कांग्रेस…नीटू बने रणनीतिकार, अन्य नेता भी डटे रहे
विजयपुर विधानसभा में 34 साल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे रामनिवास रावत के अलावा कांग्रेस में कोई दूसरा बड़ा नेता खड़ा नहीं हो सका। यही वजह है कि रावत के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस के सामने प्रत्याशी ढूंढने का संकट खड़ा हो गया और जब मुकेश मल्होत्रा को टिकट देकर परिणाम सकारात्मक आए तो कांग्रेस के लिए यहां नया द्वार खुला। इस दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित अन्य प्रदेशस्तरीय नेताओं ने तो चुनाव में ताकत झोंकी ही, लेकिन स्थानीय नेता भी पूरी तन्मयता से मैदान में डटे रहे। इसमें सबसे मुख्य रणनीतिकार रहे लोकसभा में मुरैना-श्योपुर से कांग्रेस प्रत्याशी रहे नीटू सिकरवार, जो पूरी तरह मैदान में डटे रहे। वहीं कांग्रेस जिलाध्यक्ष अतुल चौहान और श्योपुर विधायक बाबू जंडेल जैसे स्थानीय नेता भी सक्रिय रहे।
भाजपा…कई बड़े नेताओं के भविष्य पर संकट
विजयपुर विधानसभा में कांग्रेस 10 बार जीत चुकी है,लेकिन भाजपा भी यहां दमखम से चुनाव लड़ती रही है। लेकिन रामनिवास रावत के भाजपा में आने के बाद यहां के नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर संकट आ गया था, जो रावत की हार के बाद भी टला नहीं है। क्योंकि उपचुनाव के दौरान मुखर हो रहे भाजपा नेताओं को साधने के लिए संगठन-सरकार ने कई प्रयास किए, बावजूद जीत नहीं मिली। यही वजह है कि भाजपा के पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा और सीताराम आदिवासी के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा है। इसके साथ ही भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र जाट का भविष्य भी ये चुनाव संकट में डाल गया।
सिंधिया ने बनाई दूरी, उनके समर्थक भी रहे नदारद
विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में जहां भाजपा प्रत्याशी रामनिवास रावत के लिए पूरी सरकार और भाजपा संगठन जुट गया, वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल इस उपचुनाव से दूरी बनाई, बल्कि उनके गुट के नेता भी चुनाव प्रचार से नदारद रहे।
किसी दौर में रामनिवास रावत सिंधिया के श्योपुर जिले में सिपहसालार थे, लेकिन मार्च 2020 में जब सिंधिया कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए, तब रावत उनके साथ भाजपा में नहीं गए। माना जा रहा है कि अब 4 साल बाद रावत भाजपा में आए तो सिंधिया को ये रास नहीं आया, लिहाजा वे उपचुनाव में प्रचार के लिए नहीं आए। वहीं सिंधिया समर्थक और भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष बृजराज सिंह चौहान भी इस उपचुनाव से दूर ही रहे।