जापान ( japan ) स्थित टोक्यो के मेडिकल रिसर्च एन्ड डेंटल यूनिवर्सिटी( university ) में की गई है। यहां के स्टेम सेल्स बायोलॉजी डिपार्टमेंट की एमी निशिमुरा ने बताया कि उम्र के बढ़ने से त्वचा में COL17A1 की मात्रा घटती रहती है। इसके अलावा सूरज की परा बैंगनी किरणें और तनाव भी इसके दुश्मन होते हैं।
हमारे शरीर में लगातार डेड स्कीन सेल्स ( skin cells )होने के बाद नए सेल्स बनने का सिलसिला चलता रहता है। एेसा हमारे त्वचा के साथ भी होता है। COL17A1 की कमी के चलते कमजोर सेल्स ही अपना प्रतिरूप बनाती रहती हैं। यानी जो स्कीन में आने वाले नए सेल्स होते हैं वो भी कमजोर ही होते हैं। जिसका असर स्कीन पतली होने के कारण आसानी से नुकसान पहुंचने लगता है। निशिमुरा ने बताया, “हर दिन हमारी त्वचा में थके और पुराने स्टेम सेल्स की जगह स्वस्थ स्टेम सेल्स ले सकते हैं।”
शोध में चूहे के पूंछ का इस्तेमाल किया गया। जिसमें रिसर्चर जानना चाहते थे कि COL17A1 के पूरी तरह खत्म हो जाने के बाद भी क्या कोई ऐसी प्रक्रिया आजमाई जा सकती है जिससे यह प्रोटीन फिर से बनने लगे। इसके लिए उन्होंने दो रसायनों पर ध्यान दिया – एपोसिनीन और Y27632. इन दोनों ही रसायनों के सकारात्मक असर दर्ज किए गए। नेचर पत्रिका में छपी इस रिपोर्ट में लिखा गया है, “इन रसायनों के इस्तेमाल के बाद त्वचा पर हुए घावों पर काफी असर देखा गया और वे जल्द ठीक हो सके।”
रिसर्च को रिव्यू करने वाले कोलोराडो यूनिवर्सिटी के दो प्रोफेसरों ने नेचर पत्रिका में लिखा है कि इससे पहले इस प्रक्रिया को केवल फलों में ही जांचा गया है. यह पहला मौका है जब इंसानी त्वचा पर इस प्रक्रिया के असर पर कोई शोध हुआ हो। एमी निशिमुरा ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि शोध में मिली सफलता के चलते अब इनकी गोलियां बनाई जा रही हैं। और इसके लिए दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर इसको आगे बढ़ाएंगे। साथ ही भविष्य में इस एक्सपेरिमेंट को दूसरे अंगों पर भी किया जाएगा। जिससे खराब हो चके अंगों की मरम्मत की जा सके।