ये भी पढ़ें: मैहर करेंसी पेपर मामला: आरोपी बालक दास ने फर्जी पता लिखाकर जमा कराया था बैग अब चाहे मूर्तियां सस्ती हों अथवा महंगी, इसका कोई खास अंतर बाजारों में समझ में नहीं आ रहा। वर्षों पहले तक कलाकार हाथों से मूर्तियां बनाकर बाजार में बेचते थे, आज यही मूर्तियां सांचे में तैयार की जा रही हैं। इसीलिए दिन-प्रतिदिन मूर्तियों का बाजार भी बढ़ता जा रहा। साथ ही ट्रेडिशनल मूर्तियों की जगह डिजाइनर मूर्तियों ने ले ली है।
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40 साल से शहर में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बेचने वाले मोहन कहते हैं कि हर बार मूर्तियों के दाम बढ़ रहे हैं। एक आना में मिलने वाली मूर्तियों के दाम पांच हजार तक हो गए हैं। पर इससे खरीदारों में कमी नहीं आई। बल्कि, वे अपनी क्षमता अनुसार मूर्तियों को खरीदना पसंद कर रहे हैं। अंतर इतना आया है कि पहले जहां पूरे बाजार में प्योर ट्रेडिशनल मूर्तियों की भरमार होती थी, अब डिजाइनर रंग-बिरंगी मूर्तियां देखने को मिल रही हैं।
40 साल से शहर में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बेचने वाले मोहन कहते हैं कि हर बार मूर्तियों के दाम बढ़ रहे हैं। एक आना में मिलने वाली मूर्तियों के दाम पांच हजार तक हो गए हैं। पर इससे खरीदारों में कमी नहीं आई। बल्कि, वे अपनी क्षमता अनुसार मूर्तियों को खरीदना पसंद कर रहे हैं। अंतर इतना आया है कि पहले जहां पूरे बाजार में प्योर ट्रेडिशनल मूर्तियों की भरमार होती थी, अब डिजाइनर रंग-बिरंगी मूर्तियां देखने को मिल रही हैं।
गली-कूचों की दुकानों ने तोड़ा कमर
एक दौर था जब शहर में गिनी-चुनी दुकानें मूर्तियों की हुआ करती थीं। लोग वहीं से ही खरीदारी करते थे। अब शहर और गांव के गली-कूचों की दुकानों ने पेशेवर व्यापारियों की कमर तोड़ दी हैं। उनका कहना है कि नगर निगम की अनदेखी के कारण हर कोई अब जहां मन चाहा वहां दुकान लगा लेता है। अधिकारी अंजान बने हुए हैं। पेशेवर व्यापारियों का शासन के प्रति रोष बना हुआ है। उनका कहना है कि त्योहारों के मद्देनजर जिला प्रशासन को प्रॉपर तरीके से गाइड लाइन बनानी चाहिए, जिससे पुराने व्यापारियों को निराशा हाथ न लगे।
एक दौर था जब शहर में गिनी-चुनी दुकानें मूर्तियों की हुआ करती थीं। लोग वहीं से ही खरीदारी करते थे। अब शहर और गांव के गली-कूचों की दुकानों ने पेशेवर व्यापारियों की कमर तोड़ दी हैं। उनका कहना है कि नगर निगम की अनदेखी के कारण हर कोई अब जहां मन चाहा वहां दुकान लगा लेता है। अधिकारी अंजान बने हुए हैं। पेशेवर व्यापारियों का शासन के प्रति रोष बना हुआ है। उनका कहना है कि त्योहारों के मद्देनजर जिला प्रशासन को प्रॉपर तरीके से गाइड लाइन बनानी चाहिए, जिससे पुराने व्यापारियों को निराशा हाथ न लगे।
कोलकाता, लखनऊ और जयपुर से मंगाई जा रही मूर्तियां
गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के व्यापार में भी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही। पांच साल से शहर में प्रतिस्पर्धा के चलते कस्टमर को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के लिए अलग-अलग शहर की लोकप्रिय मूर्तियों को उपलब्ध कराया जा रहा। बाजारों में कोलकाता, जयपुर और लखनऊ की मूर्तियों की भरमार है। कोलकाता की मूर्तियों में भगवान को कपड़े पहनाए गए हैं और उनकी नक्काशी ऐसी तैयार की गई है जैसे ओरिजनल मूर्तियां हो। जयपुर की मूर्तियों में स्टोन का काम काफी अच्छा देखने को मिल रहा। लखनऊ की मूर्तियों में मोतियों का काम आकर्षक लग रहा है।
गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के व्यापार में भी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही। पांच साल से शहर में प्रतिस्पर्धा के चलते कस्टमर को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के लिए अलग-अलग शहर की लोकप्रिय मूर्तियों को उपलब्ध कराया जा रहा। बाजारों में कोलकाता, जयपुर और लखनऊ की मूर्तियों की भरमार है। कोलकाता की मूर्तियों में भगवान को कपड़े पहनाए गए हैं और उनकी नक्काशी ऐसी तैयार की गई है जैसे ओरिजनल मूर्तियां हो। जयपुर की मूर्तियों में स्टोन का काम काफी अच्छा देखने को मिल रहा। लखनऊ की मूर्तियों में मोतियों का काम आकर्षक लग रहा है।
कैसे बढ़ा मूर्तियों का बाजार
जानकार बताते हैं, पहले ज्यादातर लोग संयुक्त परिवार के साथ रहते थे। आज की महंगाई के कारण सब लोग अपने-अपने रोजगार में लगे हुए है। कोई गांव में तो कोई शहर में रहता है। पहले जहां संयुक्त परिवार के लोग एक साथ मिलकर एक ही लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की खरीदारी करते थे, ठीक उसके विपरीत अब एक ही परिवार के कई लोग अलग-अलग मूर्तियों की पूजा अपने परिवार के साथ करते हैं।
जानकार बताते हैं, पहले ज्यादातर लोग संयुक्त परिवार के साथ रहते थे। आज की महंगाई के कारण सब लोग अपने-अपने रोजगार में लगे हुए है। कोई गांव में तो कोई शहर में रहता है। पहले जहां संयुक्त परिवार के लोग एक साथ मिलकर एक ही लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की खरीदारी करते थे, ठीक उसके विपरीत अब एक ही परिवार के कई लोग अलग-अलग मूर्तियों की पूजा अपने परिवार के साथ करते हैं।
टेराकोटा की मूर्तियों की मांग बढ़ी है। पहले जहां हाई प्रोफाइल लोगों के बीच में इसकी काफी पापुलरिटी थी। अब सामान्य परिवारों के लोगों को भी यह भाने लगी है। उन्हें भी यह पसंद आ रहे हैं।
लिटेन विश्वास, विक्रेता
लिटेन विश्वास, विक्रेता
समय की मांग के चलते लोगों को कोलकाता, जयपुर और लखनऊ की गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। अब लोग चमक-धमक वाली लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की मांग करने लगे हैं।
कालिका प्रसाद, विक्रेता
कालिका प्रसाद, विक्रेता
हमारे यहां चालीस साल से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों को सेल किया जा रहा है। हर साल लोगों का अच्छा रिस्पॉस मिलता है। पहले लोग जहां ट्रेडिशनल मूर्तियां लेना पसंद करते थे, अब सजावटी मूर्तियों को ले रहे हैं।
मोहन अग्रवाल, विक्रेता
मोहन अग्रवाल, विक्रेता