वन्यप्राणी चिकित्सक डॉॅ. अखिलेश मिश्रा ने बताया कि बाघिन स्वाभाविक रूप से एक-डेढ़ साल तक शावकों को साथ रखकर शिकार करना सिखाती और उनको अपने से दूर कर देती है। जो शावक शिकार कर पाते हैं, वे ही जीवित रह पाते हैं। क्योंकि कमजोर शावकों को दूसरे बाघ-बाघिन मार देते हैं। चूंकि इस बाघ शावक को पूर्व में भी उसकी मां बाघिन ने दो-तीन बार अपने से अलग कर चुकी है। लेकिन यह बाघ शावक शिकार कर अपनी खुराक भी नहीं जुटा पा रहा था। इससे यह लगातार कमजोर होता जा रहा था। तब ये शावक भटकते हुए पेंच पार्क से सटे टुरिया गांव क्षेत्र के एक रिसोर्ट तक पहुंच गया था।
रिसोर्ट से रेस्क्यू के बाद बाघ की हालत देखकर वन्यप्राणी चिकित्सक ने बताया कि विगत कुछ दिनोंं से उसकी मां बाघिन ने शावक को अपने से अलग कर दिया था, इसी वजह से वह कमजोर है और भोजन की तलाश में ग्रामीण क्षेत्र में आ गया है। बाघ शावक स्वयं शिकार कर जीवन निर्वाह में सक्षम ना होने के कारण उसे मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक ने जंगल में छोडऩे के स्थान पर वन विहार भेजे जाने का निर्णय लिया। जिसे शनिवार को विशेष वाहन से वन्यप्राणी चिकित्सक की निगरानी में वन विहार भोपाल के लिए रवाना कर दिया गया है।
मारे जाते हैं 80 फीसदी शावक
पेंच के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. अखिलेश मिश्रा ने ’पत्रिका‘ को बताया कि जन्म लेने वाले 80 प्रतिशत शावक दूसरे बाघ या बाघिन के साथ द्वंद में मारे ही जाते हैं। क्योंकि जो शावक मजबूत और शिकार करने में सक्षम होते हैं, वे ही जिंदा रह पाते हैं। यह शावक शिकार करने की स्थिति में नहीं है। यदि इसे पेंच के वन क्षेत्र में पुन: छोड़ा जाता तो निश्चित था कि यह किसी भी बाघ से सामना होने पर मारा जाता। इसलिए शासन ने निर्णय लिया कि इसे भोपाल के वन विहार शिफ्ट किया जाए, ताकि यहां बाड़े में इसे रखकर पर्याप्त खुराक दी जा सके और यह पुन: तंदुरूस्त हो जाए।