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सतना

अब वंशानुगत अंधत्व का जन्म के साथ ही चल जाएगा पता, भारत ने इजाद किया जीन परीक्षण टेस्ट

वंशानुगत रेटिनल रोगों के अनुवांशिक इलाज की खोज, सतना निवासी दुष्यंत के स्टार्टअप न्यूक्लिओम इन्फार्मेटिक्स ने लांच किया टेस्ट, भारत और कोरिया में हुई टेस्टिंग

सतनाSep 17, 2024 / 10:33 am

Ramashankar Sharma

सतना। सतना निवासी दुष्यंत सिंह की न्यूक्लिओम इंफॉर्मेटिक्स ने वंशानुगत अंधत्व रोगों के निदान और उपचार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने “डॉ.सेक आईआरडी” नामक एक आनुवंशिक परीक्षण लॉन्च किया है, जो वंशानुगत रेटिनल रोगों (आइआरडी) का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस परीक्षण की मदद से जन्म के समय ही इन बीमारियों का पता लगाना संभव हो जाएगा, जिससे भविष्य में जीन थैरेपी के जरिए उनका इलाज संभव हो सकेगा। यह परीक्षण अंधेपन के पारिवारिक इतिहास वाले लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि यह रोग का कारण बनने वाले जीन्स की पहचान करने में मदद करता है। इससे पहले भारत में इस तरह के अनुवांशिक अंधत्व रोगों की पहचान करना मुश्किल था, लेकिन अब इस तकनीक से इसका निदान और प्रबंधन संभव हो सकेगा।
भारत में तीन करोड़ संभावित रोगी

दुष्यंत ने बताया कि आइआरडी (वंशानुगत रेटिनल रोग) एक समूह है जो आनुवांशिक विकारों के कारण रेटिना को प्रभावित करता है और इससे दृष्टि हानि या अंधापन हो सकता है। भारत में लगभग 3 करोड़ लोग इन वंशानुगत रेटिनल रोगों से पीड़ित हैं। इस रोग की प्रचलिता क्षेत्र और जनसंख्या के आधार पर प्रति 350 से 2000 लोगों में से 1 व्यक्ति तक हो सकती है। वंशानुगत रोग वे होते हैं जो पीढ़ियों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं। वंशानुगत अंधत्व भी इसी प्रकार का रोग है, जो माता-पिता या परिवार के किसी सदस्य के होने पर बच्चों में भी प्रकट हो सकता है। यह बीमारी सामान्यतः शुरू में दबी रहती है और उम्र बढ़ने के साथ इसके लक्षण प्रकट होते हैं। अक्सर जब इसका पता चलता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, जिससे दृष्टि का नुकसान शुरू हो जाता है।
अंधेपन की अब जन्म के साथ पहचान

दुष्यंत सिंह ने बताया कि डॉ. सेक आईआरडी टेस्ट के माध्यम से वंशानुगत अंधत्व की बीमारी का पता जन्म के समय ही लगाया जा सकता है। पहले, इस बीमारी के सटीक निदान में कठिनाई इसलिए थी क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार जीन्स की अनुवांशिक विविधता बहुत अधिक है। वंशानुगत रेटिनल रोग में 300 से अधिक प्रकार के जीन्स प्रभावित हो सकते हैं, जिससे निदान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता था। हालांकि परीक्षणों से यह स्पष्ट हुआ है कि ज्यादातर मामलों में 20 प्रमुख जीन्स के म्युटेशन (विकृति) के कारण यह बीमारी होती है। इस नई तकनीक से इन प्रमुख जीन्स की पहचान करना आसान हो गया है, जिससे अंधेपन की वंशानुगत बीमारी का निदान जल्दी और सटीक तरीके से किया जा सकता है।
परीक्षण का विस्तृत दायरा

न्यूक्लिओम का डॉ. सेक आईआरडी पैनल अनुवांशिक रेटिनल रोगों की एक विस्तृत श्रृंखला को कवर करता है, जिसमें लेबर कॉन्जेनिटलएमोरोसिस (एलसीए), कोन डिस्ट्रॉफी, रेटिनाइटिसपिगमेंटोसा (आरपी), स्टारगार्ड्सडिजीज और मैक्युलरडिस्ट्रॉफी जैसी बीमारियाँ शामिल हैं। इस पैनल में 850 प्रकार के जीन्स और उनके हजारों वेरिएंट्स शामिल हैं, जिससे परीक्षण की सटीकता बढ़ती है। यह पैनल अनुवांशिकम्यूटेशन्स की पहचान करने में मदद करता है, जो इन विशेष आईआरडी (इनहेरिटेड रेटिनल डिसीज़) रोगों के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन जीन्स की पहचान से न केवल सटीक निदान संभव होता है, बल्कि जीन थेरेपी के माध्यम से उपचार की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा सकते हैं, जिससे रोगियों को बेहतर उपचार मिल सके।
परीक्षण में भारत सरकार की मदद

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से इस स्टार्टअप के परीक्षण की शुरुआत की गई। इसके लिए भारत के एल.वी. प्रसाद नेत्र संस्थान (एल.वी.पी.ई.आई.) और कोरिया के सियोल नेत्र अस्पताल ने सहयोग किया। दोनों संस्थानों ने मिलकर 500-500 लोगों पर परीक्षण किया, जिसमें 300 आईआरडी रोगियों और 200 स्वस्थ व्यक्तियों को शामिल किया गया। इन परीक्षणों के आधार पर डॉ. सेक आईआरडी पैनल विकसित किया गया। इस पैनल की विशेषता यह है कि नमूने का संग्रहण लार के माध्यम से किया जाता है, जिससे रक्त नमूने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
जीन थैरेपी जल्द ही भारत में

दुष्यंत ने बताया कि वर्तमान में हमारा पहला चरण परीक्षण पर आधारित था, जिसमें हम अनुवांशिकजीन्स के कारण होने वाले अंधत्व के रोगों की पहचान कर रहे हैं। अब हमारा दूसरा चरण इलाज की दिशा में होगा। जब रोग का कारण बनने वाले जीन्स की पहचान हो जाती है, तो इसका उपचार जीन थेरेपी के माध्यम से किया जाता है, जिसमें दोषपूर्ण जीन्स को सुधारने का प्रयास किया जाता है। यह उपचार फिलहाल अमेरिका में उपलब्ध है, लेकिन हम जल्द ही भारत में भी जीन थेरेपी के जरिए इन रोगों का इलाज शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

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