scriptरणथम्भौर के जंगल में छिपा है सेहत का ‘खजाना’, रसायनशाला बनने से मिल सकता है लाभ | 350 types of herbs and medicines are found in Ranthambore forest | Patrika News
सवाई माधोपुर

रणथम्भौर के जंगल में छिपा है सेहत का ‘खजाना’, रसायनशाला बनने से मिल सकता है लाभ

Ranthambore Forest : बाघों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध रणथम्भौर के जंगल में औषधियों का खजाना छिपा हुआ है। यहां का जंगल प्राकृतिक आषधियों का भण्डार है।

सवाई माधोपुरJul 25, 2024 / 05:04 pm

Kamlesh Sharma

उच्च कार्बन डाइऑक्साइड वृद्धि दर का एक प्रमुख कारण रिकॉर्ड उच्च तापमान था जिसने अमेज़ॅन और अन्य वर्षावनों में वनस्पति को सुखा दिया।

उच्च कार्बन डाइऑक्साइड वृद्धि दर का एक प्रमुख कारण रिकॉर्ड उच्च तापमान था जिसने अमेज़ॅन और अन्य वर्षावनों में वनस्पति को सुखा दिया।

सवाईमाधोपुर। बाघों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध रणथम्भौर के जंगल में औषधियों का खजाना छिपा हुआ है। यहां का जंगल प्राकृतिक आषधियों का भण्डार है। रणथम्भौर की वादियों में आसपास के जंगल और चम्बल क्षेत्रों में औषधियों की भरमार है।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार यहां पर 350 प्रकार की जड़ी-बूटियां और औषधियां यहां मिलती है। वन विभाग की ओर से पूर्व में यहां घर-घर औषधि योजना का संचालन भी किया गया था, जहां लोगों को वन विभाग की ओर से अश्वगंधा, तुलसी, गुरेल आदि के पौधों का नि:शुल्क वितरण भी किया गया था।

दुर्लभ औषधियों का भी भंड़ार

वन विभाग और आयुर्वेद विभाग के अधिकारियों की माने तो रणथम्भौर में विजय सार, सिंधुवार, मयूरशिखा, तिनिश, मेष शृंगी, गुग्गुल, सारिवा, त्रिकोषकी, शतावरी, श्वेत व कृष्ण मूसली, अश्वगंधा, सुकंदी, आवर्तकी, ताम्रपुष्पी, घुणप्रिया, अग्निशिखा, गंभारी, इरिमेद, वृश्चिककाली, वत्सक, शिवलिंगी, अग्निमंथ, कम्पिलक, शालपर्णी, रक्तएरंड, व्याघ्र एरंड समेत करीब 200 दुर्लभ औषधियां हैं।

वन डिस्टि्रक, वन स्पेसिज योजना से मिल सकती है पहचान

हाल ही बजट में सरकार ने वन डिस्ट्रिक वन स्पेसिज योजना की घोषणा की थी। यदि इस योजना के तहत रणथम्भौर में भी औषधियों पर काम किया जाए तो रणथम्भौर में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों और औषधियों को भी एक नई और खास पहचान मिल सकती है। साथ ही यहां रसायनशाला स्थापित होने से यहां एक नया रोजगार भी मिल सकता है।

जानें कौनसी औषधियों किस रोग में प्रभावी

चिकनगुनिया – वसंतदुती, असन गजवल्लभा।

स्क्रब टायफस- पटोल, कुबेराक्ष, मूषाकर्णी।

डेंगू – नागजीह्वा, किरातत्तित्त, रक्तमहाद्रोणपुष्णी, सुगंधबाला।

नेत्ररोग – मत्याक्षी

जोड़ व कमर दर्द – मुस्तक निर्गुण्डी, गुग्गुल।
रक्तशोधन – सारिवा, खदिर

स्वाइनफ्लू – कंटकारी, अमृता, इन्द्रायण।

शक्तिवर्धक – मूसली, शतावरी, अश्वगंधा, बला अतिबला महाबला, नागबला।

स्मृतिवर्धक – ब्राह्मी, मंडूकपर्णी, बुद्धिवर्धक ज्योतिष्मती, शंखपुष्पी।

खांसी – वासा, तवक्षिर, वंशलोचन
एलर्जी – भूमिआमलकी, वन्यहरिद्रा।

पीलिया – शरपूंखा।

ह्रदय रोग – अर्जुन, सादड़।

मूत्र व किडनी रोग – गोक्षुर, पुनर्नवा, काकजंघा।

चर्म रोग – नक्तमाल, कंटकी करंज, चिरबिल्व।

हड्डी रोग – हडजोड़।
मधुमेह – विजयसार, वन्यजम्बू, काकमाची।

अतिसार – कुटज, मरोडफली, बिल्व।

इनका कहना है…
आयुर्वेद विभाग के उप निदेशक मीठालाल मीणा ने बताया कि यह सही है कि रणथम्भौर में कई प्रकार की जड़ी-बूटियां और औषधीय पौधे पाए जाते हैं। जहां तक मेरी जानकारी है इनकी संख्या दो सौ से अधिक भी हो सकती है। इनका उपयोग कई प्रकार के रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।

Hindi News/ Sawai Madhopur / रणथम्भौर के जंगल में छिपा है सेहत का ‘खजाना’, रसायनशाला बनने से मिल सकता है लाभ

ट्रेंडिंग वीडियो