Satna Mayor Mamta Pandey” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/03/08/mamta_pandey_4248685-m.jpg”> Satna Mayor Mamta Pandey IMAGE CREDIT: patrika 27 की उम्र में बनीं अध्यक्ष
महापौर का धेयवाक्य है, जीवन में हार से ही जीत का रास्ता खुलता है। गरीबों की सेवा एवं उनकी दुआओं से ही मंजिल मिलती है। पति की अम्बिकापुर में पोस्टिंग के दौरान उनका परिचय पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती के भाई से हुआ। उनके सहयोग से वे उमाभारती से मिलीं और उनके कहने पर वनवासी छात्रावास से जुड़ीं। वनवासी छात्रों के लिए एक साल तक गांव-गांव जाकर अनाज इकट्ठा किया। इंजीनियर की पत्नी होने के बावजूद सिर पर गारा ढोकर छात्रावास का भवन बनवाया। संघर्ष का फल यह रहा कि 27 की उम्र में उन्हें अम्बिकापुर वनवासी छात्रावास का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
महापौर का धेयवाक्य है, जीवन में हार से ही जीत का रास्ता खुलता है। गरीबों की सेवा एवं उनकी दुआओं से ही मंजिल मिलती है। पति की अम्बिकापुर में पोस्टिंग के दौरान उनका परिचय पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती के भाई से हुआ। उनके सहयोग से वे उमाभारती से मिलीं और उनके कहने पर वनवासी छात्रावास से जुड़ीं। वनवासी छात्रों के लिए एक साल तक गांव-गांव जाकर अनाज इकट्ठा किया। इंजीनियर की पत्नी होने के बावजूद सिर पर गारा ढोकर छात्रावास का भवन बनवाया। संघर्ष का फल यह रहा कि 27 की उम्र में उन्हें अम्बिकापुर वनवासी छात्रावास का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
महापौर का कहना है, वह फ्रीडम फाइटर जगमोहन प्रसाद गौतम की बेटी हंै। इससे उनके दिल में हमेशा कुछ करने का जज्बा रहा। 45 की उम्र में पढ़ाई पूरी कर पहली बार उमा भारती की जनशक्ति पार्टी से जिपं सदस्य का चुनाव लड़ा, जिसमें हार मिली। इसके बाद इसी पार्टी से महापौर का चुनाव लड़ा, उसमें भी करारी हार मिली। इससे वह निराश नहीं हुईं। सच्चे मन से गरीबों की सेवा में तत्पर रहीं। 2014 में भाजपा से महापौर पद के लिए टिकट मिला और उन्होंने जीत दर्ज की।