सतना 2007 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने घोषणा की थी, भगवान राम के वन पथ गमन के मार्ग को तलाशा जाएगा। उसे टूरिज्म का खास केंद्र बनाया जाएगा। जिसके लिए चित्रकूट व सरभंगा आश्रम में कार्यक्रम कर शिलापूजन भी किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा था, भगवान राम वनवास के दौरान पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ मध्यप्रदेश में जिन-जिन स्थानों से गुजरे थे, उन्हें राम वन गमन पथ के रूप में विकसित कर संरक्षित किया जाएगा। इन क्षेत्रों का उत्थान कर राम स्मृति संग्रहालय, रामलीला केंद्र, नए गुरुकुल व आश्रमों की स्थापना की जाएगी। लेकिन, यह वादा भी कोरा ही निकला। आलम ये रहा, करीब 8 साल बाद भी राम वन गमन पथ के चिन्हांकन व विकास का कार्य एक किलोमीटर तक नहीं किया जा सका। जबकि, शुरूआती दौर में ही भारी भरकम राशि स्वीकृत की गई थी। करीब 2.30 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद स्थिति जस की तस है। सरभंगा आश्रम के आस-पास भी विकास नहीं दिखाई देता। अन्य जगह तो दूर की कौड़ी है। राम वन गमन पथ के नाम पर करोड़ों खर्च के बाद भी केवल शिलापट्टिकाएं ही लग सकी। जबकि इसके लिए बनाई गई कमेटी ने चार साल पहले ही रिपोर्ट सौंप दी थी। लेकिन, इसे न तो सरकार ने गंभीरता से लिया और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने चिंता की। 2011 में सौंपी गई थी रिपोर्ट मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद मार्गों के अध्ययन व शोध के लिए 11 सदस्यीय कमेटी गठित की थी। इस समिति के संयोजन का दायित्व अवधेश प्रसाद पाण्डेय को सौंपा गया था। समिति ने दो चरणों में मार्गों का अध्ययन किया। पहला चरण समिति ने 1-9 मार्च 2009 तक शोधयात्रा चित्रकूट से बाधवगढ़ तक की। इस दौरान समिति को भगवान राम के वन गमन मार्गों के पुरातात्विक, ऐतिहासिक व पौराणिक साक्ष्य मिले हैं। समिति का दूसरा चरण 7 दिवसीय रहा। जो वर्ष 2010 में पूरा हुआ। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भगवान राम वन गमन पथ मार्गों के विषय में रामकथा के प्रमाणित ग्रंथों में आयोध्या से चित्रकूट तक के स्थलों और मार्गों का उल्लेख मिलता है। इन स्थानों को पर्यटन और तीर्थ स्थल कैसे बनाया जाए। इसका विस्तार से उल्लेख है। जिसकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी गई। लेकिन, उसके आगे इस पर काम नहीं हो सका। संस्कृति विभाग ने दी थी जानकारी राम वन गमन पथ को लेकर संस्कृति विभाग से जानकारी भी ली गई थी। जिसके अनुसार भगवान राम चित्रकूट में साढ़े ग्यारह साल रूके थे। इसके बाद सतना, पन्ना, शहडोल, जबलपुर, विदिशा के वन क्षेत्रों से होकर दंडकारण्य चले गए थे। वे नचना, भरहुत, उचेहरा, भेड़ाघाट एवं बांधवगढ़ होते हुए छत्तीसगढ़ गए थे। इसी आधार पर राम पथ गमन को खोजना व विकसित करना था। शिला पट्टिकाएं लगाने तक रुचि सरकार द्वारा भगवान राम के वन गमन पथ प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद देशभर के श्रद्धालुओं को आस जगी थी, वन गमन के दौरान जिस मार्ग से प्रभु राम गुजरे थे, उस पर चलकर हम भी पूण्य कमाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि राम वन गमन पथ प्रोजेक्ट तो अधर में लटका ही है। इसके आस-पास के क्षेत्रों का कायाकल्प भी नहीं हो सका है। सरभंगा आश्रम व उसके आसपास के क्षेत्र पहुंच मार्गों, प्रकाश व्यवस्था व अन्य सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। वहीं सरकारी नुमाइंदे इस आश्रम व उसके आस-पास के स्थलों के कायाकल्प के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर चुके हैं। जिससे केवल शिला पट्टिकाएं लगाई जा सकी। स्थानीय व प्रदेश के माननीय की रूचि केवल शिला पट्टिकओं तक ही सिमट कर रही गई। 33 करोड़ के प्रोजेक्ट 11 सदस्यीय कमेटी ने अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें राम वन गमन पथ को लेकर कई प्रोजेक्ट तैयार किए थे। जिस पर अमल करने की बात कही गई थी। कमेटी ने लगभग 33 करोड़ के प्रोजेक्ट दिए थे, जो फाइलों में दब गए।