समाज के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि कोरी समाज की उत्पत्ति प्राचीनतम महाराजा मांधाता से हुई थी। मांधाता महाराज कोली वंश से थे, जिनका साम्राज्य पूरे भारत में प्रभावशाली रहा है। उनके नाम से सिक्के भी चलते थे। भगवान गौतम बुद्ध और महात्मा कबीर भी उन्हीं के पूर्वजों में से हैं। समाज के अध्यक्ष राजाराम बुनकर कहते हैं कि कोली, कोरी समाज के मेहनत पंसद लोग हंै। समाज के लोग मांस, मदिरा व शराब का सेवन नहीं करते और अहिंसावादी होते हैं। कोरी, कोली कोल समाज भारत के मूलनिवासी हैं।
हर प्रदेश में अलग पहचान
कोरी जाति को अलग-अलग प्रदेशों में कई नामों से जाना जाता है। जैसे कोरी, कोली, बुनकर, शाक्य, तंतुबाय, हिंदू जुलाहा, भूमिहार, कबीरपंथी, कोविंद आदि। कोरी समाज पूरे भारत में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक में आबाद हैं।
कोरी जाति को अलग-अलग प्रदेशों में कई नामों से जाना जाता है। जैसे कोरी, कोली, बुनकर, शाक्य, तंतुबाय, हिंदू जुलाहा, भूमिहार, कबीरपंथी, कोविंद आदि। कोरी समाज पूरे भारत में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक में आबाद हैं।
जनसंख्या के अनुपात में मिले भागीदारी
कोरी समाज के लोगों को इस बात की कसक है कि समाज के उनका योगदान किसी से कम नहीं है, लेकिन फिर भी वे उपेक्षित किया जाते हैं। कोरी सामज के जिलाध्यक्ष ने कहा कि सरकार से उनकी मांग है जनसंख्या के अनुपात में कोरी समाज को भी राजनीतिक भागीदारी में हिस्सा मिलना चाहिए। साथ ही कोरी समाज के बच्चों को पढ़ाई के लिए अलग से सरकार फंड मुहैया कराए तभी समाज को बराबर का हक मिल पाएगा और वे अपनी भूमिका ठीक से निभा पाएंगे।
कोरी समाज के लोगों को इस बात की कसक है कि समाज के उनका योगदान किसी से कम नहीं है, लेकिन फिर भी वे उपेक्षित किया जाते हैं। कोरी सामज के जिलाध्यक्ष ने कहा कि सरकार से उनकी मांग है जनसंख्या के अनुपात में कोरी समाज को भी राजनीतिक भागीदारी में हिस्सा मिलना चाहिए। साथ ही कोरी समाज के बच्चों को पढ़ाई के लिए अलग से सरकार फंड मुहैया कराए तभी समाज को बराबर का हक मिल पाएगा और वे अपनी भूमिका ठीक से निभा पाएंगे।
कोरी समाज को सरकार दे विशेष अनुदान
कोरी समाज का मुख्य कार्य कपास पैदा करना और सूत से कपड़ा बनाकर व्यवसाय करना था। लेकिब मशीनों ने उनका काम छीन लिया है, जिससे वे मछली पालन कर व मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं। कुछ जगह खेती किसानी भी उनका व्यवसाय है। लेकिन जरूरी यह है कि कोरी समाज को सरकार विशेष अनुदान राशि दे। जिससे वे पुन: कपड़ा बुनने का कार्य शुरू कर सकें। क्योंकि अभी हालत यह है कि कोरी समाज ज्यादातर प्रदेशों में मजदूर वर्ग बनकर रह गया है।
कोरी समाज ज्यादातर प्रदेशों में मजदूर वर्ग बनकर रह गया है। व्यवसाय के लिए कोरी जाति को अनुदान में राशि देना चाहिए जिससे समाज के लोग पुन: अपना पैतृक कपड़ा बुनने का कार्य शुरू कर सके। हालांकि शिक्षा, स्वास्थ्य व राजनीति में भी आगे आ रहे हंै।
राजाराम बुनकर, जिलाध्यक्ष कोरी समाज
हमारे समाज की महिलाएं बहुत कम पढ़ी-लिखी हंै, इसलिए समाज अशिक्षित है। महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रयास हो। सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था प्राइवट स्कूलों के तर्ज पर की जानी चाहिए, जिससे गरीब व्यक्ति भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके और जागरुक हों सके।
सुनीता कोरी, सरपंच, ग्राम पंचायत झिरिया
&समाज के लोग पहले कपड़ा बुनते थे, जिसकी जगह अब मशीनों ने ले ली है। आधुनिक युग के साथ पढ़ाई-लिखाई में पिछड़े तो समाज के लोग बेरोजगार हो गए। सरकार से मांग है कि बुनकर समाज के लोगों के लिए कपड़ा उद्योग लगाने में रियायत दी जाए। इससे पैतृक व्यवसाय न छूटे।
नंदलाल कोरी उर्फ नंदू, जिला उपाध्यक्ष कोरी समाज
विधानसभा व लोकसभा में मिले बराबर की भागीदारी
समाज लोगों को आज भी समान भागीदारी नहीं मिल पाई जबकि समाज के उत्थान में कोरी समाज का भी बराबरी का योगदान रहा है। जब मान नहीं होता तो काम भी नहीं होता। सरकार से मांग है हमारा संगठन मजबूत है, विधानसभा व लोकसभा में बराबर भागीदारी मिले।
गुलबसिया कोरी, जिला पंचायत सदस्य