शिवपुरी

कोठी नंबर 17 में चला था तात्याटोपे पर मुकदमा, यहीं मिली थी फांसी की सजा

जानिए ग्वालियर की गौरव गाथा में तात्या टोपे की वो कहानी, जब उन्हें फांसी की सजाई सुनाई गई थी…।

शिवपुरीAug 16, 2022 / 07:44 am

Manish Gite

शिवपुरी। आजादी के नायक अमरशहीद तात्याटोपे (tatya tope) को जब अंग्रेजों ने पकड़ा तो उन्हें शिवपुरी (shivpuri) में बंदी बनाकर रखा तथा शहर की कोठी नंबर 17 में चलने वाली अंग्रेजों की अदालत में तात्याटोपे (tatya tope) पर मुकदमा चलाया गया। जिसमें तात्याटोपे (Tantia Tope) ने फांसी की सजा को न केवल कबूल किया, बल्कि यह इच्छा भी जाहिर की थी कि मुझे खुले आसमान के नीचे फांसी पर लटकाया जाए। जिसके चलते तात्याटोपे को राजेश्वरी मंदिर के पास स्थित एक पेड़ पर फांसी दी गई। उस जगह पर न केवल अमर शहीद की आदमकद प्रतिमा लगाई गई, बल्कि उनके नाम से पार्क भी बनाया गया।

 

10 हजार का इनाम रखा था अंग्रेज सरकार ने

17 जून 1858 को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (jhansi rani lakshmi bai) ग्वालियर में अंग्रेजों से सीधे युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। इससे पहले 10 जून को रानी लक्ष्मीबाई और अली बहादुर को पकड़ने पर ब्रिटिश सेना ने दस-दस हज़ार रुपए के इनाम की घोषणा की थी। रानी लक्ष्मीबाई के निधन के बाद तात्या टोपे और राव साहेब को भी पकड़ने पर दस-दस हज़ार रुपए के इनाम की घोषणा की गई।

 

जगह बदलने में माहिर थे तात्या

ग्वालियर से निकलकर वे मथुरा गए और उसके बाद राजस्थान पहुंचे। वहां से वो पश्चिम की ओर गए और फिर वहां से दक्षिण की ओर। इससे यह भी जाहिर होता है कि वे अपनी यात्राओं की दिशा बदलते रहे थे। टोंक जिले के सवाई माधोपुर जाने के बाद वे पश्चिम में बूंदी जिला गए। वहां से भीलवाड़ा, गंगापुर गए तथा वहां से वापसी करते हुए मध्यप्रदेश के झालरा पाटन पहुंचे।

 

बोले तात्या टोपे के वंशज

तात्या टोपे के वंशज पराग टोपे दावा करते हैं कि तात्या टोपे की मौत युद्ध के दौरान हुई थी और ब्रिटिश सैनिकों से यह भिंड़त राजस्थानके छिपाबड़ोद मेें हुई थी। अपनी किताब ऑपरेशन रेड लोटस में पराग टोपे ने मेजर पेजेट के हवाले तात्या टोपे के अंतिम युद्ध के बारे में लिखा है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक पेजेटे ने लिखा है कि श्वेत अरबी घोड़े पर मौजूद तात्या टोपे की मौत लड़ाई में हुई थी, तथा उनके लोग शव ले जाने में कायमाब हुए थे।

 

कोठी नंबर 17 को बनाया तात्याटोपे का संग्रहालय

शिवपुरी शहर में जिस कोठी नंबर 17 में तात्याटोपे पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया था, उस कोठी को पुरातत्व विभाग ने संग्रहालय बना दिया। जिसमें तात्याटोपे के समय के हथियार, उनके द्वारा लिखे गए पत्र व पुराने चित्र भी इस सग्रहालय में मौजूद हैं। सदियों पुरानी इस कोठी की रिपेयरिंग न होने की वजह से पिछले साल बारिश में इसकी एक दीवार ढह गई थी।

 

कौन थे तात्या टोपे

तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग टोपे था। महाराष्ट्र का येवला उनका पैतृक गांव था, उनके पिता पांडुरंग एक पढ़े-लिखे शख्स थे, जिन्हें वेद और उपनिषद पूरी तरह याद थे। इसी वजह से बाजीराव द्वितीय ने उन्हें पुणे बुलाया। बाजीराव द्वितीय जब पुणे से निकलकर उत्तर भारत में कानपुर के निकट बिठुर आए तो पुणे से कई परिवार उनके साथ वहां पहुंचे। इनमें पांडुरंग परिवार भी शामिल था। पांडुरंग अपने बीबी, बच्चे रामचंद्र और गंगाधर के साथ बिठुर आ गए थे। बिठुर में तात्या टोपे, पेशवा नाना साहेब और मोरोपंत तांबे के संपर्क में आए। इसके बाद वे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के संपर्क में भी आए।

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