बीमारी नहीं बल्कि इस वजह से बनते हैं समलैंगिक, वैज्ञानिकों ने खोला राज दरअसल ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ और भारत में गोवा इंजिनियरिंग कॉलेज के संयुक्त शोध में ये पाया गया है कि कंक्रीट में 10 प्रतिशत तक बालू की जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर इस तकनीक को कंस्ट्रक्शन के काम में इस्तेमाल किया जाए तो इससे कंस्ट्रक्शन का खर्च काफी कम हो जाएगा और लोगों का काफी खर्च बचेगा।
खोज के समय स्टूडेंट थीं इसलिए नहीं मिल पाया था नोबेल पुरस्कार लैब में तैयार हो रहा सस्ता और सुंदर सिंथेटिक हीरा आपको बता दें कि प्लास्टिक को बालू की तरह इस्तेमाल किया जाए तो यह ठीक तरह से काम नहीं करता है लकिन अगर आंशिक रूप से इसे इस्तेमाल किया जाए तो यह अच्छी तरह से काम करते हैं और सही से चिपकते हैं। ऐसे में ये बालू की जरुरत को भी पूरा करते हैं और साथ ही ये प्लास्टिक कचरे का निपटारा भी करते हैं जिससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है।
आखिर क्यों यौन उत्पीड़न लड़कियों को भुलाए नहीं भूलता, यहां छिपा है राज अगर ये तकनीक भारत में इस्तेमाल की जाने लगे तो इससे भारत में प्लास्टिक कचरे की समस्या से निजात पाई जा सकती है साथ ही में यह पर्यावरण को बचाने की दृष्टि से भी एक बड़ा कदम साबित होगा। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि बहुत जल्द प्लास्टिक से भी घर बनने लगेंगे।