ये भी पढ़ें: गैंगवार में मारा गया कुख्यात डकैत बबुली कोल, 6 लाख का था इनाम दुर्दांत डकैत बनने से पहले बबुली बंधवा टोला की बैंड पाटी में झुनझुना बजाता था। शादी समारोह में शामिल होता था। धीरे-धीरे बबुली की कला बदमाशों तक चली गई। वह उनका सेवादार बन गया। भोजन आदि की व्यवस्था करने के बाद गीत-संगीत सुनाकर मनोरंजन करने लगा। इस आशय की जानकारी ‘पत्रिका’ को दस्यु क्षेत्र के ग्रामीणों ने दी।
ये भी पढ़ें: गैंगवार में मारा गया 6 लाख रुपए का इनामी डकैत बबुली कोल बलखड़िया का दिल जीता
डोडा पंचायत का निवासी बबुली कोल ने बलखडिय़ा के संपर्क में आने के बाद ही अपराध की दुनिया में कदम रखा था। सबसे पहले बलखडिय़ा का दिल जीता, और मुखबिरी करने लगा। जबकि बलखडिय़ा के गांव बरुई से सोसाइटी कोलान की दूरी 25 किमी. दूर थी। फिर भी दी गई जिम्मेदारी निभाता रहा। कुछ ही दिनों में बबुली बलखडिय़ा का खास बन गया।
डोडा पंचायत का निवासी बबुली कोल ने बलखडिय़ा के संपर्क में आने के बाद ही अपराध की दुनिया में कदम रखा था। सबसे पहले बलखडिय़ा का दिल जीता, और मुखबिरी करने लगा। जबकि बलखडिय़ा के गांव बरुई से सोसाइटी कोलान की दूरी 25 किमी. दूर थी। फिर भी दी गई जिम्मेदारी निभाता रहा। कुछ ही दिनों में बबुली बलखडिय़ा का खास बन गया।
गैंग में शामिल थे 10 से 12 डकैत
वर्तमान समय में तराई क्षेत्र में स्थापित रहे बबुली कोल पर उत्तरप्रदेश पुलिस ने 5.50 लाख तथा मध्यप्रदेश पुलिस ने 50 हजार इनाम घोषित किया है। 10 से 12 डकैत मिलकर पूरी गैंग चला रहे थे। कानून के जिम्मेदार जिस दिन बड़ी घटना होती है उसदिन सक्रिय होते थे। फिर बाद में हाथ में हाथ रखकर बैठ जाते है। इसीलिए तराई में आज तक जंगलराज कायम था।
वर्तमान समय में तराई क्षेत्र में स्थापित रहे बबुली कोल पर उत्तरप्रदेश पुलिस ने 5.50 लाख तथा मध्यप्रदेश पुलिस ने 50 हजार इनाम घोषित किया है। 10 से 12 डकैत मिलकर पूरी गैंग चला रहे थे। कानून के जिम्मेदार जिस दिन बड़ी घटना होती है उसदिन सक्रिय होते थे। फिर बाद में हाथ में हाथ रखकर बैठ जाते है। इसीलिए तराई में आज तक जंगलराज कायम था।
शराब-शबाब का शौकीन
बताया गया कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण डकैत अक्सर मजबूरियों का फायदा उड़ाते है। वो शराब-शबाब के सौकीन होते हैं। नाचने-गाने वाले डकैतों को पसंद होते है। यही बबुली के साथ भी हुआ। बदमाशों ने उसे वक्त के साथ दस्यु सरगना बना दिया था।
बताया गया कि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण डकैत अक्सर मजबूरियों का फायदा उड़ाते है। वो शराब-शबाब के सौकीन होते हैं। नाचने-गाने वाले डकैतों को पसंद होते है। यही बबुली के साथ भी हुआ। बदमाशों ने उसे वक्त के साथ दस्यु सरगना बना दिया था।
बेरोजगारी के चलते जाते है गैंग में
जानकारों ने बताया कि, करौहा गांव के ज्यादातर परिवार बबुली के संपर्क में थे। दिन में काम और शाम को बदमाशों के साथ चले जाते थे। बड़ा कारण तराई में बेरोजगारी है। खाने-पीने के चक्कर में मदद करने लगते थे। फिर पुलिस प्रताडि़त करने लगती है और, धीरे-धीरे पूर्ण रूपेण गिरोह में चले जाते थे।
जानकारों ने बताया कि, करौहा गांव के ज्यादातर परिवार बबुली के संपर्क में थे। दिन में काम और शाम को बदमाशों के साथ चले जाते थे। बड़ा कारण तराई में बेरोजगारी है। खाने-पीने के चक्कर में मदद करने लगते थे। फिर पुलिस प्रताडि़त करने लगती है और, धीरे-धीरे पूर्ण रूपेण गिरोह में चले जाते थे।
इन गांवों में दहशत
बबुली कोल का अक्सर मूवेंट रानीपुर गिदुरहा से लेकर कुसमुही तक रहता है। जिसमें चरईया, नागर, रानीपुर, गिदुरहा, लक्ष्यमणपुर, कल्याणपुर, करौंहा, छेरिहा, जरवा, हल्दी डाडी, बंधवा, खदरा, मारकुंडी, डोंडा, टिकरिया, मझगवां, कुसमुही, प्रतापुर, हर्दी, बीरपुर, हरसेड़, सरभंगा आदि गांवों में अक्सर आना-जाना लगा रहता था।
बबुली कोल का अक्सर मूवेंट रानीपुर गिदुरहा से लेकर कुसमुही तक रहता है। जिसमें चरईया, नागर, रानीपुर, गिदुरहा, लक्ष्यमणपुर, कल्याणपुर, करौंहा, छेरिहा, जरवा, हल्दी डाडी, बंधवा, खदरा, मारकुंडी, डोंडा, टिकरिया, मझगवां, कुसमुही, प्रतापुर, हर्दी, बीरपुर, हरसेड़, सरभंगा आदि गांवों में अक्सर आना-जाना लगा रहता था।