आपको पर्वतारोहण की प्रेरणा कैसे मिली ? – वर्ष 2013 में मुझे भगवान महाकाल के दर्शन करते वक्त माउंट एवरेस्ट फतह करने की प्रेरणा मिली। मैं अपने दोस्तों के साथ महाकाल के दर्शन करने गया था, मैने दोस्तों से भगवान पशुपति नाथ के दर्शन करने का विचार साझा किया । दोस्तों ने कहा, कैलाश पर्वत चलते हैं। तभी मैने तय किया माउंट एवरेस्ट फतह करना है। मुझे 10 लाख रुपए सालाना पैकेज की नौकरी छोड़ना पड़ा।
पर्वतारोहण के लिए कैसे तैयारी करते थे? – साहसिक खेलों के प्रति मेरा बचपन से ही रुझान रहा है। माउंट एवरेस्ट फतह करने की मजबूत योजना बनाई। रोजाना सुबह 4 बजे उठ जाता था। रोजाना 10 किमी दौड़ता था, 40 किमी सायकल चलाता था। चार से पांच घंटे 30 किग्रा वजन का बैग लेकर खड़ा रहता था। रोजाना जिम जाता था, योगाभ्यास भी करता था।
माउंट एवरेस्ट फतह आपने दूसरे प्रयास में किया है? – वर्ष 2015 में अप्रेल महीने में 22,000 फीट माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में सफल रहे, लेकिन नेपाल में भूकंप के कारण एवरेस्ट की चोटी पर नहीं पहुंच सके। भूकंप के चलते 21 पर्वतारोहियों की मौत हो गई। नेपाल सरकार ने रेस्कयू कर हमें बचाया था। दूसरे प्रयास में 21 मई 2016 को को माउंट एवरेस्ट फतह किया।
आपको घर परिवार के सदस्यों से कैसे सहयोग मिला ? पहली बार एवरेस्ट चढ़ने के लिए सरकार और अन्य विभागों से मदत मिली थी। घर परिवार के सहयोग से ही घर को गिरवी रखकर पर्वतारोहण के लिए 15 लाख रुपए का ऋण लेना पड़ा। इसके लिए अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा। मेरे पिता जयचंद पाण्डेय कृषक हैं, मां ने जिला अस्पताल में बतौर नर्सिग आफीसर के रुप में सेवाएं दी है। नेत्र रोग वार्ड प्रभारी के रुप में वष 2018 को सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। माता-पिता ने मेरे किसी भी निर्णय का कभी विरोध नहीं किया।
कितने पर्वत शिखरों पर आप चढ़ चुके है? – यूरोप, अफ्रीका, रूस, इटली, स्विटजरलैंड समेत 10 देशों में 21 से अधिक पर्वत शिखरों पर सफलतापूर्वक चढ़ाई किया। 25 किन्नरों के दल को, 25 दिव्यांगों के दल को भी सफलतापूर्वक हिमालय के शिखर पर पहुंचाया व 2 पर्वतारोहियों की एवरेस्ट से जान भी बचाई। खुद भी एवरेस्ट चढ़ा और अपने स्टूडेंट्स को भी चढ़ाया।