सतना

PATRIKA EXCLUSIVE: किसान आंदोलन, महंगाई हर सवाल पर केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के सटीक जवाब

केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से स्थानीय संपादक सतना राजेन्द्र गहरवार की खास बातचीत

सतनाOct 26, 2021 / 05:28 pm

Shailendra Sharma

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सतना. राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन के लिए एक-दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती है। हमेशा निर्णय राजनीतिक व संगठन की परिस्थितियों को देखकर होते हैं। भाजपा ने कुछ राज्यों में अगर सीएम बदले हैं तो इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि ऐसा हर राज्य के लिए नजीर है। आंदोलन कर रहे किसानों से सरकार बार-बार कह रही है कि प्रस्ताव लेकर आएं बातचीत के लिए तैयार हैं। एमएसपी हर साल बढ़ ही रही है तो उसे खत्म करने का आरोप हास्यास्पद है। यह बात केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राजेन्द्र गहरवार से खास बातचीत में कही।

सवाल- कांग्रेस शासनकाल में डीजल-पेट्रोल के दाम वृद्धि के विरोध में आपने भी साइकिल चलाई थी। बैलगाड़ी पर बैठकर प्रदर्शन किया था, लेकिन अब महंगाई को लेकर क्या राय बदल गई है?
जवाब- डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने के अपने अंतरराष्ट्रीय कारण होते हैं। जीएसटी के दायरे में आने का एक पहलू है कुछ राहत मिल सकती है। जीएसटी कांउसिल में इस पर कुछ राज्यों से सहमति नहीं बनी। जहां तक सवाल महंगाई का है तो सरकार की कोशिश हमेशा इस पर नियंत्रण रखने की होती है, लेकिन कुछ परिस्थितियां हैं जैसे कोविड अभी पूरी तरह से गया नहीं है, का फर्क पड़ा है। यह मानने में संकोच नहीं कि थोड़ी महंगाई का असर है पर हालात ठीक होंगे।

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सवाल- किसान आंदोलन को एक साल पूरा होने वाला है। फिर भी गतिरोध क्यों खत्म नहीं हो रहा है। सरकार की ओर से कोई पहल हो रही है क्या ?
जवाब- कृषि सुधार कानून संसद के दोनों सदनों ने पारित किया है। अधिकांश किसान और संगठन इसका समर्थन कर रहे हैं। कुछ जो आंदोलन में हैं, उनका उद्देश्य क्या है वही जाने। 11 दौर की बात सरकार ने की है। हर प्रावधान पर बात करने को अब भी तैयार हैं, किसान प्रस्ताव लेकर आएं और अपने सुझाव दें। विरोध के लिए विरोध तो ठीक नहीं है।

सवाल- एमएसपी पर खरीदी की किसान संगठन गारंटी मांग रहे हैं। कानूनी मान्यता देने में सरकार को हिचक क्या है ?
जवाब- एमएसपी थी और रहेगी। इसमें हर साल वृद्धि ही की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में यह बात साफ तौर पर कह चुके हैं। हर चीज कानून में हो यह संभव नहीं। प्रधानमंत्री का कमिटमेंट हल्का नहीं होता है। बचकाने की बात किसी भी स्तर पर नहीं होनी चाहिए। आंदोलन का असर पंजाब और हरियाणा में है लेकिन गेहूं के सीजन में यहां पर 45 हजार करोड़ की खरीदी एमएसपी पर हुई, पैसा किसानों के पास गया। अब तो मोटा अनाज खरीदने की अनुमति में भी देरी नहीं करते। अगर राज्य पीडीएस में बांटने को तैयार हों तो कुछ भी खरीद सकते हैं।

 

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सवाल- सरकार ने किसानों की इनकम दोगुनी करने का वादा किया था। लेकिन लागत में लगातार वृद्धि से किसान वहीं का वहीं खड़ा नजर आता है। सरकार का कोई ठोस रोडमैप है क्या ?
जबाव- पहली बार सरकार ने छोटे किसान को लाभ के दायरे में लिया है। सीधे खाते में रुपए जा रहे हैं। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर एमएसपी बढ़ाई जा रही है। कृषि अधोसंरचना के विकास के लिए एक लाख करोड़ खर्च किए जाएंगें। पहली बार तिलहन मिशन शुरू किया गया है। आत्मनिर्भरता के लिए पॉम आयल की खेती कराने का प्रयास किया है।

सवाल- किसान संगठन आरोप लगाते हैं कि सरकार बातचीत के लिए शर्त लगा रही है, आप कहते हैं कि अब तक किसी ने प्रावधान पर बात नहीं की है। यह विरोधाभास क्यों बना हुआ है। बैकडोर बातचीत क्या हो रही है ?
जवाब- प्रावधान पर बातचीत के लिए आमंत्रित करना क्या शर्त है। बैठकों में कुछ सुधार के सुझाव आए थे और सरकार ने उसे माना भी था। जैसे उपज खरीदी के लिए व्यापारी का रजिस्ट्रेशन, निजी मंडियों में शुल्क लगाना और विवाद के निपटारे की व्यवस्था में सुधार की बातें थीं। बैकडोर बातचीत या मध्यस्थ बनाने की आवश्यकता ही नहीं है, सरकार आमने-सामने बात करने को तैयार है।
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सवाल- भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल राज्यों में नेतृत्व बदल रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी क्या ऐसी संभावना महसूस कर रहे हैं ?
जवाब- भाजपा ने कुछ राज्यों में मुख्यमंत्री बदले हैं, ऐसे निर्णय वहां की स्थितियों को देखकर लिए जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं कह सकते कि बाकी राज्यों में भी ऐसा होगा। मेरे मत से इस मामले में एक राज्य से दूसरे राज्य की तुलना उचित नहीं है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान अच्छा काम कर रहे हैं। पार्टी में किसी तरह के बदलाव की चर्चा नहीं हो रही है। कांग्रेस एक राज्य में ही बदलाव करके फंस गई पर भाजपा शासित राज्यों में कोई ऑफ्टर इफेक्ट नहीं हुआ।

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