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सेंधवा

विरासत – योद्धाओं की शरण स्थली रहा है सेंधवा का किला

चालिस एकड़ क्षेत्र मेें बना है ऐतिहासिक परमारकालीन किला

सेंधवाNov 29, 2020 / 10:23 am

vishal yadav

Sendhwa historical pre-historic fort

Sendhwa historical pre-historic fort

बड़वानी/सेंधवा. कभी योद्धाओं की शरण स्थली रहा सेंधवा का किला अब जर्जर स्थिति में आ चुका है। परमारकाल में 40 एकड़ क्षेत्र में बनाए गए इस किले की दीवारें अब दरकने लगी है। नगर की शान के नाम से जाना जाने वाले किले में रखी तोपें कभी अपने गर्जना से दुश्मनों के होश उड़ा देती थी। अब इनकी हालत भी खस्ता है। कुछ तोप किले की दीवारों पर है। जहां इनकी कोई देखरेख नहीं होती। दीवारों पर भी झाडिय़ां उगती जा रही है। किले की दशा सुधार दी जाता तो पर्यटन के लिहाज से ये स्थान काफी महत्वपूर्ण हो सकता है। बता दें ये स्थिति मप्र के सेंधवा नगर स्थित किले की है।
तोपों की सुध नहीं
किले में मौजूद तोपें बेहाल हैं। किले के मुख्य गेट की दीवार के ऊपर एक तोप मौजूद है। तीसरे गेट के ऊपर भी एक तोप पड़ी हुई है। इनकी कोई देख-रेख नहीं होती। सेंधवा नगर के झंडा चौक, मंडी के गार्डन में, नपा परिसर में भी एक-एक तोप मौजूद हैं। पूर्व में ये तोपें किले के अंदर ही मौजूद थी। यहां पर प्राचीन किले में सुरंग भी मौजूद थी। ये सुरंग सेंधवा किले से भंवरगढ़ किले तक जाती थी। युद्ध के दौरान इसी सुरंग के माध्यम से सैनिक दोनों किलों तक आया जाया करते थे।
सैंधव से बना सेंधवा
कहा जाता है कि किसी समय सेंधवा घोड़े की बड़ी मंडी थी। अच्छी नस्ल के घोड़ों के लिए राजा-महाराजा यहां आते थे। घोड़े की बड़ी मंडी होने की वजह से नगर का नाम सेंधवा पड़ा। बता दे कि घोड़े को सैंधव नाम से भी जाना जाता है। किले में मुख्य द्वार के पास घोड़ों को बांधने के लिए अस्तबल भी बना हुआ था, लेकिन अब इसका अस्तित्व खत्म हो चुका है।
पहले था घना जंगल
पहले सेंधवा एवं आसपास के क्षेत्रों में घना जंगल था। जंगली जानवरों की भरमार थी। यहां की आबादी किले के अंदर निवास करती थी। सूरज ढलने के बाद कम ही लोग किले से बाहर आते थे। किले का बड़ा गेट बंद कर दिया जाता था। किले के अंदर कई कमरे एवं भवन भी बने होने की मान्यता है। बताया जाता है कि गोडाउन निर्माण के दौरान हुई खोदाई में कई कमरों के अवशेष नजर आए, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया।
चारों तरफ थे तालाब
किले के चारों कोनों पर भव्य तालाब बने थे, ताकि दुश्मन किले में प्रवेश न कर पाए। बढ़ती आबादी एवं समय के साथ ये तालाब अब खत्म हो चुके हैं। किले के अंदर पानी के लिए दो तालाब अभी भी मौजूद हैं। जलस्तर गिरने एवं भीषण गर्मी के बावजूद इन तालाबों में पानी बना रहता है।
जर्जर स्थिति में किला
विशेषज्ञों के मुताबिक सेंधवा का किला परमार कालीन है। उत्तर दक्षिण की सीमाओं की रक्षा के लिए इसका निर्माण किया गया था। सेना की टुकड़ी भी यहां तैनात रहती थी। शस्त्रागार भी यहां मौजूद था। इसकी निशानियां तोपों के रूप में आज भी किले की दीवारों पर दिखाई देती हैं। देखरेख न होने के चलते किला एवं तोप अब जर्जर स्थिति में पहुंचने लगे है। ऐतिहासिक धरोहर इतिहास के पन्नों में गुम न हो जाए, इसके लिए गंभीरता से चिंतन करना चाहिए।

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