नए साक्ष्य से संकेत मिलते हैं कि समलैंगिक व्यवहार आनुवांशिक प्रभावों से नियंत्रित होते हैं और समलैंगिक लोग विपरीत लिंगियों की तुलना में काफी कम प्रजनन करते हैं। ऐसे में दुनिया भर के वैज्ञानिक इस सवाल पर मंथन कर रहे हैं। पर्यावरणीय कारक समलिंगी शारीरिक लक्षणों की अभिव्यक्ति में भूमिका निभाते हैं, जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका प्रभाव इतना ज्यादा नहीं है कि कोई विपरीतलिंगी जीव समलैंगिक हो जाए।
विज्ञानी काफी दिनों से इस बात पर बहस कर रहे थे कि समलिंगियों का व्यवहार किस तरह मानव विकास के सिद्धांत के साथ फिट बैठता है। इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ पडोवा में विकास मनोविज्ञान की प्रोफेसर आंद्रिया कैम्पेरियो सियानी ने पीटीआई को बताया, ‘डार्विन के सिद्धांत का विरोधाभास कहता है कि प्रजनन को बढ़ावा नहीं देने वाली जीन को बनाए रखना असंभव है, जैसा कि समलैंगिकता में होता है। चूंकि समलैंगिक विपरीत लिंगियों की तुलना में बहुत कम प्रजनन करते हैं, इसलिए इस प्रवृति को बढ़ावा देने वाली जीन तेजी से विलुप्त हो जानी चाहिए।
सियानी ने इस सवाल का जवाब देने के लिए काफी शोध किया है कि समलैंगिक मानव आबादी से विलुप्त क्यों नहीं हुए। उनका कहना है कि इस विरोधाभास ने लंबे समय तक आनुवांशिक परिकल्पना को छोड़ रखा था और इससे संकेत मिलते हैं कि समलैंगिक किसी पाप और दुर्व्यवहार के कारण ऐसा बर्ताव करते हैं जिसे थेरेपी के जरिए खत्म किया जा सकता है।’
वैज्ञानिकों ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं कि समलैंगिकता ऐसा व्यवहार है जो जैविक या आनुवांशिक प्रभावों के कारण पैदा होती है। बेंगलूर के जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर अडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर) में विकास जीव-विज्ञान में पीएचडी शोधार्थी मनस्वी सारंगी ने कहा, ‘विपरीत ***** वाले व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने की पूर्ववृत्ति का मकसद प्रजनन और आने वाली पीढ़ियों में जीन को भेजना है। बहरहाल, समलैंगिक व्यवहार काफी व्यापक है और नया नहीं है।’
सारंगी ने कहा, ‘समलैंगिक व्यवहार दिखाने वाली विभिन्न प्रजातियों पर किए गए कई अध्ययन दिखाए गए हैं ताकि जीवों को विकासात्मक लाभ दिए जा सकें।’ जेएनसीएएसआर के एवोल्यूशनरी ऐंड ऑर्गेनिज्मल बायोलॉजी यूनिट की असोसिएट प्रोफेसर टी एन सी विद्या के मुताबिक, समलैंगिक पुरुषों में जीन के कुछ प्रकार बहुत सामान्य हैं। उन्होंने कहा, ‘जहां तक मैं जानती हूं, यह साफ नहीं है कि समलैंगिकता किस हद तक एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने वाली है।’
हालांकि भारत में यह संभव है कि अदालत के फैसले के बाद भी काफी सालों तक भारतीय समाज समलिंगियों को एक बीमार और अपराधी की तरह देखता रहेगा। लेकिन इतना जरूर है कि अानुवांशिक कारण होने का प्रमाण समलिंगियों को काफी हद तक नकारात्मकता से बाहर निकाल पाएगा।