हाल ही इनके बनाए पैसेंजर ड्रोन ने ऑस्टिन और टेक्सास में 15 मिनट की उड़ान भरी जिसमें 17,430 रुपए (करीब 249 अमरीकी डॉलर) का खर्च आया। पैसेंजर एयरक्राफ्ट ने जब उड़ान भरी तो लोगों का हुजूम उसे देखता रहा। सभी की आंखों में भविष्य की यातायात व्यवस्था नजर आ रही थी। इनका दावा है कि ऑस्टिन के बाद अन्य 25 शहरों में इसके इस्तेमाल पर रणनीति बनेगी जिससे पर्यटकों का दिन रोमांच से भर दिया जाए। मैट को उम्मीद है कि इस आधुनिक पैसेंजर ड्रोन पर फ्लाइंग एविएशन फेडरेशन भी अपनी मुहर लगा देगा।
हेक्सा एयरक्राफ्ट की उड़ान पर स्थानीय पर्यावरण प्राधिकरण को आपत्ति है कि इसका प्रयोग पैसेंजर एयरक्राफ्ट के तौर पर नहीं हो सकता है। मैट चेजन जो बोइंग इंजीनियर होने के साथ मैकेनिकल और स्पेस इंजीनियर हैं। वे मानते हैं कि समय के साथ लोगों और जिम्मेदार विभागों में इसके प्रति भरोसा बढ़ेगा। इसका इस्तेमाल करने में कोई हिचक नहीं होगी समय के साथ पूरी दुनिया इसका प्रयोग करेगी।
अगले 10 वर्ष खास
अगले 10 वर्षों में हेक्सा एयरक्राफ्ट शहरी क्षेत्रों में यातायात व्यवस्था को बेहतर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसका सबसे अधिक फायदा व्यस्त ट्रैफिक के समय में होगा जिसमें लोग 90 मिनट की दूरी को 10 मिनट में तय कर सकते हैं।
लाइसेंस नहीं चाहिए
पैसेंजर ड्रोन के लिए फ्लाइंग लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के नियमों का पालन करना जरूरी है। पैसेंजर ड्रोन दिन की रोशनी में ही उड़ान भरेगा। लोग इसे अपने मनोरंजन के तौर इस्तमाल कर सकते हैं।
जॉयस्टिक से कंट्रोल होगा पूरा ड्रोन
ड्रोन की तरह दिखने वाले इस पैसेंजर एयरक्राफ्ट को जॉयस्टिक और फ्लाइट कंप्यूटर की मदद से नियंत्रित किया जाएगा। एक सीट वाले इस पैसेंजर ड्रोन का वजन करीब 200 किलो (432 पाउंड) होगा जिसमें मोटर और बैटरी का वजन भी शामिल है। इसमें बैठने वाले पायलट का वजन 113 किलो (250 पाउंड) से अधिक नहीं होना चाहिए जिससे सुरक्षित यात्रा हो सके। जो लोग जॉयस्टिक फ्रेंडली हैं उन्हें इस पैसेंजर ड्रोन को उड़ाने में कोई भी परेशानी नहीं होगी। जीपीएस सिस्टम से लैस इस ड्रोन में आधुनिक लेवल की प्रोग्रामिंग और टेक्नोलॉजी को शामिल किया गया है। उड़ान के दौरान जैसे ही ड्रोन की बैट्री खत्म होने लगेगी उससे पहले ही वे लॉन्च साइट पर अपने आप उतर जाएगा। कंपनी इस साल से ऑस्टिन के झील वाले क्षेत्रों में पैसेंजर ड्रोन का इस्तेमाल करेगी जहां पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं ताकि लोग इस नई तकनीक से रू-ब-रू हो सकें।
भारत में ड्रोन से एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल पहुंचेगा अंग
देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना ड्रोन से सीमा पर नजर बनाए हुए है। हाल ही केंद्रीय उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने बताया है कि विभाग ने नई ड्रोन नीति बनाई है। इसके तहत दो अस्पतालों के बीच ड्रोन कॉरिडोर बनेगा जिससे कैडेवर से निकाला गया अंग एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक प्रत्यारोपण के लिए पहुंचाया जा सकेगा।
पीटर हॉली, टेक्नोलॉजी रिपोर्टर वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत