सतना

satna: एक ऐसा गांव जहां नही बन सकते पीएम आवास के पक्के मकान

पहाड़ी चोटी पर मौजूद गांव तक निर्माण सामग्री पहुंचाने कोई रास्ता नहीं
वन विभाग से नगर परिषद ने जंगल की रोड समतल करने मांगी अनुमति

सतनाFeb 27, 2023 / 10:30 am

Ramashankar Sharma

Thar pahad: A village where pucca houses for PM AWAS cannot be built

सतना। प्रभु श्री राम की कर्मभूमि में स्थित एक ऐसा शहरी गांव है जो पहाड़ में बसा हुआ है। पहुंच विहीन इस गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां पर वाहन नहीं जा सकते हैं। जिस वजह से यहां के हितग्राहियों को पीएम आवास स्वीकृत होने के बाद भी उनके पक्के आवास नहीं बन पा रहे हैं। क्योंकि यहां निर्माण सामग्री ही नहीं पहुंच पा रही है। इन स्थितियों को देखते हुए नगर परिषद ने वन विभाग से जंगल के बीच से होकर जाने वाले रास्ते को समतल करने की अनुमति मांगी है ताकि यहां से गांव तक निर्माण सामग्री पहुंच सके।
नगर पंचायत में शामिल है आदिवासी बाहुल्य गांव

चित्रकूट नगर परिषद का एक वार्ड थर पहाड़ में आता है। कहने को भले ही यह नगर परिषद के तहत आने वाला नगरीय क्षेत्र है लेकिन है वास्तविक रूप से यह गांव ही है। आदिवासी बाहुल्य इस थरपहाड़ में 25 हितग्राहियों को पीएम आवास स्वीकृत किए गए हैं। लेकिन इन आदिवासी हितग्राहियों द्वारा राशि स्वीकृति के बाद में आवास स्व-निर्माण कार्य करना संभव नहीं है। पहाड़ के ऊपर बसा यह गांव आज भी पहुंच विहीन स्थितियों में है। यहां तक कोई ऐसी सड़क नहीं है जिसके जरिये वाहन यहां तक निर्माण सामग्री लेकर पहुंच सकें। ऐसे में लोगों के पक्के आवास नहीं बन पा रहे हैं।
अब वन विभाग का सहारा

थर पहाड़ गांव तक पहुंचने का एक रास्ता जंगल से होकर जाता है। जो पगड़ंडी नुमा रास्ता है। अभी यह रास्ता काफी उबड़ खाबड़ है। नगर परिषद ने पाया है कि जंगल के इस रास्ते को अगर समतल कर दिया जाए तो वाहन इस गांव तक निर्माण सामग्री लेकर जा सकते हैं। लिहाजा नगर परिषद के सीएमओ विशाल सिंह ने वन मंडलाधिकारी को इस संबंध में पत्र लिखा है। जिसमें अनुरोध किया गया है कि मोरमखान से थरपहाड़ तक पहुंच मार्ग सुधार की अनुमति दे दी जाए तो वे जेसीबी के जरिये इस रास्ते को समतल कर देंगे। इस समतलीकरण में वन को किसी भी तरह से क्षति नहीं पहुंचने दी जाएगी। अगर अनुमति मिल जाएगी तो शासन की इस हितग्राही मूलक योजना का क्रियान्वयन समय पर हो सकेगा।
प्रसूता को टांग कर लाना पड़ता है नीचे तक

थर पहाड़ तक पहुंच मार्ग नहीं होने का खामियाजा यहां की प्रसूताओं को भी भोगना पड़ता है। प्रसव पीड़ा होने पर अगर जननी एक्सप्रेस को बुलाया जाता है तो वह पहाड़ के नीचे तक ही पहुंच पाती है। ऐसे में गांव से नीचे तक प्रसूता को खाट या लकड़ी के झूले में लेकर आना पड़ता है।
5 करोड़ का प्रस्ताव शासन को

इस मामले में सीएमओ विशाल सिंह ने बताया कि पहुंच मार्ग नहीं होने से निर्माण सामग्री नहीं पहुंच पा रही है। जिस वजह से जंगल में मौजूद कच्चे रास्ते को समतल करने की अनुमति वन विभाग से मांगी गई है। इसके साथ ही गांव तक स्थाई पहुंच मार्ग तैयार करने के लिए 5 करोड़ रुपये की सड़क का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है।

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