पन्ना टाइगर रिजर्व से वर्ष 2009 में बाघ विलुप्त हो गए थे। आरटीआई एक्टिविस्ट अधिवक्ता राजीव खरे ने फरवरी 2013 में पन्ना टाइगर रिजर्व से लोक सूचना के तहत पिछले तीन सालों में बाघों की मौत और उसके कारणों की जानकारी मांगी थी। यह जानकारी अब जाकर उन्हें मिली है।
जिसमें बताया गया कि 27 जुलाई 2012 और 2 फरवरी 2013 को दो बाघों की मौत हुई। इनकी मौत की वजह प्राकृतिक थी। बाघों के विलुप्त होने के बाद यहां बांधवगढ़, कान्हा और पेंच टाइगर रिजर्व से बाघ लाए गए थे। शुरूआत में एक नर और दो मादा बाघ थी, जिनकी संख्या अब बढ़कर 28 हो गई है। बाघों को 24 घंटे, सातों दिन सुरक्षा मुहैया कराई गई है। वर्ष 2012-13 में इनकी सुरक्षा पर 969.45 लाख रुपए खर्च हुए थे। इसमें 413.03 लाख केंद्र सरकार और 556.42 लाख रुपए राज्य सरकार ने दिए थे।
ऐसे फंसाया पेंच
बाघों की मौत की जानकारी देने से पीछे हटे पन्ना नेशनल पार्क प्रबंधन ने हर वो तरीका अपनाया जिससे बचा जा सके। दिलचस्प बात तो यह है कि एकनॉलेमेंट के टिकट लगे लिफाफे नहीं लगे होने के बहाने आरटीआई आवेदन को ही निरस्त कर दिया था। बाद में अपील हुई तो जानकारी देने के निर्देश हुए।
बाघों की मौत की जानकारी देने से पीछे हटे पन्ना नेशनल पार्क प्रबंधन ने हर वो तरीका अपनाया जिससे बचा जा सके। दिलचस्प बात तो यह है कि एकनॉलेमेंट के टिकट लगे लिफाफे नहीं लगे होने के बहाने आरटीआई आवेदन को ही निरस्त कर दिया था। बाद में अपील हुई तो जानकारी देने के निर्देश हुए।
क्यों की देरी
दरअसल पन्ना नेशनल पार्क प्रबंधन इस मामले की जानकारी नहीं देना चाहता था। इसके पीछे वजह थी कि यहां बाघों की सुरक्षा में भारी लापरवाही बरती गई थी। यही कारण था कि एक समय ऐसा आया जब पन्ना नेशनल पार्क बाघ विहीन हो गया। जिसकी गूंज भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनाई दी। बाद में फिर दूसरे नेशनल पार्क से बाघ यहां लाए गए और उनका कुनबा बढ़ाने में सरकार को करोड़ों रुपए खर्च करना पड़े।
दरअसल पन्ना नेशनल पार्क प्रबंधन इस मामले की जानकारी नहीं देना चाहता था। इसके पीछे वजह थी कि यहां बाघों की सुरक्षा में भारी लापरवाही बरती गई थी। यही कारण था कि एक समय ऐसा आया जब पन्ना नेशनल पार्क बाघ विहीन हो गया। जिसकी गूंज भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनाई दी। बाद में फिर दूसरे नेशनल पार्क से बाघ यहां लाए गए और उनका कुनबा बढ़ाने में सरकार को करोड़ों रुपए खर्च करना पड़े।
विलुप्त होने के पीछे शिकार भी एक वजह बाघों के विलुप्त होने के पीछे शिकार भी एक वजह था। इस कारण प्रबंधन बाघों की मौत के कारण बताने में हमेशा आनाकानी करता रहा है। कई बार असल कारण छिपाने के भी जतन किए गए। संदिग्ध मौतों को सामान्य मौत बताकर मामले को दबाने का प्रयास किया गया।