विज्ञान और टेक्नोलॉजी

इस महीने मंगल के करीब होगी धरती, 15 साल बाद मंगल पर कदम रखेगा इंसान

इस साल जुलाई में पृथ्वी और मंगल ग्रह 15 वर्षों में सबसे करीब आएंगे।

Jan 12, 2018 / 10:20 am

Priya Singh

नई दिल्ली। कई सालों से दुनियाभर के वैज्ञानिक और अंतरिक्षयात्री मंगल ग्रह पर जाने की योजना पर काम कर रहे हैं। संयोग से यह साल यानी 2018 इस योजना को सच कर दिखने का समय लग रहा सच हो सकता है। इस साल जुलाई में पृथ्वी और मंगल ग्रह 15 वर्षों में सबसे करीब आएंगे। ऐसे समय में इंसान को मंगल तक पहुंचने में सिर्फ 200 दिन ही लगेंगे। लेकिन ना ही अंतरिक्ष एजेंसियां और ना ही वैज्ञानिक इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। इसी वजह से 15 वर्ष बाद जब ऐसा संयोग दोबारा बनेगा, तब इंसान के मंगल पर कदम रखने की संभावना है। नासा ने इस योजना की पुष्टि भी कर दी है।
पृथ्वी से दूरी है कम तो यात्रा होगी जल्दी पूरी

इस साल जुलाई में जब पृथ्वी और मंगल के बीच दूरी सबसे कम होगी तो इस वजह से मंगल तक पहुंचने में मात्र 200 दिन लगेंगे। यह समय निकल जाने बाद दोनों ग्रहों के बीच दूरी बढ़ने पर मंगल तक जाने में 250 दिन लगेंगे। ठीक ऐसा ही 15 वर्ष बाद होगा।
इस ऐतिहासिक पल तैयारी में जुटी दुनिया

आपको बता दें दुनियाभर के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र और निजी कंपनियां निकट भविष्य में मंगल पर लोगों को उतारने की तैयारियां कर रही हैं। नासा ने 15 वर्ष का लक्ष्य रखा है तो निजी कंपनी स्पेस एक्स 2024 में ही मंगल पर इंसानों को ले जाने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है।
यात्रा में चुनौतियां

मंगल अभियान में तीन बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

रॉकेट का खर्चा है बहुत
इस बहुत खर्चीले अभियान की लागत कम करने के लिए सबसे पहले दोबारा इस्तेमाल होने में सक्षम रॉकेट बनाने होंगे। स्पेस एक्स कंपनी काफी समय से ऐसे रॉकेटों के निर्माण पर काम कर रही है। कंपनी अपने सभी रॉकेट हटाकर उनकी जगह ऐसा रॉकेट लाने की तैयारी कर रही है जो किसी लांच व्हीकल से प्रक्षेपित किया जा सकेगा। बीएफआर नाम का यह रॉकेट 100 लोगों और 1.5 लाख किग्रा वजन ले जाने में सक्षम होगा।
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विकिरण की भी समस्या

साथ ही साथ सूर्य की हानिकारक किरणों से अंतरिक्षयात्रियों को कई खतरे होते हैं। मंगल तक जाने में एक व्यक्ति को परमाणु संयंत्र में सालाना होने वाले विकिरण से 15 गुना अधिक विकिरण झेलना पड़ेगा। बचाव के लिए रॉकेट के ढांचे को मजबूत करना और वॉटर-जैकेट की तकनीक भी प्रभावी नहीं होगी। रॉकेट के ऊपर मजबूत कवच लगाकर विकिरण से बचा जा सकता है लेकिन इससे रॉकेट के कुल वजन में बढ़ावा होगा, जिससे ईंधन खपत बढ़ेगी।
बेचैनी का भी दर

लंबे समय तक अंतरिक्ष के सन्नाटे और अंधेरे से घिरे होने की वजह से अंतरिक्षयात्रियों को अवसाद या ध्यान की कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि अंतरिक्षयात्री गहन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरते हैं। पिछले पांच वर्षों से हाइ-सीस हवाई स्पेस एक्सप्लोरेशन एनालॉग एंड स्टिमुलेशन प्रोजेक्ट के तहत अंतरिक्षयात्रियों के अलग-अलग दल को हवाई द्वीप के पास आठ महीने तक एकांत में रखा जा रहा है, जिससे वे मंगल के वातावरण को ठीक कर सकें।
अंतरिक्षयात्रियों के खालीपन को दूर करने के लिए स्पेस एक्स अपने बीएफआर रॉकेट में जीरो-ग्रैविटी गेम्स, फिल्में, रेस्त्रां, केबिन, लेक्चर हॉल आदि लगा रही है। इस वर्ष मई में नासा मार्स इनसाइट अभियान लांच करने जा रहा है, जो मंगल पर भूकंपीय गतिविधि का जायजा लेगा। इसमें लगा मैग्नटोमीटर मंगल की सतह पर सूर्य की हानिकारक किरणों का विकिरण मापेगा। इन चुनौतियों का हल मिलते ही इंसान मंगल पर कदम रखने को तैयार हो जाएगा।

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