उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करती, बल्कि उन सामाजिक वास्तविकताओं को आमने-सामने खड़ा करती हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। उनके व्यंग्य युवाओं को प्रेरित करते हैं। इसलिए छात्रों और युवाओं को उनकी कृतियां और रचनाएं जरूर पढऩा चाहिए।
समाज की सच्चाइयों को उजागर किया
परसाई ने समाज को बहुत ही बारीकी से समझा। उन्होंने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा। लेखनी के माध्यम से उनकी समस्याओं को उजागर किया। उनकी भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन रहा। परसाई ने अपने व्यंग्यों द्वारा मौजूदा व्यवस्था, समाज और सत्ता सभी पर निशाना साधा।
परसाई ने समाज को बहुत ही बारीकी से समझा। उन्होंने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा। लेखनी के माध्यम से उनकी समस्याओं को उजागर किया। उनकी भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन रहा। परसाई ने अपने व्यंग्यों द्वारा मौजूदा व्यवस्था, समाज और सत्ता सभी पर निशाना साधा।
युवाओं को करती हैं प्रेरित
उनकी रचनाएं ठिठुरता हुआ गणतंत्र, कृति आवारा भीड़ के खतरे, पैसे का खेल, विकलांग श्रद्धा का दौर, एक निठल्ले की डायरी रचना श्रेष्ठ व्यंग्य हैं। ये सभी रचनाएं युवाओं को सकारात्मक दिशा में बढऩे के लिए प्रेरित करती हैं।
उनकी रचनाएं ठिठुरता हुआ गणतंत्र, कृति आवारा भीड़ के खतरे, पैसे का खेल, विकलांग श्रद्धा का दौर, एक निठल्ले की डायरी रचना श्रेष्ठ व्यंग्य हैं। ये सभी रचनाएं युवाओं को सकारात्मक दिशा में बढऩे के लिए प्रेरित करती हैं।
ये हैं उनके चुनिंदा वक्तव्य
– चंदा मांगने वाले और देने वाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेने वाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देने वाला भी मांगने वाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं।
– समस्याओं को इस देश में झाडफ़ूंक, टोना-टोटका से हल किया जाता है। साम्प्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया। हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई।
– अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं।
– बीमारियां बहुत देखी हैं। निमोनिया, कालरा, कैंसर जिनसे लोग मरते हैं। मगर यह टैक्स की कैसी बीमारी है।
– चंदा मांगने वाले और देने वाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेने वाला गंध से जान लेता है कि यह देगा या नहीं। देने वाला भी मांगने वाले के शरीर की गंध से समझ लेता है कि यह बिना लिए टल जाएगा या नहीं।
– समस्याओं को इस देश में झाडफ़ूंक, टोना-टोटका से हल किया जाता है। साम्प्रदायिकता की समस्या को इस नारे से हल कर लिया गया। हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई।
– अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जा रही हैं।
– बीमारियां बहुत देखी हैं। निमोनिया, कालरा, कैंसर जिनसे लोग मरते हैं। मगर यह टैक्स की कैसी बीमारी है।
शायद ही कोई हास्य व्यंग्यकार हो, जिसने हरिशंकर परसाई को न पढ़ा हो। उनकी कृतियों को पढ़े बिना कोई भी साहित्यकार व्यंग्यकार विधा को नहीं छू सकता। उनकी रचनाएं समाज का वास्तविक दर्शन कराती हैं। समाज को वास्तव में समझने के लिए युवाओं को हरिशंकर परिसाई की रचनाएं पढऩी चाहिए।
रविशंकर चतुर्वेदी, हास्य व्यंग्यकार
रविशंकर चतुर्वेदी, हास्य व्यंग्यकार
हरिशंकर परसाई पहले लेखक रहे जिन्होंने व्यंग्य के माध्यम से लोगों के दिल को छुआ। उनकी रचनाएं पैसे का खेल, विकलांग श्रद्धा का दौर जीवन में हर युवा को एक बार जरूर पढऩी चाहिए। इन रचनाओं में युवाओं को समाज का वास्तविक चेहरा देखने को मिलेगा।
डॉ. राजेंद्र द्विवेदी, प्राध्यापक, डिग्री कॉलेज
डॉ. राजेंद्र द्विवेदी, प्राध्यापक, डिग्री कॉलेज