इस पूरे घटनाक्रम पर खास बात ये कि 1967 में अर्जुन सिंह को हराने चंद्रप्रताप तिवारी वर्तमान विधायक शरदेंदु तिवारी के दादा हैं। 51 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हीं दोनों के राजनीतिक वारिस आमने-सामने थे। अजय और अर्जुन कांग्रेस की टिकट पर ही चुनाव मैदान में थे। जबकि, शरदेंदु तिवारी भाजपा और उनके दादा चंद्रप्रताप सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े थे। 1993 में भोजपुर से चुनाव हारने के बाद अजय सिंह 5 साल संगठन मजबूत करने का काम किया था। इस बार वे क्या निर्णय लेते हैं, यह समय ही बताएगा।
अजय सिंह के साथ एक अजब सा संयोग यह भी है कि विपक्ष में रहने के बाद वे जब-जब चुनाव हारते हैं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है। वर्ष 1990 से 1993 तक विपक्ष में रहने के बाद उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को घेरने के लिए चुरहट की बजाय भोजपुर से चुनाव लड़ा था। पटवा ने उन्हें चुनाव तो हरा दिया, लेकिन बहुमत ला पाने में सफल नहीं हो पाए थे। ठीक इसके विपरीत अजय सिंह चुनाव जरूर हार गए थे, लेकिन कांग्रेस की सरकार बनाने में सफल रहे।
अर्जुन सिंह के लिए विधायक पद छोडऩे वाले रणविजय प्रताप सिंह ने खुद तो चुनाव नहीं लड़ा पर उमरिया सीट रिजर्व होने तक उनके दोनों बेटे अजय और नरेंद्र सिंह मैदान में उतरे। वो विधायक भी बने, इसके बाद से संगठन में लगातार सक्रिय हैं। कांग्रेस के चित्रकूट विधायक नीलांशु चतुर्वेदी, गाडऱवारा की सुनीता पटेल, सतना के सिद्धार्थ कुशवाहा व सिहावल कमलेश्वर पटेल ने अजय के लिए पद छोडऩे की पेशकश की है।