रणथम्भौर बाघ परियोजना ( Ranthambore Tiger Project) में बाघों का कुनबा बढऩे से जहां वन अधिकारी व सरकार बाघ संरक्षण के नाम पर वाहवाही बटोर रहे हैं, वहीं बाघों के बढऩे से अब उनके लिए जंगल छोटे पड़ रहे हैं और बाघों को पर्याप्त बाघ पर्यावास नहीं मिल पा रहा है।
जानकारों की मानें तो रणथम्भौर ( Ranthambore ) में बाघों के लिए वर्तमान में जितना एरिया है, उसमें सिर्फ 40 बाघ व अधिकतम 50 रह सकते हैं। लेकिन इससे ज्यादा बाघों की मौजूदगी बेहद चिंता जनक है। टेरेटरी की तलाश में बाघ आए दिन बाहर आ रहे है। वहीं दूसरी और इंसान भी बाघ के घर में जाने से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में बाघ व मानव के बीच टकराव की स्थिति बन रही है और नतीजे आए दिन बाघ हमलों के रूप में सामने आ रहे हैं। बाघ के हमले में पिछले 14 साल में 14 मौतें हुई है। जबकि पिछले डेढ़ माह में तीन मौतें हो चुकी है। इस साल ये आंकड़ा काफी खौफनाक है।
विशेषज्ञों की राय
बाघ संरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाले वन्यजीव विशेषज्ञ सीबी सिंह का कहना है कि रणथम्भौर ( Ranthambore National Park ) में 40 बाघों की क्षमता है। अधिकतम इसमें 50 बाघ रह सकते हैं, लेकिन रणथम्भौर ये संख्या 71 है। ऐसे में या तो बाघों में संघर्ष हो या फिर वे निकलकर आबादी में आ जाएंगे। इसका सीधा सा हल ये है कि बाघों के लिए कॉरिडोर बने। गांवों का विस्थापन हो, ताकि उन्हें रहने की जगह मिले, लेकिन वन विभाग और राज्य की सरकारें इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है। वन विभाग के प्रबंधन को लेकर हाईकोर्ट ने हाल हीं आदेश भी दिए हैं। उन पर अमल जरूरी है। वहीं जंगल पर ग्रामीणों की निर्भरता कम नहीं हुई है। लकड़ी लाने एवं मवेशी चराने के दौरान हमले होते हैं। जंगल पर निर्भरता कम करने के भी प्रयास होने चाहिए।
बाघ संरक्षण के लिए कानूनी लड़ाई लडऩे वाले वन्यजीव विशेषज्ञ सीबी सिंह का कहना है कि रणथम्भौर ( Ranthambore National Park ) में 40 बाघों की क्षमता है। अधिकतम इसमें 50 बाघ रह सकते हैं, लेकिन रणथम्भौर ये संख्या 71 है। ऐसे में या तो बाघों में संघर्ष हो या फिर वे निकलकर आबादी में आ जाएंगे। इसका सीधा सा हल ये है कि बाघों के लिए कॉरिडोर बने। गांवों का विस्थापन हो, ताकि उन्हें रहने की जगह मिले, लेकिन वन विभाग और राज्य की सरकारें इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है। वन विभाग के प्रबंधन को लेकर हाईकोर्ट ने हाल हीं आदेश भी दिए हैं। उन पर अमल जरूरी है। वहीं जंगल पर ग्रामीणों की निर्भरता कम नहीं हुई है। लकड़ी लाने एवं मवेशी चराने के दौरान हमले होते हैं। जंगल पर निर्भरता कम करने के भी प्रयास होने चाहिए।
रणथम्भौर में मेल टाइगर के लिए जगह नहीं
रणथम्भौर में बिगड़ता बाघ- बाघिन अनुपात भी इसकी एक वजह है। विशेषज्ञों के अनुसार एक बाघ पर तीन बाघिन होनी चाहिए। रणथम्भौर में वर्तमान में बाघ बाघिनों की संख्या बराबर है। ऐसे में वर्तमान में यहां मेल टाइगर के लिए जगह नहींं है।
रणथम्भौर में बिगड़ता बाघ- बाघिन अनुपात भी इसकी एक वजह है। विशेषज्ञों के अनुसार एक बाघ पर तीन बाघिन होनी चाहिए। रणथम्भौर में वर्तमान में बाघ बाघिनों की संख्या बराबर है। ऐसे में वर्तमान में यहां मेल टाइगर के लिए जगह नहींं है।
रणथम्भौर में बाघों की संख्या
71 कुल बाघ 25 बाघ 25 बाघिन 21 शावक
….. 700 वर्ग किमी एरिया में ही रह रहे बाघ
1734 वर्ग किमी है रणथम्भौर का कुल क्षेत्रफल 392 वर्ग किमी है कोर एरिया
1342 वर्ग किमी बफर एरिया
71 कुल बाघ 25 बाघ 25 बाघिन 21 शावक
….. 700 वर्ग किमी एरिया में ही रह रहे बाघ
1734 वर्ग किमी है रणथम्भौर का कुल क्षेत्रफल 392 वर्ग किमी है कोर एरिया
1342 वर्ग किमी बफर एरिया
700 वर्ग किमी में ही रह रहे बाघ।
बाकी ऐरिया में गांव बसे एवं मानवीय दखल
इनका कहना है… यह सही है कि रणथम्भौर में बाघों की संख्या अधिक होने के कारण कई बार बाघ जंगल के बाहर आ जाते है। खासतौर पर मेल टाइगर के लिए रणथम्भौर में फिलहाल जगह नहीं है। वहीं लोगों को भी जंगल में नहीं जाना चाहिए। इससे बाघ व मानव में टकराव की आशंका रहती है।
– मुकेश सैनी, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर
बाकी ऐरिया में गांव बसे एवं मानवीय दखल
इनका कहना है… यह सही है कि रणथम्भौर में बाघों की संख्या अधिक होने के कारण कई बार बाघ जंगल के बाहर आ जाते है। खासतौर पर मेल टाइगर के लिए रणथम्भौर में फिलहाल जगह नहीं है। वहीं लोगों को भी जंगल में नहीं जाना चाहिए। इससे बाघ व मानव में टकराव की आशंका रहती है।
– मुकेश सैनी, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर