सिवनी. आश्विन शुक्ल पूर्णिमा बुधवार को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन दो वर्ष बाद उत्तर भाद्र नक्षत्र व धु्रव योग का संयोग व रवि योग का योग बन रहा है। पूर्णिमा 16 अक्टूबर की रात 7.47 बजे से आरंभ होकर 17 की शाम 5.34 बजे तक रहेगा। स्नान दान की पूर्णिमा गुुरुवार को मनेगा। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से अमृत बरसता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं की कलाओं के साथ अपनी शीतलता पृथ्वी पर प्रसारित करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन धन, वैभव की देवी मां लक्ष्मी चंद्रलोक से पृथ्वी पर आती है। यह पूर्णिमा सभी 12 पूर्णिमा में सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधीय गुण मौजूद रहता है। इनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दिन चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है। प्रेम और कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण भगवान कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था।
पंडित राकेश शर्मा ने बताया कि रवि योग के सुयोग में पूर्णिमा की महत्ता बढ़ गई है। इसके अलावा गर करण, धु्रव योग तथा बुधवार दिन होने से इसकी महत्ता बढ़ गई है। इस दिन रात्रि बेला में मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि, धन-लाभ व एश्वर्य में वृद्धि होती है।
पंडित राकेश शर्मा ने बताया कि रवि योग के सुयोग में पूर्णिमा की महत्ता बढ़ गई है। इसके अलावा गर करण, धु्रव योग तथा बुधवार दिन होने से इसकी महत्ता बढ़ गई है। इस दिन रात्रि बेला में मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि, धन-लाभ व एश्वर्य में वृद्धि होती है।
चन्द्र किरणें बरसाएंगी अमृत
शरद पूर्णिमा के रात्रि में चंद्रमा की सोममय रश्मियां पेड़-पौधों व वनस्पतियों पर पडऩे से उनमे भी अमृत का संचार हो जाता है। रात में चंद्र की किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरूप घरों के छतों पर रखा खीर अमृत सामान हो जाती है। उसमें चंद्रमा से जनित दोष शांति और आरोग्य प्रदान करने की क्षमता आ जाती है। यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी को मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्र की पीड़ा के कारण जातक को कफ, खांसी, सर्दी-जुकाम, अस्थमा, फेफड़ों और श्वास के रोग संबंधी परेशानियां रहती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र का अवलोकन व आराधना तथा शीतल खीर का प्रसाद ग्रहण करने से इन रोगों से मुक्ति मिलती है।
शरद पूर्णिमा के रात्रि में चंद्रमा की सोममय रश्मियां पेड़-पौधों व वनस्पतियों पर पडऩे से उनमे भी अमृत का संचार हो जाता है। रात में चंद्र की किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, उसके फलस्वरूप घरों के छतों पर रखा खीर अमृत सामान हो जाती है। उसमें चंद्रमा से जनित दोष शांति और आरोग्य प्रदान करने की क्षमता आ जाती है। यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी को मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। चंद्र की पीड़ा के कारण जातक को कफ, खांसी, सर्दी-जुकाम, अस्थमा, फेफड़ों और श्वास के रोग संबंधी परेशानियां रहती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र का अवलोकन व आराधना तथा शीतल खीर का प्रसाद ग्रहण करने से इन रोगों से मुक्ति मिलती है।
शरद पूर्णिमा का पौराणिक महत्व
आश्विन पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा देवों के चतुर्मास के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसलिए सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-संपदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस रात को मां लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर प्रकट होती हैं। इस रात जो मां लक्ष्मी को जो भी व्यक्ति पूजा करता हुआ दिखाई देता है। मां उस पर कृपा बरसाती हैं।
आश्विन पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा देवों के चतुर्मास के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, इसलिए सुख, सौभाग्य, आयु, आरोग्य और धन-संपदा की प्राप्ति के लिए इस पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस रात को मां लक्ष्मी स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर प्रकट होती हैं। इस रात जो मां लक्ष्मी को जो भी व्यक्ति पूजा करता हुआ दिखाई देता है। मां उस पर कृपा बरसाती हैं।