सीधी

76 साल की बूढ़ी मां की गोद में 36 साल का बेटा, मां के बाद कौन बनेगा सहारा…?

नौ महीने तक गर्भ में पल रहे शिशु को जन्म देकर मां जैसे जिंदगी की हर जंग जीत लेती है..फिर मां-पिता बड़ी होती संतान से सहारे की उम्मीद करते हैं..उम्मीद टूट जाती है…लेकिन तब क्या होता है जब जवान बच्चों को मां-बाप की जरूरत होती है… आप भी जरूर पढ़ें…36 साल के बेटे को गोद में रखकर पालने वाली 76 साल की बूढ़ी मां की दर्द भरी कहानी…

सीधीFeb 20, 2024 / 03:33 pm

Sanjana Kumar

दिन-रात एक करके मां-बाप बच्चों की परवरिश करते हैं…बड़े होकर बच्चे उनका सहारा बनेंगे और बड़े होते ही आजकल बच्चे बदल जाते हैं…लेकिन एक मां की ममता कभी नहीं बदलती…एक ऐसा ही उदाहरण बनी है मध्य प्रदेश के सीधी जिले की ये कहानी… यहां 76 साल की उम्र में सहारे की जरूरतमंद मां अपने 36 साल के बेटे की मुश्किल जिंदगी में राहत बनी हुई है… लेकिन अपने हौसलों से दिव्यांग बेटे की जिंदगी को आसान बनाने वाली इस मां की फिक्र बहुत बड़ी है…जिसे सुनकर शायद आपकी बेचैनी भी बढ़ जाए… लेकिन बेचैन करना हमारा मकसद नहीं… आज इस मां को के तड़पते दिल काे दिल को मदद की बहुत जरूरत है…

रुला देगी ये इमोशनल स्टोरी

76 वर्षीय बूढ़ी मां की गोद में 36 साल के दिव्यांग पुत्र सुखराम का चेहरा निर्दोष मुस्कान से चमक रहा है। जन्मजात दिव्यांगता के कारण सुखराम का कद नहीं बढ़ पाया। वे चारपाई से उठ भी नहीं पाते। लेकिन, सुखराम की इस कमजोरी ने कभी भी उनकी मां गनेसिया के प्यार और हौसले को कमजोर नहीं किया। हर माता पिता की लालसा कि बेटा बुढ़ापे की लाठी बनेगा। लेकिन जवान बेटे को गोद में पालना पड़े, इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे।

सीधी जिले के मझौली जनपद अंतर्गत पांड़ निवासी 76 साल की बेवा गनेसिया साहू की है। उसका बेटा सुखराम जन्म से ही दिव्यांग है। खिलाने-पिलाने से लेकर हर काम मां के हाथ सुखराम के शरीर का विकास नहीं हुआ। केवल चेहरा और पेट का भाग बढ़ा। हाथ और पैर छोटे ही रह गए। ऐसी हालत में वह ना तो चल पाता है और न ही बिस्तर से उठ पाता है। दिव्यांग होने के कारण सुखराम का हर काम उसकी 76 साल की मां ही करती है। इस तस्वीर ने ये तो साफ कर दिया कि मां की ममता कभी नहीं बदलती…

अब मां को सता रही है ये बड़ी चिंता

अब ढलती उम्र में बेवा मां की रातों की नींद गायब हो चली है। उसे यह डर सताने लगा है कि उसके बाद बेटे का क्या होगा? सुखराम के सिर से पिता का साया बचपन में उठ गया था। गनेसिया की तीन संताने हैं। दो लड़की और एक लड़का। मां ने मजदूरी कर बच्चों को पाला और लोगों के सहयोग से दोनों बेटियों का विवाह किया।

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बेटे की मुस्कान ने आत्महत्या से रोका

दिव्यांग बेटे की बेबसी को देखकर गनेसिया एक बार सुखराम के साथ मौत को गले लगाने के लिए टोकनी में लेकर घर से निकल पड़ी थी। हालांकि अंतिम समय में बेटे की मुस्कान ने उसे आत्महत्या करने से रोक लिया था। वही दिन था जब इस मां ने बेटे को गले लगाकर जीने का प्रण कर लिया था।

जब नहीं मिलता काम, लोग करते मदद

आर्थिक तंगी का आलम ये था कि जब किसी दिन काम नहीं मिलता था, तो ये बेबस मां बेटे को टोकनी पर रख गांवों की तरफ निकल जाती। तब लोग उसकी मदद कर देते थे।
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