंगरगढ़ से मावे के टीन आ रहे हैं लेकिन किसी भी जिम्मेदार विभाग ने जानकारी के बाद भी सुध नहीं ली। यही नतीजा है कि रोजाना तडक़े मिलावटी मावे के टिन आते हैं और खुलेआम बिक रहे हैं। सीकर शहर में मिलावटी मावे की अधिकांश बिक्री घंटाघर, फतेहपुर रोड सहित कई स्थानों पर होती है। पारम्परिक तरीके से मावा बनाने की लागत और समय की बचत को देखते हुए 60 प्रतिशत से अधिक मिष्ठान विक्रेता मिलावटी मावे से ही मिठाई तैयार कर रहे हैं। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग मिलावटी मावा सहित अन्य खाद्य सामग्री बेचने वालों पर कार्रवाई नहीं कर रहा।

 

 

पहले भी मिला है मिलावटी मावा
खाद्य विभाग की नमूना लेने के बाद जांच की प्रक्रिया में देरी से रिपोर्ट उलझ जाती है। पिछले वर्ष दीवाली पर एक प्रतिष्ठान से मावे के चार नमूने लिए थे जिनमें एक नमूना नकली मावा का मिला था। 2013-14 में मावे के तीन नमूनों में मिलावट थी। जांच रिपोर्ट में मावे में कम फैट व स्टॉर्च पाउडर मिला था जो कि उल्टी दस्त का प्रमुख कारण है। 2015 में मोरडूंगा में नकली मावे से बनी बर्फी व मिलावटी सब्जी के कारण दर्जनों लोग अस्पताल पहुंचे गए थे। इसके बावजूद विभाग ने आज तक अपने नमूनों की जांच की चाल को तेज नहीं किया।

 

 

नकली मावा:
डूंगरगढ़ व अलवर में मिलावट की शुरुआत दूध से होती है। यहां दूध में होने वाली मिलावट सबसे अधिक खतरनाक है। स्वास्थ्य विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी ने बताया कि मावे की लागत कम करने के लिए थोड़े से असली दूध में रिफाइंड सोयाबीन ऑयल मिला दिया जाता है। इसे हल्की आंच पर उबाला जाता है। ठंडा होने के बाद सेंट्रीफ्यूगल मशीन से इसे तेजी से मिक्स करके केमिकल मिलाकर दूध जैसी गंध व स्वाद दिया जाता है। इसके बाद इसमें सोडा, स्टॉर्च व वाशिंग पाउडर की निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। इससे तैयार दूध से मावा निकाल कर सस्ते भाव में बाजार में बेचा जाता है। मावे का वजन बढ़ाने के लिए स्टार्च व आलू मिलाए जाते हैं।

 

 

भसीजन में जागते हैं जिम्मेदार
योहार व शादियों के सीजन में दूध,दही व मावा की मांग बढ़ जाती है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रतिवर्ष अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता है। विभाग नमूने लेने के लिए जितने जोर-शोर से अभियान शुरू करता है लेकिन नाममात्र के नमूने लेकर अभियान को पूरा कर देता है। यही कारण है कि नमूनों के परिणाम आने में देरी होने से विभाग के हाथ हर बार खाली रह जाते हैं। फतेहपुर रोड पर डूंगरगढ़ के मावे की बिक्री में अहम भूमिका रखने वाले विक्रेता ने बताया कि मिलावटी मावा बेचने वाले टिन में ऊपर की एक परत असली मावे की रखते हैं जबकि नीचे की परतें मिलावटी होती हैं। असली व नकली मावे को गर्म करने पर पता चल जाता है। असली मावे को गर्म करने पर घी की मात्रा नजर आती है जबकि मिलावटी मावे को गर्म करने पर कोई असर नहीं होता है।

 

 

दही मे आरारोट व सैकरीन
गर्मी के मौसम में दही की खपत के कारण मिलावट का खेल जोरों पर है। कुछ व्यापारी उपभोक्ताओं की मांग पूरी करने के लिए दही में आरारोट व सैकरीन मिला देते हैं। इससे दही में पहले से मौजूद इकोलाई स्टेफाइलोकोकाई बेसिलो बैक्टिरिया सक्रिय हो जाते हैं। इसके अलावा मिर्च-मसालों में भी मिलावट के मामले कई बार सामने आए थे। जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषी के खिलाफ कार्रवाई करने से स्वास्थ्य विभाग भी पीछे हट जाता है।

 

 

-विभाग की ओर से मिलावट खोरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए जाएंगे। मिलावट की जांच करने की प्रयोगशाला जयपुर में होने से नमूनों की रिपोर्ट देरी से मिलती है। जिम्मेदारों को पाबंद किया जाएगा।
डॉ. अजय चौधरी, सीएमएचओ सीकर

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