नक्षत्रों और ग्रहों का संयोग
पंडित द्विवेदी बताते हैं, 122 वर्ष बाद गणेश चतुर्थी पर नक्षत्रों और ग्रहों का विशेष संयोग बन रहा है। लंबे समय बाद गणेश चतुर्थी का त्योहार बुधवार से शुरू हो रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। बताया, चतुर्थी 12 सितंबर को शाम 4.08 बजे से शुरू होकर 13 सिंतबर को शाम 2.51 बजे तक रहेगी। 23 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश मूर्ति का विसर्जन किया जाएगा।
पंडित द्विवेदी बताते हैं, 122 वर्ष बाद गणेश चतुर्थी पर नक्षत्रों और ग्रहों का विशेष संयोग बन रहा है। लंबे समय बाद गणेश चतुर्थी का त्योहार बुधवार से शुरू हो रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। बताया, चतुर्थी 12 सितंबर को शाम 4.08 बजे से शुरू होकर 13 सिंतबर को शाम 2.51 बजे तक रहेगी। 23 सितंबर को अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश मूर्ति का विसर्जन किया जाएगा।
स्थापना का शुभ मुहूर्त
– 12 सितंबर को शाम 4.53 से शाम 6.27 बजे तक। शाम 7.54 से रात 10.47 बजे तक मूर्ति स्थापित कर सकते हैं।
– 13 सितंबर को चौघडिय़ा के अनुसार सुबह छह बजे से सुबह 7.34 बजे तक, दोपहर 10.40 से दोपहर 2.51 बजे तक मूर्ति स्थापना करें।
– 12 सितंबर को शाम 4.53 से शाम 6.27 बजे तक। शाम 7.54 से रात 10.47 बजे तक मूर्ति स्थापित कर सकते हैं।
– 13 सितंबर को चौघडिय़ा के अनुसार सुबह छह बजे से सुबह 7.34 बजे तक, दोपहर 10.40 से दोपहर 2.51 बजे तक मूर्ति स्थापना करें।
गणेश चतुर्थी का महत्व
चतुर्थी का संबंध चंद्रमा से है और चंद्रमा का मन से। गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे धार्मिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार इस दिन गणेश भगवान का प्रकाट्य दिवस मनाया जाता है। एक दिन जब पार्वती माता मानसरोवर में स्नान करने गईं थीं, तो बाल गणेश को उन्होंने पहरा देने को कहा था। इतने में भगवान शिव वहां पहुंच गए, लेकिन गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर त्रिशूल से गणेशजी का सिर काट दिया। इसके बाद पार्वती माता के क्रोधित होने पर श्रीगणेश को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया गया। तभी से उन्हें गजानन कहकर पुकारा जाने लगा।
चतुर्थी का संबंध चंद्रमा से है और चंद्रमा का मन से। गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे धार्मिक प्रसंग जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार इस दिन गणेश भगवान का प्रकाट्य दिवस मनाया जाता है। एक दिन जब पार्वती माता मानसरोवर में स्नान करने गईं थीं, तो बाल गणेश को उन्होंने पहरा देने को कहा था। इतने में भगवान शिव वहां पहुंच गए, लेकिन गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर त्रिशूल से गणेशजी का सिर काट दिया। इसके बाद पार्वती माता के क्रोधित होने पर श्रीगणेश को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया गया। तभी से उन्हें गजानन कहकर पुकारा जाने लगा।