कोरोना महामारी की वजह से दुनियाभर में करीब 80 लाख टन से अधिक प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है। इसमें करीब 25 हजार टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा महासागरों में गया है। रिसर्च टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोरोना महामारी ने फेस मास्क, दस्ताने और फेस शील्ड जैसे एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की मांग में वृद्धि की है। इसके चलते कचरे का कुछ हिस्सा नदियों और महासागरों में चला गया।
इसने पहले से ही नियंत्रण से बाहर वैश्विक प्लास्टिक समस्या पर दबाव बढ़ा दिया है। चीन में नानजिंग विश्वविद्यालय और अमरीका के सैन डिएगो में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने भूमि स्रोतों से निकलने वाले प्लास्टिक पर महामारी के प्रभाव को मापने के लिए एक नए विकसित महासागर प्लास्टिक संख्यात्मक मॉडल का उपयोग किया।
यह भी पढ़ें
-अमरीका और ब्रिटेन के साथ-साथ इन देशों ने दी कोवैक्सीन को मंजूरी, भारतीयों के लिए खोले अपने देश के दरवाजे
उन्होंने 2020 में महामारी की शुरुआत से लेकर अगस्त 2021 तक के आंकड़ों को शामिल किया, जिसमें पाया गया कि समुद्र में जाने वाला अधिकांश वैश्विक प्लास्टिक कचरा एशिया से आ रहा है, जिसमें अधिकांश अस्पताल का कचरा है। रिसर्च रिपोर्ट विकासशील देशों में चिकित्सा अपशिष्ट के बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता पर बल देता है। यूसी सैन डिएगो में सहायक प्रोफेसर सह-लेखक अमीना शार्टुप ने कहा, ‘जब हमने हिसाब लगाना शुरू किया तो हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि चिकित्सा कचरे की मात्रा व्यक्तियों के निजी कचरे की मात्रा से बहुत अधिक थी। इसका बहुत कुछ हिस्सा एशियाई देशों से आ रहा था। शार्टुप ने कहा, अतिरिक्त कचरे का सबसे बड़ा स्रोत उन क्षेत्रों में अस्पताल रहे जो महामारी से पहले ही अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या से जूझ रहे थे।
रिपोर्ट में शामिल नानजिंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर यान्क्सू झांग ने कहा, अध्ययन में प्रयुक्त नानजिंग विश्वविद्यालय एमआईटीजीसीएम-प्लास्टिक मॉडल एक आभासी वास्तविकता की तरह काम करता है। यह मॉडल इस बात का अनुकरण करता है कि कैसे हवा के प्रभाव से समुद्र में लहरें गतिमान रहती हैं और कैसे प्लास्टिक महासागर की सतह पर तैरता रहता है, सूरज की रोशनी से क्षीण होता है, प्लैंकटन द्वारा दूषित होता है, समुद्र तटों पर वापस आता है और गहरे पानी में डूब जाता है।
रिपोर्ट में शामिल नानजिंग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर यान्क्सू झांग ने कहा, अध्ययन में प्रयुक्त नानजिंग विश्वविद्यालय एमआईटीजीसीएम-प्लास्टिक मॉडल एक आभासी वास्तविकता की तरह काम करता है। यह मॉडल इस बात का अनुकरण करता है कि कैसे हवा के प्रभाव से समुद्र में लहरें गतिमान रहती हैं और कैसे प्लास्टिक महासागर की सतह पर तैरता रहता है, सूरज की रोशनी से क्षीण होता है, प्लैंकटन द्वारा दूषित होता है, समुद्र तटों पर वापस आता है और गहरे पानी में डूब जाता है।
यह भी पढ़ें
-