तीन पीढिय़ां राजनीति में
सरपंच विद्या देवी के परिवार की तीन पीढिय़ां राजनीति से जुड़ी हुई है। आजादी के बाद जब पंचायतों का गठन हुआ उस समय उनके ससुर सुबेदार सेडूराम निर्विरोध सरपंच रहे। इनके पति मेजर शिवराम सिंह 1977 में कांग्रेस से टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन पराजित होने पर ग्रामीणों ने इन्हें निर्विराध सरपंच बनाया। इस सीट पर वे लंबे समय तक काबिज रहे। विद्या देवी विद्या देवी के पुत्र राम सिंह ने भी गांव की सरपंचाई की है। पौत्र मोंटू कृष्णयां निर्वतामान जिला परिषद सदस्य है।
इसलिए चुनी गई दादी
विद्या देवी के परिजनों ने बताया कि उनके पास चुनाव लडऩे के लिए अन्य कोई विकल्प ही नहीं था कि दादी के अलावा किसी दूसरे सदस्य का नामांकन भरा जा सके । जनता की मांग थी कि परिवार से कोई सदस्य खड़ा हो। लेकिन चुनाव आयोग के नियमों से सब महिला सदस्य फिट होने पर दादी की फुर्ती को देखते हुए चहेतों ने उन्हें खड़ा कर जिताने का परिवार को संबल दिया।
इनका कहना है:
97 वर्ष की होते भी सरपंच विद्या देवी में गांव के विकास को लेकर पूरी तरह से लगन है। उनकी दिनचर्या को देखते हुए लगता है कि वह युवा सरपंचों को भी मात देगी।
मूलचंद भाखर, पूर्व उपसरपंच
सरपंच का व्यवहार बहुत अच्छा है। गांव को इनसे काफी उम्मीदें है। इनका एक ही उद्देश्य है कि पंचायत का विकास करें।
श्रीचंद, ग्रामीण