शहर की महिला उद्यमी दीपमाला नंदन मैसर्स इएक्सएलडीई बैटरी मैन्युफैक्चरिंग अब किसी नाम की मोहताज नहीं है। देश के साथ विदेशों में भी उन्होंने नाम कमाया हैं। शासन की मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से वर्ष 2015 में 25 लाख रुपए का ऋण लेकर उद्योग प्रारंभ किया और ऊंचाइयों की ओर दिन-रात कदम बढ़ाती चली गई। उनके कार्य में पति विजय नंदन का सहयोग सराहनीय है। पति विजय एक समय मजदूरी करते थे। इनकी कंपनी में निर्मित बैटरी की उच्च गुणवत्ता को देखते हुए भारत सरकार के निर्देश पर लघु उद्योग निगम मध्यप्रदेश अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर्स रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में प्रचार-प्रसार के लिए भेज चुकी है। मप्र शासन के ग्लोबल इन्वेस्टर्स सम्मिट 2016 इंदौर में भी इनकी बैटरी को प्रचार-प्रसार के लिए भेजा गया था। कोविड-19 में जब देशभर में छटनी हो रही थी। तब भी इन्होंने अपने स्थापित कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया। वर्ष 2021 में पुन: करोना काल प्रभावी हुआ तो भी उनकी बैटरी बाजार में बिक्री के लिए निर्मित की जा रही थी।
वर्तमान में कंपनी की निर्मित बैटरी की प्रदेश के 40 एवं देश के दूसरे प्रदेशों के लगभग 50 जिलों में बिक्री हो रही है। कंपनी की बैटरी की मांग नाइजीरिया, युगांडा, सऊदी अरब, नेपाल, दुबई आदि देशों से आ रही है। कंपनी का टर्न ओवर एक करोड़ के ऊपर पहुंच चुका है। कंपनी में 12 स्थाई कर्मचारी है। इनको 125000 रुपए प्रतिमाह वेतन दिया जाता है। कंननी के मशीन की कीमत करीब 40 लाख व कच्चा माल 50 लाख रुपए कीमत के हैं। प्रतिदिन करीब 20 बैटरी का निर्माण किया जा रहा है।
पहले की मजदूरी अब चलाते हैं दो सीमेंट ब्रिक्स फैक्ट्री
गोपालगंज निवासी पप्पू चंद्रवंशी पहले सीमेंट ब्रिक्स पर मजदूरी करते थे। अब दो फैक्ट्री चलाते हैं। उनके इस कार्य में पत्नी मोनी चंद्रवंशी का पूरा सहयोग है। मजदूरी करते समय वे पाई-पाई को मोहताज थे। पत्नी मोनी ने आगे बढ़कर सहयोग किया और अब वे छह लोगों को रोजगार दे रहे हैं। पत्नी मोनी ने राज्य शासन की मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना से 25 लाख रुपए का ऋण लिया। उस पैसे से सीमेंट ब्रिक्स फैक्ट्री (आरपी सीमेंट ब्रिक्स प्रोडक्ट) का कार्य गोपालगंज में चालू किया। जब इससे लाभ मिलने लगा तो पप्पू ने व्यक्तिगत लोन लेकर कलबोड़ी में भी एक फैक्ट्री शुरू कर दिया। एक फैक्ट्री से सारा खर्च निकालने के बाद करीब 30 हजार रुपए की कमाई हो जाती है।
मजबूरी में शुरू किया पापड़ बेलना अब बन गया उद्योग, चार लोगों को मिला रोजगार
शहर के काली चौक निवासी उर्मिला दुर्गेश सोनी कभी गृहिणी थी। अब पापड़ का उद्योग चलाती है। पति दुर्गेश सोनी होटल में मैनेजर थे। उस समय उनकी तबियत खराब हो गई। नौकरी छोडऩी पड़ी। तब उर्मिला के कंधे पर पुत्र की पढ़ाई-लिखाई के साथ परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारा। पहले हाथ से पापड़ बेलने का कार्य किया। उस समय उनको एक किग्रा पापड़ बनाने में करीब साढ़े तीन घंटे लगते थे, जिसकी मजदूरी करीब 30 रुपए तक मिलती थी। उसी समय पड़ोस में निवासरत स्व. सतीश व्यौहार (शासकीय शिक्षक) से मुलाकात हुई। उन्होंने उर्मिला के संघर्षों को सराहा और पापड़ बेलने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। बतौर उर्मिला उन्होंने कार्य को आधुनिक एवं विस्तृत करने के लिए कहा फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में पुत्र राज सोनी ने मशीनों की जानकारी इक_ी की। करीब आठ वर्ष बाद पुत्र राज ने जिला उद्योग कार्यालय से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत ऋण पांच लाख रुपए का ऋण लेकर पापड़ बेलने की मशीन क्रय किया। आठ वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद घरेलू कार्य एक व्यापार में बदल गया और उस व्यापार को पूजा पापड़ का नाम दिया गया। इससे आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। वर्ष 2022 में पापड़ निर्माण की पूर्ण आधुनिक यूनिट क्रय कर लिया गया। उर्मिला ने बताया कि अब 45 मिनट में एक किग्रा दाल पीसने, बेलने से सूखाने तक का कार्य पूरा हो जाता है। कभी मजबूरी में शुरू किया गया कार्य आज मेरा अच्छा व्यापार बन गया है। यह मैंने उस समय बिल्कुल नहीं सोचा था। बताया कि इस उद्योग ने पति दुर्गेश सोनी, भतीजी राशि सोनी सहित अन्य चार लोग के रोजगार का निर्माण कर दिया है। वर्तमान में यह उद्योग शहर में किसी नाम का मोहताज नहीं है।
शहर के काली चौक निवासी उर्मिला दुर्गेश सोनी कभी गृहिणी थी। अब पापड़ का उद्योग चलाती है। पति दुर्गेश सोनी होटल में मैनेजर थे। उस समय उनकी तबियत खराब हो गई। नौकरी छोडऩी पड़ी। तब उर्मिला के कंधे पर पुत्र की पढ़ाई-लिखाई के साथ परिवार चलाने की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारा। पहले हाथ से पापड़ बेलने का कार्य किया। उस समय उनको एक किग्रा पापड़ बनाने में करीब साढ़े तीन घंटे लगते थे, जिसकी मजदूरी करीब 30 रुपए तक मिलती थी। उसी समय पड़ोस में निवासरत स्व. सतीश व्यौहार (शासकीय शिक्षक) से मुलाकात हुई। उन्होंने उर्मिला के संघर्षों को सराहा और पापड़ बेलने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। बतौर उर्मिला उन्होंने कार्य को आधुनिक एवं विस्तृत करने के लिए कहा फिर उन्हीं के मार्गदर्शन में पुत्र राज सोनी ने मशीनों की जानकारी इक_ी की। करीब आठ वर्ष बाद पुत्र राज ने जिला उद्योग कार्यालय से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के अंतर्गत ऋण पांच लाख रुपए का ऋण लेकर पापड़ बेलने की मशीन क्रय किया। आठ वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद घरेलू कार्य एक व्यापार में बदल गया और उस व्यापार को पूजा पापड़ का नाम दिया गया। इससे आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। वर्ष 2022 में पापड़ निर्माण की पूर्ण आधुनिक यूनिट क्रय कर लिया गया। उर्मिला ने बताया कि अब 45 मिनट में एक किग्रा दाल पीसने, बेलने से सूखाने तक का कार्य पूरा हो जाता है। कभी मजबूरी में शुरू किया गया कार्य आज मेरा अच्छा व्यापार बन गया है। यह मैंने उस समय बिल्कुल नहीं सोचा था। बताया कि इस उद्योग ने पति दुर्गेश सोनी, भतीजी राशि सोनी सहित अन्य चार लोग के रोजगार का निर्माण कर दिया है। वर्तमान में यह उद्योग शहर में किसी नाम का मोहताज नहीं है।