भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा को देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में उनके खेल के कारण पहचाना जाता है। गोल्डन ब्वॉय के नाम से मशहूर 26 साल के नीरज ने दुनियाभर की सभी प्रतियोगिताओं में देश का मान बढ़ा चुके हैं। ओलंपिक हो, वर्ल्ड चैंपियनशिप या फिर एशियन गेम्स… नीरज के भाले ने गोल्ड पर हर बारएकदम सटीक निशाना लगाया। स्टार एथलीट नीरज ने जैवलिन थ्रो का क्रेज देशभर में इतना बढ़ा दिया कि अब कई युवा इस गेम में रुचि रख रहे हैं। जैवलिन थ्रो के जरिए देश ही नहीं दुनियाभर की प्रतियोगिताओं में अपना भाला गाड़ने का सपना रखने वाला एक ऐसा ही खिलाड़ी मध्य प्रदेश में भी कड़ी मेहनत से तैयारी कर रहा है।
हम बात करे रहे हैं एमपी के शिवपुरी जिले के अंतर्गत आने वाले बदरवास के सजाई ग्राम में रहने वाले ऋषि लोधी की, जो जैवलिन थ्रो गेम के जरिए नीरज चोपड़ा की तरह देश का नाम ऊंचा करने का सपना लेकर कड़ी तैयारी में जुटा हुआ है। यही नहीं कड़ी मेहनत करते हुए ऋषि ने स्टेट कॉम्पिटिशन भी जीत लिया है। ऋषि का कहना है कि अब वो नेशनल में पदक जीतकर अपने शहर और राज्य का नाम रोशन करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।
पत्रिका से खास बातचीत के दौरान मध्य प्रदेश के जैवलिन खिलाड़ी ऋषि लोधी ने बताया कि देश के कई युवाओं की तरह गोल्डन ब्वॉय नीरज चोपड़ा उनके भी आईडियल हैं। उन्हीं के गेम से प्रभावित होकर उन्हें जैवलिन सीखने का शौक जागा। ऋषि ने बताया कि अपने खेल की प्रेक्टिस की शुरुआत में उन्होंने घर के पास मौजूद खेत और नदी में भाला फेंकना सीखा और कड़ी मेहनत के दम पर प्रदेश स्तरीय खेल प्रतियोगिता में भाग लेकर तीसरा स्थान प्राप्त किया है। अब ऋषि और भी कड़ी मेहनत करते हुए नेशनल में पदक जीतने की तैयारी कर रहा है।
ऋषि के पिता बुंदेल सिंह लोधी पेशे से शिक्षक हैं। उन्होंने बताया कि नीरज चोपड़ा का बड़ा फेन उनका बेटा जैवलिन थ्रो के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करने के लिए लगातार कड़ी तैयारी कर रहा है। शुरुआत में उसने खेत और नदी में भाला फेंककर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता क्वालिफाई की है। वो अपने बेटे द्वारा की जा रही आगे की तैयारी को लेकर भी काफी खुश हैं। उनका कहना है कि वो अपने बेटे के लिए नेशनल लेवल पर गोल्ड जीतकर लाने की कामना कर रहे हैं।
708 बीसी में प्राचीन ओलंपिक खेलों में जैवलिन थ्रो को शामिल किया गया था। हालांकि उस समय जैवलिन एक स्टैंड अलोन खेल नहीं था, बल्कि मल्टी-स्पोर्ट पेंटाथलॉन इवेंट का हिस्सा था। लेकिन साल 1908 में पहली बार लंदन ओलंपिक गेम्स में जैवलिन को मॉडर्न ओलंपिक गेम्स का हिस्सा बना लिया गया। महिलाओं के जैवलिन थ्रो की शुरुआत 1932 के लॉस एंजिल्स ओलंपिक में हुई थी।
पुरुषों प्रतियोगिताओं में इस्तेमाल होने वाले जैवलिन यानी भाले का वजन कम से कम 800 ग्राम और माप 2.6 मीटर से 2.7 मीटर के बीच होना चाहिए। महिलाओं के लिए न्यूनतम वजन 600 ग्राम होना चाहिए। जबकि भाले की लंबाई 2.2 मीटर से 2.3 मीटर के बीच होना चाहिए।
जैवलिन थ्रो में भाले को यथासंभव दूर तक फेंकना होता है। हालांकि थ्रोअर्स को अपने थ्रो को वैध मानने के लिए नियमों के एक सेट का पालन करना होता है, जो इस प्रकार हैं।
1- एथलीट को एक हाथ से भाला पकड़ना होगा। फेंकने वाले हाथ पर दस्ताने पहनने की अनुमति नहीं होती। एथलीट अपनी उंगलियों पर तब तक टेप लगा सकते हैं, जब तक इससे थ्रो के दौरान कोई अतिरिक्त सहायता नहीं मिलती। प्रतियोगिताओं से पहले जज टेपिंग की जांच करते हैं। दो या दो से ज्यादा उंगलियों को एक साथ टैप करने की अनुमति भी नहीं रहती।
2- फेंकने की पूरी प्रक्रिया के दौरान, भाला को ओवरहैंड स्थिति में रखा जाना चाहिए। यानी कंधे के ऊपर या फेंकने वाली भुजा के ऊपरी हिस्से पर। भाला छोड़ते समय और उसके उतरने से पहले, एथलीटों को थ्रोइंग आर्क या फाउल लाइन के पीछे रहना चाहिए।
3- एक बार जब उनकी बारी की घोषणा हो जाती है तो एथलीट को एक मिनट के अंदर अपना थ्रो पूरा करना होता है।
उपरोक्त किसी भी नियम को पूरा करने में विफलता के परिणामस्वरूप फाउल थ्रो होता है और एथलीट के प्रयास को गिना नहीं जाता।
भारत में एक सफल जैवलिन थ्रोअर बनने के लिए सबसे पहले खुद को डिस्ट्रिक्ट उसके बाद स्टेट और फिर नेशनल लेवल क्वालिफाई करना होगा। यानी हर खेल की तरह स्टेप बाय स्टेप आप जैवलिन में भी कामयाब हो सकते हैं। एक बार नेशनल जीतने के बाद आपको नेशनल कोच आगे की ट्रेनिंग देते हैं। इस खेल में डाइट, फिटनेस और आपकी कोचिंग तगड़े दर्जे की होनी चाहिए और इसके लिए आपको आर्थिक रूप से भी तैयार रहना होगा। खासकर फिजिकल फिटनेस जैवलिन के लिए बेहद जरूरी चीज है। इसके लिए आपको रेगुलर जिमिंग करनी होगी।
पिछले दिनों एक इंटरव्यू के दौरान नीरज चोपड़ा ने बताया था कि वो इस खेल के लिए आर्थिक रूप से अच्छे नहीं थे, लेकिन इसी के लिए उन्होंने पहले आर्मी ज्वॉइन की और वो अपने घर से 17 किलोमीटर दूर रोज ट्रेनिंग के लिए जाते थे।