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नौ प्रकार की प्रजातियां मिलती है चंबल में
चंबल में कछुओं की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 4 प्रजातियां नरम कवच वाले कछुओं एवं 5 कठोर कवच वाले कछुओं की हैं। इनमें से स्थानीय चंबल नदी में छह प्रकार की प्रजाति ही पाई जाती है। बटागुर व बटागुर डोंगोका प्रजाति अति संकटग्रस्त एवं संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हैं। बटागुर मादा कछुआ मार्च माह में अंडे देती है। बटागुर कछुआ 11 से 30 एवं बटागुर डोंगोका एक बार में 20 से 35 अंडे देती है।
घड़ियालों की तर्ज पर दिया जा रहा कछुओं को संरक्षण
वन विभाग की ओर से पालीघाट व उसके आसपास के क्षेत्र में चंबल नदी में अब घड़ियालों की ही तर्ज पर कछुओं के संरक्षण की दिशा में काम किया जा रहा है। इसके लिए वन विभाग की ओर से राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य क्षेत्र के चार स्थानों पर अंतस्थलीय चरियां बनाई है। खास बात यह है कि राजस्थान में पहली बार कछुओं के संरक्षण के लिए हैचरी का निर्माण किया गया है। एक हैचरी मंडरायल रेंज के गुमश घाट पर और तीन है चरिया राजघाट, शंकरपुर एवं अंडवापुरैनी घाट पर बनाई गई हैं। वहीं वन विभाग की ओर से अगले चरण में पालीघाट पर भी कछ़ुए की हैचरी तैयार करने पर विचार किया जा रहा है।
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यह होगा लाभ
चंबल नदी क्षेत्र स्थित पालीघाट के पास हैचरी बनाए जाने से विलुप्त होती कछुओं की कई प्रजाति को संरक्षण मिलने से उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी। खास बात यह है कि कछुए पानी को साफ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये कीड़े-मकोड़ों, अपशिष्ट का भक्षण कर पानी को साफ करते हैं। पानी साफ रहने से खासकर मछलियों को फायदा होता है। गंदे पानी में कई जलीय जीव मर जाते हैं। इसके साथ ही हैचरी बनने से यहां पर्यटन में भी इजाफा होगा।
इनका कहना है…
चंबल अभयारण्य में कछुए की कई प्रजातियां मिलती है। ऐसे में इनके संरक्षण की दिशा मेें कार्य किया जा रहा है। इसके लिए अभयारण्य में चार हैचरी बनाई गई है।-मोहित गुप्ता, उपवन संरक्षक, राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य, सवाईमाधोपुर।