विज्ञान और टेक्नोलॉजी

भगवान नहीं बल्कि ये चीज तय करती है इंसान की खुशी और गम, जानें कैसे

ये चीज तय करती है इंसान का मूड
इससे जीवनशैली और खान-पान पर पड़ता असर
आंत में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ने से दिमाग में माइक्रोगिलिया सेल्स भी बढ़ते हैं

Apr 08, 2019 / 06:08 pm

Priya Singh

भगवान नहीं बल्कि ये चीज तय करती है इंसान की खुशी और गम, जानें कैसे

नई दिल्ली – शरीर के लिए भोजन और बीमारियों के लिए पेट ( stomach )को इतना जरूरी क्यों बताया गया है, इसका एक और कारण पता चला है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि शरीर में मौजूद बैक्टीरिया ना सिर्फ हमारी सेहत बल्कि हमारे मूड को भी बनाते बिगाड़ते हैं।
हमारा मूड अच्छा है कि उखड़ा हुआ है, हम खुश हैं या उदास, तनाव में लगने वाली भूख या फिर उदासी में खाने के प्रति अनिच्छा, शरीर का मोटा होना ऐसी बहुत सी बातें बैक्टीरिया तय करते हैं। ये बैक्टीरिया हमारी आंतों में रहते हैं और वैज्ञानिक ( scientist ) इस बारे में अब पूरी गंभीरता से रिसर्च में जुट गए हैं।
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प्रो. मिषाएला एक्स्ट गाडरमन बताती हैं, “हमारी आंत में 1000 खरब बैक्टीरिया रहते हैं। इनकी संख्या हमारे शरीर में मौजूद सभी कोशिकाओं से दस गुना ज्यादा है। ये बैक्टीरिया अच्छे या बुरे नहीं हैं, बल्कि सेहत के लिए बहुत जरूरी है। हमारी जीवनशैली और हमारे खान-पान का असर उन पर पड़ता है।”
 

 

 

 

 

 

 

 

इसके लिए चूहों पर परीक्षण कर ये पता लगाने का प्रयास किया गया कि आंतों में पाये जाने वाले बैक्टीरिया की खुराक से चूहों का बर्ताव बदला जा सकता है या नहीं। इसके लिए चूहों के दो समूह बनाए गए। एक समूह को दूध,दही से मिलने वाली चीजों में पाये जाने वाले लेक्टोबासिलस बैक्टीरिया वाला खाना दिया गया। वहीं दूसरे समूह को हर बार आम खाना दिया गया। बाद में दोनों समूहों का परीक्षण किया गया। जो काफी हैरान कर देने वाले थे।
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प्रो. मिषाएला एक्स्ट गाडरमन ने कहा जो पहले समूह के चूहे थे,वो अजीब ढ़ग से बर्ताव कर रहे थे। लेकिन दूसरे समूह के चूहों को जब जर्म्स और लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया वाला खाना दिया गया तो वे ज्यादा साहसी हो गए। इस बारे में प्रो मार्को प्रिंज का कहना है, “यहां सवाल यह था कि जिन चूहों की आंत में कोई बैक्टीरिया कॉलोनी नहीं होता और जिनमें माइक्रोगिलिया सक्रिय भी नहीं होता तब उनका माइक्रोगिलिया एक्टिव हो जाता है।
वहीं चार हफ्ते तक हर दिन साथ रहने के बाद वैज्ञानिकों ने देखा कि जैसे जैसे आंत में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है, वैसे वैसे दिमाग में माइक्रोगिलिया कोशिकाएं भी बढ़ती हैं। यानि हम जो खाते हैं उसका सीधा असर शरीर के अलावा हमारे दिमाग पर भी पड़ता है। ठीक उसी प्रकार दस साल पहले यह पता चला कि मोटे लोगों की आंतों में दुबले पतले रहने वालों की तुलना में अलग बैक्टीरिया होते है।
रिसर्च में मोटे और पतले चूहों की आंत में मिलने वाले बैक्टीरिया को एक्सचेंज किया गया। इसके कुछ ही समय बाद चूहों के वजन पर बैक्टीरिया का असर दिखने लगा… एक खास किस्म का बैक्टीरिया मोटे लोगों की आंतों में बहुत ज्यादा होता है। इसका नाम है फेर्मीक्यूटिस, यह भोजन की प्रोसेसिंग में काफी असरदार होता है।
 

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