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सिवनी बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट से राहत

– एक माह तक पैरवी व तीन साल तक चुनाव लडऩे पर लगी थी रोक

सिवनीApr 11, 2024 / 07:31 pm

akhilesh thakur

सिवनी. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हाईकोर्ट जबलपुर के मुख्य न्यायाधिपति के पारित 20 मार्च के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सिवनी बार एसोसिएशन के १० पदाधिकारियों व कार्यकारिणी सदस्यों को हड़ाल के अह्वान के बाद एक महीने तक किसी भी अदालत में पेश होने एवं तीन साल तक बार एसोसिएशन के चुनाव लडऩे पर पाबंदी लगाई थी।

सीजेआई डीवाई चन्द्रचूड़ न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने आदेश पर रोक लगाने के साथ ही नसीहत दी कि वकीलों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि वकीलों को भी कुछ जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। आपको आवंटित कुछ जमीन पसंद नहीं आई और हड़ताल पर चले गए। इसके बाद कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी किया।
गौरतलब है कि सिवनी में नवीन न्यायालय भवन के लिए बीज निगम की जमीन आवंटन को लेकर अधिवक्ताओ में भारी रोष था। चूंकि आवंटित बीज निगम की भूमि सुरक्षा की दृष्टिकोण से सुरक्षित नहीं थी। इस बात को लेकर जिला अधिवक्ता संघ ने आमसभा आहूत की थी, जिसमें के आए निर्णय को सर्वमान्य रखते हुए 18, 19 व 20 मार्च को समस्त न्यायालीन कार्य से विरत रहने पर सभी ने सहमति व्यक्त की थी। उक्त आमसभा के निर्णय के बाद समस्त अधिवक्ता हड़ताल पर गए थे। यह हड़ताल आम जनता के हितों को लेकर की गई थी, जो न्याय की लड़ाई लडऩे वाले अधिवक्ताओं के साथ ही अन्याय हुआ।
इस पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने सिवनी बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों व कार्यकारिणी सदस्यों को अपना पक्ष रखने का व सुनवाई का अवसर दिए बिना बार एसोसिएशन सिवनी के पदाधिकारियों व कार्यकारिणी को एक माह तक न्यायालय में पैरवी करने पर रोक और तीन साल तक चुनाव पर पाबंदी लगाई थी। इसमें अध्यक्ष रविकुमार गोल्हानी, उपाध्यक्ष शिशुपाल यादव, सचिव रितेश आहूजा, सह सचिव मनोज हरिनखेड़े, कोषाध्यक्ष नवलकिशोर सोनी, कार्यकारिणी सदस्यों में ऋषभ जैन, सत्येंद्र सिंह ठाकुर, अशरफ खान, विपुल बघेल एवं प्रवीण सिंह चौहान थे। अब उपरोक्त पदाधिकारियों व कार्यकरिणी सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल गया है।
अधिवक्ता रितेश आहूजा ने कहा कि यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। हमे दबाने की पूरी कोशिश की गई थी पर हम हार नहीं मानेंगे। वर्तमान न्यायालय भवन विस्तारीकरण को लेकर हमारी मांग वैधानिक थी, जिसे हम वैधानिक रूप से ही आगे हासिल करेंगे। हमारे ऊपर जो कार्रवाई की गई वो पूर्णत: अनुचित थी। हमें अपना बचाव रखने का अवसर दिए बिना हमें एक माह के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिस पर हमने सुप्रीम कोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया है।

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