सतना

Gandhi Jayanti Special : गांधी जी के आदर्शों पर चलता है ये पूरा गांव, फिर भी यहां बुरे हाल में जी रहे लोग

Gandhi Jayanti Special : महात्मा गांधी की आज 155वीं जयंती है। इसे भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के कई देश मना रहे हैं। लेकिन मैहर जिले का सुलखमा गांव इन सब से अलग है। पूरा गांव गांधी जी के आदर्शो पर चलता है उन्हीं पर जीता है और उन्हीं पर रमता है।

सतनाOct 02, 2024 / 12:25 pm

Faiz

Gandhi Jayanti Special : 2 अक्टूबर यानी आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 155वीं जयंती है। इसे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के और भी कई देश मना रहे हैं। लेकिन, मध्य प्रदेश के सतना जिले के पिछले वर्ष अलग हुए मैहर जिले का सुलखमा गांव इन सब से भी अलग है। पूरा गांव गांधी जी के आदर्शो पर चलता है उन्हीं पर जीता है और उन्हीं पर रमता है, इस गांव में रहने वाले ग्रामीण आज भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए जाने वाले चरखे को चला रहे हैं। बावजूद इसके राष्ट्रपिता के आदर्शों पर चलने वाले इस गांव की ओर अब तक देश-प्रदेश के जिम्मेदारों का ध्यान केंद्रित नहीं हुआ, जिसका नतीजा ये है कि आज यहां के ग्रामीणों के सामने रोजी रोटी तक का संकट है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
जिले का सुलखमा गांव आज भी महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार कर रहा है। गांव के लोग बापू को आदर्श मानकर उनके पद चिन्हों पर चलते आ रहे हैं। यहां के हर घरों में आज भी गांधी जी का चरखा चलता है। सूत काटे जाते हैं। ये लोग इन्हीं चरखों के जरिए कंबल और कपड़े अपने हाथों से बनाते हैं। इस तरह जैसे-तैसे इनका गुजारा चल जाता है। भले ही ये लोग आधुनिक दौर से काफी पीछे हैं, लकिन इन्हें इसका जरा भी मलाल नहीं है, क्योंकि वो किसी भी हाल में रहें। गांधी जी के आदर्शों को नहीं छोड़ेंगे।
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विरासत के तौर पर बसे गांधी जी के आदर्श

जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की आबादी करीब 3 हजार है। पाल समाज की बहुलता वाले इस गांव के लोग स्वावलंबन को अपने जीवन में इसका हिस्सा मानते हैं। क्या बच्चे क्या बड़े क्या बुजुर्ग गांधी जी के आदर्श विरासत के तौर पर बस गई है। चरखे के अलावा भी इनका भेड़ पालन व्यवसाय है। सुलखामा के करीब 200 परिवारों में भले ही ग्राम स्वरोजगार का साधन हो पर वे उतना भी नहीं की उनके जीवन स्तर को उठा सके। सरकारी योजनाओं का लाभ न मिल पाने दर्द गांव वालों के चहरे पर साफ दिखता है। जरूरत है ध्यान देने की बापू की विरासत को सहेजने की गांव वालों की जिंदगी में रोशनी पहुंचाने की और साकार करने की ग्राम स्वराज का सपना है।

ग्रामीणों की आस

मैहर के सुलखमा गांव के लोगों को उमीद है कि जिला प्रशासन कोई मदद करेगा। लेकिन उमीद पर पानी फिर जाता है। गांव के लोगों की माने तो गांधी के ग्राम स्वरोजगार अब फीकी पड़ रही है। धीरे-धीरे कर हर घर में गांधी जी के चरखे की धुन बंद हो रही है। बाजय यह कि चरखा चला कर लोगों का जीवन यापन करने में कठिनाई का सामने करना पड़ रहा है। यहां के नवयुवक लोग पलायन करने में मजबूर हैं। ग्रामीणों के तरफ प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा। कंबल बना कर तैयार तो कर लिया जाता मगर मजदूरी नहीं निकल पाती है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से कई बार ग्रामीण आधुनिक चीजों की मांग की है। पर कोई सुध नहीं ले रहा। यही वजय है धीरे धीरे कर के गांधी जी के आदर्शों में चलने वाले गांव में अब चरखे की धुन धीमी पड़ती जा रही है।
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झूठी उम्मीदें जगाईं

Gandhi Jayanti Special
2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन कई बार जिले के अधिकारी उस गांव में पहुंचे और गांव के लोगों की इस कला प्रदर्शन का लुत्फ भी उठाया वा उन्हें आधुनिक सामान देकर उनका सहयोग करने की बात भी कही, जिसे सुनकर ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी भी आई। लेकिन वो खुशी लंबे इंतजार के बाद नाराजगी में बदल गई। ग्रामीणों का कहना है कि, अधिकारी आते हैं, आश्वासन देते हैं और चले जाते हैं। हमें मशीनें देने का वादा कई सालों से किया जा रहा है। लेकिन, आज तक मशीन मुहैया नहीं की गई। सिर्फ गांधी जयंती के दिन ही हमें याद किया जाता है। उसके बाद कोई यहां पलट कर नहीं देखता और न ही हमारे गांव का नाम याद रखता है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार?

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अपर कलेक्टर शैलेंद्र सिंह का कहना है कि हमें जानकारी लगी है कि जिले के सुलखवा गांव में गांधी के आदर्शों को, गांधी की विरासत को जिंदा रखा जा रहा है उनके आदर्शों पर चलकर समाज को संदेश दे रहे हैं। लेकिन उन्हें सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसको लेकर हम प्रयास करेंगे और गांव का दौरा कर उनके लिए जो भी बेहतर हो सकेगा। वह करेंगे हम कोशिश करेंगे की जितने भी सामाजिक संगठन है बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लें, ताकि ग्रामीणों द्वारा किए गए काम की वेतन मजदूरी मिल सके।

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