जिले का सुलखमा गांव आज भी महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार कर रहा है। गांव के लोग बापू को आदर्श मानकर उनके पद चिन्हों पर चलते आ रहे हैं। यहां के हर घरों में आज भी गांधी जी का चरखा चलता है। सूत काटे जाते हैं। ये लोग इन्हीं चरखों के जरिए कंबल और कपड़े अपने हाथों से बनाते हैं। इस तरह जैसे-तैसे इनका गुजारा चल जाता है। भले ही ये लोग आधुनिक दौर से काफी पीछे हैं, लकिन इन्हें इसका जरा भी मलाल नहीं है, क्योंकि वो किसी भी हाल में रहें। गांधी जी के आदर्शों को नहीं छोड़ेंगे।
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विरासत के तौर पर बसे गांधी जी के आदर्श
जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की आबादी करीब 3 हजार है। पाल समाज की बहुलता वाले इस गांव के लोग स्वावलंबन को अपने जीवन में इसका हिस्सा मानते हैं। क्या बच्चे क्या बड़े क्या बुजुर्ग गांधी जी के आदर्श विरासत के तौर पर बस गई है। चरखे के अलावा भी इनका भेड़ पालन व्यवसाय है। सुलखामा के करीब 200 परिवारों में भले ही ग्राम स्वरोजगार का साधन हो पर वे उतना भी नहीं की उनके जीवन स्तर को उठा सके। सरकारी योजनाओं का लाभ न मिल पाने दर्द गांव वालों के चहरे पर साफ दिखता है। जरूरत है ध्यान देने की बापू की विरासत को सहेजने की गांव वालों की जिंदगी में रोशनी पहुंचाने की और साकार करने की ग्राम स्वराज का सपना है।ग्रामीणों की आस
मैहर के सुलखमा गांव के लोगों को उमीद है कि जिला प्रशासन कोई मदद करेगा। लेकिन उमीद पर पानी फिर जाता है। गांव के लोगों की माने तो गांधी के ग्राम स्वरोजगार अब फीकी पड़ रही है। धीरे-धीरे कर हर घर में गांधी जी के चरखे की धुन बंद हो रही है। बाजय यह कि चरखा चला कर लोगों का जीवन यापन करने में कठिनाई का सामने करना पड़ रहा है। यहां के नवयुवक लोग पलायन करने में मजबूर हैं। ग्रामीणों के तरफ प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा। कंबल बना कर तैयार तो कर लिया जाता मगर मजदूरी नहीं निकल पाती है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से कई बार ग्रामीण आधुनिक चीजों की मांग की है। पर कोई सुध नहीं ले रहा। यही वजय है धीरे धीरे कर के गांधी जी के आदर्शों में चलने वाले गांव में अब चरखे की धुन धीमी पड़ती जा रही है। यह भी पढ़ें- आज एमपी को बड़ी सौगातें, कर्मचारियों के खाते में आए 69 लाख 42 हजार रुपए