अणुओं को पीछे छोड़ देंगे
शोध के प्रमुख प्रमुख लेखक मेल्विन वोपसन का कहना है कि भविष्य में एक समय ऐसा भी आएगा, जब इन डिजिटल बिट्स की संख्या पृथ्वी पर मौजूद अणुओं से भी ज्यादा होगी। मेल्विन का कहना है कि आखिरकार, हम एक ऐसे बिंदू पर पहुंच जाएंगे जहां हम बिट्स दर बिट्स सचमुच अपने ग्रह को बदल रहे होंगे। यह एक अदृश्य आपदा है।
आखिर यह होगा कैसे
वोपसन इस डिजिटल विकास को चलाने वाले कारकों की जांच के आधार पर यह दावा करते हैं। उनके अनुसार, प्रतिदिन उत्पन्न होने वाली बिट्स की संख्या, उन्हें पैदा करने में लगने वाली ऊर्जा और उनके भौतिक और डिजिटल द्रव्यमान का असमान एवं अनियंत्रित वितरण जल्द ही पृथ्वी के लिए ममुसीबत बन जाएगा।
सन 2245 में हो जायेंगे बराबर
शोध के अनुसार, वर्तमान डेटा भंडारण के घनत्व का उपयोग करते हुए, प्रति वर्ष उत्पादित बिट्स की संख्या और पृथ्वी पर मौजूद अणुओं के आकार की तुलना में बिट का आकार 50 फीसदी की वार्षिक वृद्धि की दर से बढ़ रहा है। इस दर से बिट्स की संख्या परमाणुओं की संख्या के बराबर होने करीब 150 वर्ष का ही समय लगेगा। इतना ही नहीं, आगामी 130 सालों में ही इन बिट्स को उत्पादित करने में खर्च होने वाली ऊर्जा पूरी पृथ्वी पर जनरेट होनेवाली कुल ऊर्जा के बराबर होगी।
वहीं वर्ष 2245 तक पृथ्वी का आधा द्रव्यमान डिजिटल बिट्स के द्रव्यमान में परिवर्तित हो जाएगा। आइबीएम और अन्य बड़े डेटा स्रोतों के अनुसार, दुनिया का 90 फीसदी डेटा पिछले 10 वर्षों में उत्पादित हुआ है। कोरोना महामारी ने भी इस प्रक्रिया को तेज कर दिया है, क्योंकि इस दौरान जितनी ज्यादा डिजिटल सामग्री का उपयोग और उत्पादन किया गया वह इंटरनेट के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ।