ये है मामला
बता दें कि वर्तमान समय में सोन घडिय़ाल अभयारण्य में एक भी नर घड़ियाल नहीं है। विगत दो-तीन वर्ष पहले तक 150 से ज्यादा घड़ियालों के बच्चे थे। लेकिन, कुछ बच्चे पानी के तेज बहाव में बह गए तो कुछ अवैध रेत उत्खनन का शिकार हो गए। रेत के अवैध कारोबारी सोन नदी की मुख्य धारा को रोकर नदी से रेत निकाल ली। इसलिए कुछ बच्चे भटकर जंगल में चले गए तो कई बच्चे पानी कम होने के कारण नष्ट हो गए। सोन घड़ियाल अभयारण्य क्षेत्र में नर घड़ियालों की संख्या एक भी न होने के कारण अभयारण्य प्रबंधन ने चिंता जाहिर की थी। पर यह भी प्रयास पूरी तरह कागजी निकल गया।
बता दें कि वर्तमान समय में सोन घडिय़ाल अभयारण्य में एक भी नर घड़ियाल नहीं है। विगत दो-तीन वर्ष पहले तक 150 से ज्यादा घड़ियालों के बच्चे थे। लेकिन, कुछ बच्चे पानी के तेज बहाव में बह गए तो कुछ अवैध रेत उत्खनन का शिकार हो गए। रेत के अवैध कारोबारी सोन नदी की मुख्य धारा को रोकर नदी से रेत निकाल ली। इसलिए कुछ बच्चे भटकर जंगल में चले गए तो कई बच्चे पानी कम होने के कारण नष्ट हो गए। सोन घड़ियाल अभयारण्य क्षेत्र में नर घड़ियालों की संख्या एक भी न होने के कारण अभयारण्य प्रबंधन ने चिंता जाहिर की थी। पर यह भी प्रयास पूरी तरह कागजी निकल गया।
फरवरी से जून तक प्रजनन काल
घड़ियालों का प्रजनन काल फरवरी से जून के मध्य होता है। इस साल नर घड़ियाल मिलना संभव नहीं है। इससे मादा घड़ियालों के बीच प्रजनन नहीं हो पाएगा और वे अंडे नहीं दे पाएंगी। ऐसी स्थिति में सोन अभयारण्य में घड़ियालों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो चुका है।
घड़ियालों का प्रजनन काल फरवरी से जून के मध्य होता है। इस साल नर घड़ियाल मिलना संभव नहीं है। इससे मादा घड़ियालों के बीच प्रजनन नहीं हो पाएगा और वे अंडे नहीं दे पाएंगी। ऐसी स्थिति में सोन अभयारण्य में घड़ियालों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो चुका है।
लगातार घट रही संख्या
घड़ियालों की सुरक्षा को लेकर शासन की ओर से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का बजट खपाया जा रहा है। क्योंकि, घड़ियाल विलुप्त प्रजातियों में आते हैं। ये विश्व में सिर्फ पांच स्थानों पर पाए जाते हैं। इसके बाद भी प्रशासन की लापरवाही घड़ियालों की जान पर भारी पड़ रही है।
घड़ियालों की सुरक्षा को लेकर शासन की ओर से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का बजट खपाया जा रहा है। क्योंकि, घड़ियाल विलुप्त प्रजातियों में आते हैं। ये विश्व में सिर्फ पांच स्थानों पर पाए जाते हैं। इसके बाद भी प्रशासन की लापरवाही घड़ियालों की जान पर भारी पड़ रही है।