सांस्कृतिक दृष्टि से यह शहर विविध धार्मिक भावनाओं का प्रतीक है। इसमें छोटे-बड़े मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे एवं गिरजाघर हैं। इसमें सभी धर्मों को मानने वाले लोग सौहाद्र्र के साथ रहते हैं। विकास के पथ पर आगे बढ़ते शहर में आसपास के क्षेत्रों के अलावा अन्य प्रदेशों के लोगों का भी यहां बसेरा हुआ है। रेलवे इस शहर को दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, मथुरा एवं मेरठ जैसे महानगरों से जोड़ती है। वहीं सडक़ मार्ग पर जयपुर और ग्वालियर तक लोग शहर से जुड़े हैं। शहर के दक्षिण-पूर्वी भाग में अरावली पर्वतमाला में करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर धुंधेश्वर रमणीक स्थल है। गंगापुर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर धार्मिक स्थल श्री महावीरजी एवं कैलादेवी के विश्व विख्यात तीर्थ हैं, जहां दूर-दूर से प्रति वर्ष लाखों यात्री दर्शनार्थ के लिए आते हैं।
यह है शहर का इतिहास
जयपुर रियासत के उदेई परगने में स्थापित कुशालगढ़ करीब पिछले 100 साल से गंगापुरसिटी के नाम से देश में विख्यात हुआ। जानकार बताते हैं कि जयपुर के एक प्रमुख हल्दिया परिवार के दो भाई कुशालीराम एवं गंगाराम हल्दिया को तत्कालीन महाराजा सवाई माधोसिंह ने यह क्षेत्र जागीर के रूप में बख्शा था। हल्दिया परिवार ने नगर के उत्तर पूर्व में एक विशाल गढ़ का निर्माण कराया। इसके चारों ओर बड़ी खाई भी बनवाई थी, जो आजकल नहर के नाम से जानी जाती है। उन्होंने यहां एक गंगा मंदिर का निर्मााण भी कराया। कालांतर में इसी गंगा मंदिर के नाम पर यह स्थान गंगापुर और फिर बाद में गंगापुरसिटी के नाम से जाना गया।
जिले का विकासशील शहर
जानकार बताते हैं कि वर्ष 1905 के आसपास बड़ौदा-बम्बई एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे (अब पश्चिम मध्य रेलवे) की ओर से यहां बड़ी रेल लाइन डाली गई। जिले का मैदानी क्षेत्र के होने के कारण यहां उत्तरोत्तर प्रगति हुई। वर्तमान में यह नगर शिक्षा का केन्द्र बना हुआ है। एज्युकेशन हब के रूप में विकसित हो रहे शहर में मेडिकल तथा इंजीनियरिंग आदि की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए आसपास के जिलों तथा राज्य के सभी स्थानों से विद्यार्थी तैयारी के लिए आते हैं। करीब 2 लाख की आबादी का यह शहर सवाईमाधोपुर जिले का सर्वाधिक विकासशील क्षेत्र है।
यह हैं शहर की खासियत
वर्तमान में यहां तेल (तिलहन), प्लास्टिक, सिलिका पाउडर, पत्थर घिसाई, कागज की थैलियां, स्टील फर्नीचर, स्टील आलमारी एवं कूलर निर्माण की कई यूनिटें संचालित हैं। गंगापुर उपखंड को उच्च कोटि की सरसों उत्पन्न करने वाला क्षेत्र भी माना जाता है। बंगाल, बिहार एवं उत्तरप्रदेश सिंचित क्षेत्रों में यहां की सरसों की खासी डिमांड है।
यह बोले जानकार
इतिहास में कोई बहुत ज्यादा पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, लेकिन गंगापुर का नाम शहर में स्थापित गंगा मंदिर के नाम पर ही पड़ा है। वर्ष 2016 से हम इस शहर का स्थापना दिवस मना रहे हैं। इसके तहत गंगा मंदिर पर महाआरती जैसे आयोजन किए जाते हैं। कुशालगढ़ के बाद यह शहर गंगा मंदिर के नाम से गंगापुर जाना गया।
– हेमंत शर्मा, अध्यक्ष गंगापुरसिटी स्थापना महोत्सव समिति
मेरी आयु 90 साल है। मैंने कहीं इतिहास में तो नहीं पढ़ा, लेकिन इस शहर का नाम गंगा मंदिर के नाम पर ही गंगापुर पड़ा। यह हम पीढ़ी दर पीढ़ी सुनते आ रहे हैं। बुजुर्गों से भी हमने शहर के नाम के इतिहास के बारे में यही जाना कि गंगा मंदिर के नाम पर ही इसका नामकरण हुआ।
– वैद्य श्री निवास शर्मा, सेवानिवृत उपनिदेशक आयुर्वेद विभाग
मैं इस मंदिर पर तीसरी पीढ़ी के रूप में सेवा-पूजा कर रहा हूं। मुझे यही जानकारी है कि इस शहर का नाम गंगा मंदिर के नाम ही गंगापुरसिटी पड़ा। बुजुर्ग भी इसके नाम के पीछे यही कहानी बताते हैं। शहर में इस मंदिर का निर्माण करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व हुआ है। इसी के नाम पर शहर के नामकरण के किस्से हैं।
– कैलाशचंद दाधीच, सेवक गंगा मंदिर गंगापुरसिटी