जिस मस्जिद में नमाज अता किया करते थे। वह मस्जिद आज भी सतना की बड़ी सब्जी मंडी के पीछे बनी हुई है। वह सुबह शाम नमाज अता करने के बाद अपने विश्राम गृह की ओर चले जाते थे। मस्जिद के कुछ दूर स्थित होटल में भोजन करते थे। किसी को कोई भनक ना लगे इसलिए वह हमेशा गुप-चुप रहा करते थे।
30 जनवरी को निधन
गौरतलब है कि, आज के ही दिन यानी 30 जनवरी को महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। एक किताब के मुताबिक 30 जनवरी से पहले भी गांधी जी को मारने के प्रयास हुए थे। 20 जनवरी 1948 को ही प्रार्थना सभा से करीब 75 फीट दूर एक बम फेंका गया था। इस कांड के दौरान मदनलाल पाहवा नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया था, जबकि 6 अन्य लोग टैक्सी से भाग गए थे। गांधी जी को मारने की 1934 से यह पांचवीं कोशिश थी।
गौरतलब है कि, आज के ही दिन यानी 30 जनवरी को महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। एक किताब के मुताबिक 30 जनवरी से पहले भी गांधी जी को मारने के प्रयास हुए थे। 20 जनवरी 1948 को ही प्रार्थना सभा से करीब 75 फीट दूर एक बम फेंका गया था। इस कांड के दौरान मदनलाल पाहवा नाम का एक व्यक्ति गिरफ्तार किया गया था, जबकि 6 अन्य लोग टैक्सी से भाग गए थे। गांधी जी को मारने की 1934 से यह पांचवीं कोशिश थी।
सतना में स्मृतियां आज भी शेष
देशभर में बापू के नाम से मसहूर राष्ट्रपिता मोहनदास करमचन्द्र गांधी की ३० जनवरी को पुण्यतिथि मनाई जा रही है। सतना सहित समूचे देश में जयंती पर राष्ट्रपिता को याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया जा रहा है। सतना शहरवासियों के मध्य बापू का नाम लेते ही बड़े-बुजुर्गों के मन में कुछ स्मृति आज भी शेष है। जब महात्मा गांधी के साक्षात दर्शन इस शहर के लोगों को भी हुए थे। बापू अपने जीवन काल में सतना कभी नहीं आए। लेकिन यहां से होकर गुजरे जरुर थे, उस वक्त उनका बेटा हरिलाल सतना में ही थी। लेकिन उसके द्वारा इस्लाम धर्म अपना लेने के कारण बापू ने अपना मुहं फेर लिया था।
देशभर में बापू के नाम से मसहूर राष्ट्रपिता मोहनदास करमचन्द्र गांधी की ३० जनवरी को पुण्यतिथि मनाई जा रही है। सतना सहित समूचे देश में जयंती पर राष्ट्रपिता को याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया जा रहा है। सतना शहरवासियों के मध्य बापू का नाम लेते ही बड़े-बुजुर्गों के मन में कुछ स्मृति आज भी शेष है। जब महात्मा गांधी के साक्षात दर्शन इस शहर के लोगों को भी हुए थे। बापू अपने जीवन काल में सतना कभी नहीं आए। लेकिन यहां से होकर गुजरे जरुर थे, उस वक्त उनका बेटा हरिलाल सतना में ही थी। लेकिन उसके द्वारा इस्लाम धर्म अपना लेने के कारण बापू ने अपना मुहं फेर लिया था।
गांधी माय फादर का दृश्य था सतना का
बता दें कि, चर्चित फिल्म ‘गांधी माय फादरÓ का वह दृश्य तो सभी को याद होगा जब ट्रेन में सवार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देखने उमड़ी भीड़ के बीच खड़े बेटे हरिलाल गांधी की ओर जैसे ही नजर जाती है वे हतप्रभ रह जाते हैं। वे साथ चलने की बात करते हैं, लेकिन ट्रेन के चलते समय हरिलाल गांधी काफी दूर तक प्लेटफार्म पर रेल के साथ दौड़ते हैं। पिता की बजाय मां कस्तूरबा गांधी की जयकार बोलते हैं। जबकि भीड़ गांधी जिंदाबाद के नारे लगा रही थी। यह सत्य घटना सतना से जुड़ी हुई थी। फिल्म के इस दृश्य के उलट महात्मा गांधी ने बेटे को देखकर मुंह फेर लिया था और आखिरी तक बात नहीं की थी।
बता दें कि, चर्चित फिल्म ‘गांधी माय फादरÓ का वह दृश्य तो सभी को याद होगा जब ट्रेन में सवार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देखने उमड़ी भीड़ के बीच खड़े बेटे हरिलाल गांधी की ओर जैसे ही नजर जाती है वे हतप्रभ रह जाते हैं। वे साथ चलने की बात करते हैं, लेकिन ट्रेन के चलते समय हरिलाल गांधी काफी दूर तक प्लेटफार्म पर रेल के साथ दौड़ते हैं। पिता की बजाय मां कस्तूरबा गांधी की जयकार बोलते हैं। जबकि भीड़ गांधी जिंदाबाद के नारे लगा रही थी। यह सत्य घटना सतना से जुड़ी हुई थी। फिल्म के इस दृश्य के उलट महात्मा गांधी ने बेटे को देखकर मुंह फेर लिया था और आखिरी तक बात नहीं की थी।
हरिलाल मिलने गए थे रेलवे स्टेशन
यह वाकया सन् 1940-41 का बताया जा रहा है। जब गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ मुम्बई-हावड़ा ट्रेन में मुम्बई से इलाहाबद जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए थे। उस समय उनके पुत्र हरिलाल सतना में ही थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि माता-पिता ट्रेन से आ रहे हैं वे भी मिलने की इच्छा के साथ सतना रेलवे स्टेशन पहुंच गए। भारी-भीड़ के बीच से वे पिता और मां के पास जाना चाह रहे थे। लेकिन बापू उनसे मिलना नहीं मुनासिब समझे।
यह वाकया सन् 1940-41 का बताया जा रहा है। जब गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ मुम्बई-हावड़ा ट्रेन में मुम्बई से इलाहाबद जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए थे। उस समय उनके पुत्र हरिलाल सतना में ही थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि माता-पिता ट्रेन से आ रहे हैं वे भी मिलने की इच्छा के साथ सतना रेलवे स्टेशन पहुंच गए। भारी-भीड़ के बीच से वे पिता और मां के पास जाना चाह रहे थे। लेकिन बापू उनसे मिलना नहीं मुनासिब समझे।